सुरेन्द्र बंसल
बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने बहुत कुछ हद तक सच कहा है , उसे सत्ता में वापसी करनी है तो एक जुट रहना पड़ेगा ,एक आवाज़ में बोलना पड़ेगा .यह बीजेपी के कमज़ोर नब्ज़ की ऐसी गिनती है जिससे बीजेपी बीमार और लाचार नज़र आती है . सत्ता से बाहर रहते हुए बीजेपी को आठ साल से ज्यादा हो गए हैं .२०१४ में चुनाव हैं और तमाम विरोधी नेता मध्यावधि की आस लगाए बैठे हैं ऐसे में बीजेपी सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी होकर भी कितनी तैयार है इसके प्रतिलक्षण आडवानी ने बीजेपी के कन्वेंशन में दिखाए हैं .
दरअसल बीजेपी बीते आठ सालों में क्या कर पाई , उसके प्रतिनिधित्व का दायरा कितना बड़ा और उसका कितना असर हुआ यह बीजेपी का आत्म मंथन होना चाहिए था . लेकिन ऐसे कन्वेन्शनों में पार्टी उन राजनैतिक मुद्दों को उठाती और चर्चा करती है जो पहले से ही चर्चित और चालित हैं. चर्चा कामयाबी पर ही नहीं नाकामी पर भी होना चाहिए . जनलोकपाल बिल पर बीजेपी की लचरता से पार्टी डेमेज्ड हुई इसका लोगों पर गलत प्रभाव पड़ा . मंहगाई और एफडीआई पर बीजेपी कितनी कारगर रही और क्या कमी रही . ईधन की कीमतों पर कितना कर पाए और घोटालों पर पार्टी कितनी ईमानदार रहीं और कितना नैतिक दायित्व निभाया यह सब चर्चा पार्टी के भीतर पर खुलकर होना चाहिए . इसलिए भी कि बीजेपी एक सर्व लोकतान्त्रिक पार्टी है
जहाँ ज्यादातर फैसले सामूहिक होते हैं इसका फायदा पार्टी को होना चाहिए लेकिन वह नहीं हो रहा है .
ऐसा इसलिए की तमाम बड़े मुद्दे हाथ में आने के बावजूद बीजेपी का अपना दायरा नहीं बड़ा . उत्तरप्रदेश जैसे बड़े प्रान्त जहाँ से चुने गए सांसदों की संख्या किसी भी सरकार को बना और बिगाड़ करने की कूवत रखती है वहां बीजेपी इन आठ सालों में कुछ भी नहीं कर पाई . जहाँ जैसी राजनैतिक परिस्थितियां होती है उसके अनुरूप तैयारियां करना होती है लेकिन बीजेपी इस बड़े राज्य में राज़ करने के बाबजूद बेहद कमज़ोर साबित हुई. उत्तराखंड में आपसी विवादों के चलते सत्ता उसके हाथ से फिसल गई , झारखण्ड में भी पार्टी कमज़ोर ही हुई है ,राजस्थान में भी पार्टी राजनैतिक हालातों से नहीं निबट सकी और सत्ता गवां बैठी . गुजरात में विवाद चल रहे हैं जहाँ पार्टी का संभावित पीएम् राज़ कर रहे हैं . कर्णाटक में विवाद येदियुरप्पा के साथ ही इतना बाद गए की अब वापस सत्ता में लौटना ना मुमकिन हो सकता है . ये हालात तो पार्टी के उन राज्यों के है जहाँ बीजेपी का राज़ है या रहा है .
लेकिन जहाँ बीजेपी कहीं नहीं है वहां भी बीजेपी ने बढने के लिए कुछ हासिल करने के कुछ भी नहीं किया है .पूर्वोत्तर बीजेपी का सपना है वह उसे हासिल करने का मंसूबा बनाती है लेकिन अंजाम नहीं दे पाती , जम्मू- कश्मीर तो एक प्रतीक है सिर्फ नीतिगत विरोध का पार्टी वहां कुछ नहीं कर सकती .लेकिन महाराष्ट्र जैसे बड़े प्रदेश में बीजेपी जितनी सिमटी हुई है बस उतनी ही है, शायद सिमटी हुई इसलिए है की वह वहां ज्यादा सहमी हुई है , शिव सेना से आगे वह बढना नहीं चाहती और कांगेस से मुकाबिल भी नहीं होना चाहती , बीजेपी यहाँ एक आत्म संतोष में है जितना उसे चाहिए उतना उसे मिल रहा है लेकिन ये स्थिति उसे केंद्र की सत्ता तक नहीं पहुंचा सकती .दक्षिण के अन्य राज्यों में बीजेपी इसी तरह केम्प में अलसाती सी सेना है जिसे आगे बढना ही नहीं है. एन डी ए के घटक दलों के राज्यों में भी वह अपनी ताकत नहीं बढाना चाहती क्योंकि शुचिता की राजनीति के चलते उसे निभाने की बड़ी जिम्मेदारी है .
इन हालातों में जहाँ बीजेपी पास बड़े मकसद हों , बड़े मामले हों , लोक नाराजी का साथ हो और बहुतेरे मौकें हों तब भी बीजेपी यदि वही खडी नज़र आती है इस इंतज़ार में कि राजधानी एक्सप्रेस आती ही होगी और उसमे बैठ कर केंद्र में पहुँच जायेगी तो यह गलत फहमी है ट्रेन में बैठने के लिए टिकट कटाना जरुरी है . राजनीति में यह टिकट उन तैयारियों से ही बन सकता है जिसका उल्लेख आडवाणी कर रहे हैं.
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