कर्मयोग का सत्
सांसदों का वेतन दोगुना होने जा रहा है। इस पर बहुत हल्ला है आखिर क्यों सांसदों का वेतन बढ़ना चाहिए। लोग चाहे सो कहें मुझे तो वेतन शब्द पर ही आपत्ति है। वेतन उसे दिया जाता है जिसकी नौकरी हो , सांसद तो हमारे नेता हैं नौकर तो है नहीं फिर वेतन किस बात का । हर सांसद हमारा सामूहिक प्रतिनिधित्व करते हैं फिर प्रतिनिधि को वेतन कैसे दिया जा सकता है। संविधान में व्यवस्था है वेतन की इसलिए इन्हें वेतन और पेंशन दिए जा रहे हैं । लेकिन इसके मूल को पुनः व्याख्यित किये जाने की जरुरत है।
हर सांसद सामाजिक कर्मयोगी है ,उसे लोग याने समाज का प्रतिनिधित्व उस दायित्व से करना है जो उसे सामुहिक तौर पर इस विश्वास से दिया गया है कि वह समाज ,क्षेत्र और राष्ट्र के लोकतान्त्रिक नेतृत्व एवं विकास में अपना योगदान पूर्ण क्षमता से देगा। उसका यही कर्म उसे राजनेता बनाता है । राजनीति में राजनीतिज्ञ को राजा मान लेने की भूल पर ही देश में राज का संचालन चल रहा है। सांसद याने जैसा मैंने कहा राजनीति के कर्मयोगी स्वयं को राजा अनुरूप शासक मानता है और जब पैसे की वैधानिक बात आती है तो नौकर की तरह वह वेतन चाहता है उसमें बढ़ोतरी चाहता है । भाई ये दो रूप नहीं चलेंगें आप विधिमान्य सांसद हैं जिसका मूलार्थ नौकर होने का कतई नहीं है कृपया प्रयास करें कि संविधान में बदलाव लाएं और वेतन जैसे शब्द को ही सांसद के लिए प्रयुक्त होने से रोकें।
देखिये आपको अपना समय सामूहिक व्यवस्थापन पर खर्च के बदले में सम्मान निधि के तौर पर मिलता रहे इसके खिलाफ मैं कतई नहीं हूँ लेकिन इसका तरीका बदला जाना जरुरी है। यह वेतन नहीं मेहनताना की तरह मानदेय के तौर पर दिया जाना चाहिए और इस मेहनताने का आकलन कार्य ,कार्यक्षमता , संलग्नता,नियमितता और भागीदारी के आधार पर होना चाहिए। फिर यह सम्मान निधि चाहे आज मिलने वाले वेतन से दोगुनी ही क्यों न हो।
मसलन संसद में आपकी उपस्थिति की गणना, भागीदारी की गणना, क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व की गणना, सामयिक बहस में हिस्सेदारी, राष्ट्र हित के लिए किये जा रहे वैचारिक मूल्यों की गणना पर जो सम्मान राशि बनती हो वह सांसद के प्रदर्शन से निर्धारित होना चाहिए। ऐसा किया जाता है तो मेरा मानना है राजनेता वाक़ई राजनेता कहलायेंगें उनका मान बढेगा देश बढेगा और राजनीति की दशा भी बदल जायेगी एक प्रयास इस तरह कीजिये माननीय मोदी जी। इसलिए भी कि आप खबरदार प्रधान मंत्री हैं आपकी संसद और सांसद भी बेख़बर नहीं होना चाहिए उनमे कर्मयोग का सत् आना ही चाहिए।
सुरेंद्र बंसल
12:23 4.7.2015
हर सांसद सामाजिक कर्मयोगी है ,उसे लोग याने समाज का प्रतिनिधित्व उस दायित्व से करना है जो उसे सामुहिक तौर पर इस विश्वास से दिया गया है कि वह समाज ,क्षेत्र और राष्ट्र के लोकतान्त्रिक नेतृत्व एवं विकास में अपना योगदान पूर्ण क्षमता से देगा। उसका यही कर्म उसे राजनेता बनाता है । राजनीति में राजनीतिज्ञ को राजा मान लेने की भूल पर ही देश में राज का संचालन चल रहा है। सांसद याने जैसा मैंने कहा राजनीति के कर्मयोगी स्वयं को राजा अनुरूप शासक मानता है और जब पैसे की वैधानिक बात आती है तो नौकर की तरह वह वेतन चाहता है उसमें बढ़ोतरी चाहता है । भाई ये दो रूप नहीं चलेंगें आप विधिमान्य सांसद हैं जिसका मूलार्थ नौकर होने का कतई नहीं है कृपया प्रयास करें कि संविधान में बदलाव लाएं और वेतन जैसे शब्द को ही सांसद के लिए प्रयुक्त होने से रोकें।
देखिये आपको अपना समय सामूहिक व्यवस्थापन पर खर्च के बदले में सम्मान निधि के तौर पर मिलता रहे इसके खिलाफ मैं कतई नहीं हूँ लेकिन इसका तरीका बदला जाना जरुरी है। यह वेतन नहीं मेहनताना की तरह मानदेय के तौर पर दिया जाना चाहिए और इस मेहनताने का आकलन कार्य ,कार्यक्षमता , संलग्नता,नियमितता और भागीदारी के आधार पर होना चाहिए। फिर यह सम्मान निधि चाहे आज मिलने वाले वेतन से दोगुनी ही क्यों न हो।
मसलन संसद में आपकी उपस्थिति की गणना, भागीदारी की गणना, क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व की गणना, सामयिक बहस में हिस्सेदारी, राष्ट्र हित के लिए किये जा रहे वैचारिक मूल्यों की गणना पर जो सम्मान राशि बनती हो वह सांसद के प्रदर्शन से निर्धारित होना चाहिए। ऐसा किया जाता है तो मेरा मानना है राजनेता वाक़ई राजनेता कहलायेंगें उनका मान बढेगा देश बढेगा और राजनीति की दशा भी बदल जायेगी एक प्रयास इस तरह कीजिये माननीय मोदी जी। इसलिए भी कि आप खबरदार प्रधान मंत्री हैं आपकी संसद और सांसद भी बेख़बर नहीं होना चाहिए उनमे कर्मयोग का सत् आना ही चाहिए।
सुरेंद्र बंसल
12:23 4.7.2015
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thanks for coming on my blog