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Saturday, October 6, 2012

घोटालों से बड़े घालमेल ..

घोटालों  से बड़े  घालमेल ..
सुरेन्द्र बंसल 
रॉबर्ट वाड्रा  सोनिया गांघी के दामाद न होते तो शायद इतना शोर न होता . वाड्रा की कुछ सालों में बनी अथाह सम्पति कोई घोटालों से बनी नहीं दिखती है और घोटालें हों भी कैसे जब सरकार की कोई एजेंसी शामिल न हों फिर वाड्रा ने क्या अपराध किया है . कोई व्यापार के लिए ब्याज मुक्त पैसा दे तो किसे बुरा लगता है , कम्पनी चलाने वाले जानते हैं दायित्वों की जितनी कमी होगी कम्पनी को उतना ही मुनाफा होगा , इसमें वाड्रा सफल रहे और उनने एन केन प्रकारेण इन परिस्थितियों का फायदा उठा लिया जो उन्हें तात्कालिक मिल रही थी ,समझदार बिजनेसमेन ऐसे अवसर कभी नहीं छोड़ते, यह जरुर वाड्रा को ज्यादा और बड़े अवसर मिले जो उन्हें चंद सालों में उंचाई पर ले गए .

अरविन्द केजरीवाल ने इसे राजनैतिक मुद्दा बनाया है अगर यह भ्रष्टाचार का मुद्दा होता तो वे यह भी बतलाते कि रॉबर्ट वाड्रा को फायदा देने वाली डीएलऍफ़ को कितना फायदा हुआ है. दरअसल यह अधपका मुद्दा है जब तक किसी गड़बड़ी को आप जाहिर नहीं कर सकते तब तक कोई इलज़ाम नहीं बनता है .डीएलऍफ़ को कितना फायदा इसके एवज में हुआ तथ्य ये बाहर आने चाहिए थे लेकिन जल्दबाजी में केजरीवाल  की टीम  वाड्रा तक सीमित रह गई , शायद यह सोच कर कि यह सोनिया गाँधी के परिवार  से जुड़ा मामला है इससे अच्छा धमाका होगा , उन्हें मीडिया में धमाकेदार जगह भी मिल गयी लेकिन जो लोग उसूलों से चलते हैं उन्हें मान से और मर्यादित भाव से संयमित आचरण दिखाना चाहिए . यह इसलिए कि इससे उनके विश्वास का निर्माण होता है . केजरीवाल तैश में बोलते हैं फिर भी उनके आचरण ने अब तक उनके प्रति विश्वास का निर्माण किया है राजनीति में आकर उन्हें यह विश्वास नहीं खोना चाहिए . दरअसल जिस पूंजी पर खड़े होकर केजरीवाल राजनीति में आयें हैं वह नैतिक विश्वास की पूंजी और उससे निर्मित वह धरातल है  जिस पर खड़े होकर वे देश को नई राजनैतिक दिशा देने की तैयारी कर रहे हैं.

घोटालों  और घालमेल में बहुत बड़ा अंतर है . सब मान रहे हैं यह घोटाला नहीं है क्योंकि इसमे सरकार की कोई एजेंसी शामिल नहीं है लेकिन जब यह माना जाता है कि अप्रत्यक्ष रूप से इसमे सरकारी एजेंसी , सरकार या सरकार के नुमाईन्दे शामिल हो सकते है तो इसे घालमेल माना जाता है ,लोग इसी बदबू को सूंघने में लगे हैं मान रहे हैं इसके बदले में डीएलएफ को अप्रत्यक्ष मुनाफा पहुंचाया गया होगा  यह शक इसलिए जाहिर हो रहा है कि  मामला सोनिया गाँधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा से जुडी कंपनियों के हैं . लेकिन बात घालमेल की  है तो मान लीजिये ये घालमेल हर सरकार और कंपनियों के बीच बरसों से चल रहे है और बड़े स्तर पर चल रहे हैं .

राजनीति के बड़े पेटू पेट के भीतर और उसकी भूख आज पैसा ही है. चंदे से करोड़ों उपजा लेने वाली हर नामी गिरामी राजनैतिक पार्टी  के साथ नामीगिरामी कंपनियों का दिया चंदा जुडा है . कोयला घोटाले से कितने काले चेहरे सामने आये हों लेकिन कंपनियों के चंदे से काली हुई राजनैतिक पार्टिया आज देश में और हर राज्य में  राज़ कर रही है . कोई सोच सकता है राजनैतिक दलों को मिला ये चंदा सिर्फ एक सहयोग या समर्थन है .ये भी उसी तरह का घालमेल है जो घोटालों तक जाता है . जितने बड़े घोटालें हुए हैं उनमें सिर्फ राजनीतिज्ञ ही नहीं राजनैतिक दल भी अप्रत्यक्ष शामिल हैं . राजनैतिज्ञ घोटालें कर रहे हैं और राजनैतिक  दल घालमेल कर रही हैं . यह जांच हो कि किस राजनैतिक  दल ने किस कम्पनी से कितना  चंदा लिया , कहाँ लिया और उससे कालांतर में कितना फायदा हुआ आपको निश्चित तौर पर घोटालों  से बड़े घालमेल नज़र आयेंगें जो रॉबर्ट वाड्रा के मामले से ज्यादा बड़े और संगीन होंगें . अरविन्द केजरीवाल वाड्रा के मामले से ज्यादा राजनैतिक दलों पर छानबीन  कर घालमेल जाहिर करते तो कई लोगों के आँखे खुलती और यह भी जाहिर होता देश की नामचीन कंपनिया किस तरह देश को कैसे खरीद ले रही है . 
सुरेन्द्रबन्सल७७@ग मेल .कॉम 
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