नीति सही
रीति गलत
रीति गलत
देश के राजनैतिक माहौल में इस समय अजीब गंध है। नरेन्द्र मोदी का डंका बज़ रहा है महाशोर है ,जोर है,गूंज है और कौतुहल है ,उम्मीदें हैं,विश्वास है और कहीं भय भी है। लेकिन बावजूद इन सबके नरेन्द्र मोदी देश की विपक्षी राजनीति के सिरमौर नेता नामज़द हो गए हैं। यह सब तब हुआ जब बीजेपी के या संघ के सत्तर साली कार्यकर्ता लालकृष्ण आडवाणी के प्रबल विरोध और दबे छुपे कुछ नेताओं के विरोधों के बाद। कहा जा रहा है नरेन्द्र मोदी प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार हैं और राजनाथ सिंह ने उन्हें बाकायदा कंडीडेट घोषित किया है मीडिया भी उन्हें उम्मीदवार ही कह रहा है ,यह समझ से परे है मोदी न प्रत्याशी हैं न उम्मीद्वार है. देश की संवैधानिक प्रक्रिया प्रधानमंत्री के सीधे चुनाव की कहीं इज़ाज़त नहीं देती हमाँरे यहाँ की चुनाव प्रणाली में प्रधानमंत्री का पद चयनित पद है जिसे निर्वाचित सांसद चुनते है। लोकतंत्र में लोकमत यह जानने के लिए होता है कि क्षेत्र की जनता किसे निर्वाचित कर संसद में प्रतिनिधित्व करने भेजती है और निर्वाचित सांसद अपना प्रधानमंत्री बहुमत के आधार पर चयनित कर सरकार का निर्माण करते हैं।
नरेन्द्र मोदी को उम्मीदवार कहने से लग रहा है कि गोया प्रधानमंत्री का सीधा चुनाव होने जा रहा है। दरअसल यह नीति ही गलत है और संवैधानिक नहीं है। मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हो नहीं सकते और न ही इसकी घोषणा की जाना चाहिए वे प्रधानमंत्री पद के दावेदार बीजेपी की तरफ से है और बहुमत की स्थिति में वे प्रधानमत्री होंगें , इसलिए जिस रीति से उन्हें उम्मीदवार घोषित किया जा रहा है वह गलत ही है। यहाँ लालकृष्ण आडवाणी सही कह रहे है उन्हें पार्टी अध्यक्ष की कार्यप्रणाली ठीक नहीं लग रही है। नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री घोषित करने के लिए जो रीति अपनाई गयी उसमे और भी खामियां है। प्रधानमंत्री का पद एक राष्ट्रीय पद है जिसकी विशेषताएं भी हैं और वह अहम् योग्यताएं भी है। यह दीगर है कि कांग्रेस ने कभी प्रधानमंत्री पद को अहम् योग्यताओं के आधार पर चयन नहीं किया लेकिन सुशासन के आधार पर राज़ करने की नीति वाली बीजेपी को मोदी केंद्र में लाने के लिए कुछ जल्दी और त्वरित कदम उठाये जाना चाहिए थे।
मसलन उन्हें गुजरात चुनाव के बाद ही केन्द्रीय राजनीति में सक्रीय किया जाना चाहिए था पार्टी के उन नेताओं के साथ जो पहले से बीजेपी की केन्द्रीय राजनीति में सक्रियता से पार्टी के लिए काम कर रहे है। मोदी प्रदेश आने वाले क्षेत्रीय नेता रहे उनकी लोकप्रियता व्यापक जरुर हुई लेकिन इसे कभी परखा नहीं गया। वे कभी संसद में नहीं गए ,राष्ट्रीय नीतियों के हिस्सेदार नहीं बने , कुछ महीनो से जरुर वे राष्ट्रीय राजनीति के हिस्सेदार हो रहे है लेकिन मोदी में पार्टी कोई प्रधानमंत्री पद की संभावना देख रही थी तो उन्हें प्रदेश से दिल्ली लाना चाहिए था और सक्रियता से आगे बढ़ाना चाहिए था। बीजेपी के जो नेता प्रदेश छोड़ केन्द्रीय राजनीति में सतत लगे है , संसद के भीतर और बाहर पार्टी की नीतियों के अनुरूप काम कर रहे हैं संघर्ष कर रहे उनकी योग्यताओं का आकलन कम करना है। मोदी ने यदि उनकी योग्यताओं के आधार पर केन्द्रीय राजनीति में हिस्सेदारी की होती तो हो सकता है बीजेपी ज्यादा आक्रामक दिखती और यूपीए के लिए ज्यादा मुश्किलें हो सकती थी ।
फिर भी बीजेपी की नीति सही है। उसके पास बहुत से प्लस पॉइंट इस बार है , यूपीए घोटालों से बदनाम सरकार है ,भ्रष्टाचार से बदनाम है , मंहगाई से बदनाम है ,आर्थिक दुर्दशा से बदनाम है ,ये हालत सत्ता परिवर्तन के लिए अच्छा माहौल तैयार कर रहे हैं लोग क्रुद्ध है और विकासशील,ईमानदार और लड़ाकू नेता की ओर देख रहे है ,विपक्ष में नरेन्द्र मोदी से बेहतर इन आधारों खरा और कोई नहीं दीखता इसलिए उन्हें प्रधानमंत्री की तरह प्रोजेक्ट करना सही नीति हो सकती है। लेकिन नीति के साथ रीति भी खरी और सच्ची होना चाहिए।
सुरेन्द्र बंसल
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