दो की बदनामी में एक बात तय है कि डील 100 करोड़ की हो रही थी और वह भी बचने या बचाने जैसे बद काम के लिए .अपना मिशन स्वरूपी मीडिया इसमें है इसलिए दर्द अपने को भी है .क्यों ,मीडिया खरीदी के धंधे में व्यस्त हो रहा है . सच और झूठ क्या है अब इसके ज्यादा मायने नहीं है . जिस चैनल ने 100 करोड़ मांगें या जिस चैनल को 100 करोड़ की पेशकश की गई दोनों में पैसा गलत रास्ते का था और गलत काम के लिए था यह पत्रकारिता का मिशन नहीं है यह धंधेबाजों का धंधा है और इस धंधे में दो बड़े ग्रुप सामने आयें हैं दोनों की राह गलत है और दोनों का कृत्य गलत है .
पहले बात अपने लोग याने मीडिया की . बीते चुनाव से जो चल पडा है उसे पेड न्यूज़ कहा जा रहा है याने खबर की एवज में पैसा बनाना नाम विज्ञापन का और खजाना काले कामों का . पेड़ न्यूज़ के बढ़ते चलन ने पाठकों के विश्वास को रौंधकर पैसों के पेड़ लगाना शुरू किया है .बड़े मीडिया घराने इस धंधे में लिप्त रहे हैं कुछ हद तक चुनावी सर्वे के चलन ने इसे शुरू किया है , सर्वे के बहाने झूठे - सच्चे आंकड़ों से घट और बढत का जो खेल शुरू हुआ था बाद में वही पेड़ न्यूज़ में तब्दील हुआ और अब उसे बिजनेस डील की तरह लिया जा रहा है सीधे सौदे हो रहे हैं यह पत्रकारिता का कालिख चेहरा है और सीधे सीधे पत्रकारिता की जड़ों को कमज़ोर करने का काम है . जो लोग इसमें लिप्त हैं लगता है उन्हें पत्रकारिता संस्कार में नहीं मिली है वे फिजूल में थोपे गए ऐसे लोग हैं जो सिर्फ धंधा व्यापार करने की नियत से पत्रकारिता में आयें हैं . बात बहुत गहन है और इस पर चिन्तन -विचार की बहुत ईमानदारी से जरुरत है . बीते चुनाव में पेड़ न्यूज़ का धंधा खुले आम चला था पत्रकारिता तब भी बदनाम हुई थी ,खराब नीयत के लोगों ने खबर के लिए खुलकर सौदे किये थे अब जो हो रहा है उससे हैरत हो रही है .
क्या 100 करोड़ की डील खबर रोकने के लिए हो सकती है , आकडे तो इतने ही आये है और ये पुष्ट आंकडें है इसलिए की दोनों पक्षों ने यह तो पुष्टि की है कि 100 करोड़ मांगें गए थे या 100 करोड़ पेशकश किये गए थे . इसलिए बहरहाल जब हम मीडिया की जवाबदारी और कृत्य की बात कर रहे हैं तो हमें पहला सवाल यही समझ लेना चाहिए कि आखिर इस अनैतिक और बेईमान काम की ओर आप अग्रसर ही क्यों हुए ? जब 25 करोड़ पेश किये गए तब भी वह खबर थी फिर उसे बढ़ाकर 100 करोड़ तक की बात करने जाना वह भी आपने दो वरिष्ठ संपादकों के साथ आखिर खराब नीयत तो दर्शाता ही है . जिस आरोपित व्यक्ति पर आप खबर बना रहे है वही मीडिया की तरह काम करके आपको कटघरे में खड़ा कर दे, आपका स्टिंग कर दे तो समझ लीजिये आपकी नाक , कान और आँख जो मीडिया की पहली जरुरत है वह बंद है काम नहीं कर रही है , याने आप पत्रकारिता करना ही नहीं जानते बस धंधा कर रहे हैं . यह बचाने और एवज में भुनाने का खेल है .
लेकिन जो बचने के लिए पेशकस कर रहे थे चाहे 25 करोड़ या 100 करोड़ वे भी कुछ गलत और अनैतिक ही कर रहे थे उनकी बात मनमाफिक बन जाती तो शायद इस कलि खबर का बाहर आना मुश्कील था ,जाहिर है जो व्यक्ती खबर दबाने के लिए पासों की पेशकश करता है वह काले धंधों में लिप्त होता है और अपने को छुपाने और बचाने के लिए इस तरह से इन्वेस्ट करता है .तब उसकी केलकुलेशन उससे रिटर्न मिलने की होती है .इस मामले में रिटर्न का फिगर उन्हें नुकसान दिखा रहा था तो उनने इसे जाहिर कर दिया यह भी बदनीयती है और यह जतलाती है कि कहीं न कहीं गड़बड़ है .
जाहिर है एक पक्ष ने बचाने का खेल किया तो दूसरे ने बचने का खेल किया और इस खेल में लड़ लिए तो बेईमानी के आरोप एक दूसरे पर लगा दिए .नुक्सान पत्रकारिता की विश्वसनीयता क हुआ है ,विश्वास का हुआ है उसके मिशन का हुआ है यह हैरत करने वाला भी है और अजीब भी .
