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Sunday, September 15, 2013

नीति सही रीति गलत

नीति सही 
रीति गलत 

देश के राजनैतिक माहौल में इस समय अजीब गंध है।  नरेन्द्र मोदी का डंका बज़ रहा है महाशोर है ,जोर है,गूंज है और कौतुहल है ,उम्मीदें हैं,विश्वास है और कहीं भय भी है।  लेकिन बावजूद इन सबके नरेन्द्र मोदी देश की विपक्षी राजनीति के सिरमौर नेता नामज़द हो गए हैं। यह सब तब हुआ जब बीजेपी के या संघ के सत्तर साली कार्यकर्ता लालकृष्ण आडवाणी के प्रबल विरोध और दबे छुपे कुछ नेताओं के विरोधों के बाद। कहा जा रहा है नरेन्द्र मोदी प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार हैं और राजनाथ सिंह ने उन्हें बाकायदा कंडीडेट घोषित किया है मीडिया भी उन्हें उम्मीदवार ही कह रहा है ,यह समझ से परे है मोदी न प्रत्याशी हैं न उम्मीद्वार है. देश की संवैधानिक प्रक्रिया प्रधानमंत्री के सीधे चुनाव की कहीं इज़ाज़त नहीं देती हमाँरे यहाँ की चुनाव प्रणाली में प्रधानमंत्री का पद चयनित पद है जिसे निर्वाचित सांसद चुनते है। लोकतंत्र में लोकमत यह जानने  के लिए होता है कि क्षेत्र की जनता किसे निर्वाचित कर संसद में प्रतिनिधित्व करने भेजती है और निर्वाचित सांसद अपना प्रधानमंत्री बहुमत के आधार पर चयनित कर सरकार का निर्माण करते हैं। 

नरेन्द्र मोदी  को उम्मीदवार कहने से लग रहा है कि  गोया प्रधानमंत्री का सीधा चुनाव होने जा रहा है। दरअसल यह नीति ही गलत है और संवैधानिक नहीं है।  मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हो नहीं सकते और न ही इसकी घोषणा की जाना चाहिए वे प्रधानमंत्री पद के दावेदार बीजेपी की तरफ से है और बहुमत की स्थिति में वे प्रधानमत्री होंगें , इसलिए जिस रीति से उन्हें उम्मीदवार घोषित किया जा रहा है वह गलत ही है। यहाँ लालकृष्ण आडवाणी सही कह रहे है उन्हें पार्टी अध्यक्ष की कार्यप्रणाली ठीक नहीं लग रही है।  नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री घोषित करने के लिए जो रीति अपनाई गयी उसमे और भी खामियां है। प्रधानमंत्री का पद एक राष्ट्रीय पद है जिसकी विशेषताएं भी हैं और वह अहम् योग्यताएं भी है। यह दीगर है कि कांग्रेस ने कभी प्रधानमंत्री पद को अहम् योग्यताओं के आधार पर चयन नहीं किया लेकिन सुशासन के आधार पर राज़  करने की नीति वाली बीजेपी को मोदी केंद्र में लाने के लिए कुछ जल्दी और त्वरित कदम उठाये जाना चाहिए थे। 

मसलन उन्हें गुजरात चुनाव के बाद ही केन्द्रीय राजनीति  में सक्रीय किया जाना चाहिए था पार्टी के उन नेताओं के साथ जो पहले से बीजेपी की केन्द्रीय राजनीति में सक्रियता से पार्टी के लिए काम कर रहे है।  मोदी प्रदेश आने वाले क्षेत्रीय नेता रहे उनकी लोकप्रियता  व्यापक जरुर हुई लेकिन इसे कभी परखा नहीं गया।  वे कभी संसद में नहीं गए ,राष्ट्रीय  नीतियों के हिस्सेदार नहीं बने , कुछ महीनो से जरुर वे राष्ट्रीय राजनीति के हिस्सेदार हो रहे है लेकिन मोदी में पार्टी कोई प्रधानमंत्री पद की संभावना देख रही थी तो उन्हें प्रदेश से दिल्ली लाना चाहिए था और सक्रियता से आगे बढ़ाना चाहिए था।  बीजेपी के जो नेता प्रदेश छोड़ केन्द्रीय राजनीति में सतत लगे है , संसद के भीतर और बाहर पार्टी की नीतियों के अनुरूप काम  कर रहे हैं संघर्ष कर रहे उनकी योग्यताओं का आकलन कम करना है।  मोदी ने यदि उनकी योग्यताओं के आधार पर केन्द्रीय राजनीति में हिस्सेदारी की होती तो  हो सकता है बीजेपी ज्यादा आक्रामक दिखती और यूपीए  के लिए ज्यादा मुश्किलें हो सकती थी । 

फिर भी बीजेपी की नीति सही है।  उसके पास बहुत से प्लस पॉइंट इस बार है , यूपीए  घोटालों से बदनाम सरकार है ,भ्रष्टाचार  से बदनाम है , मंहगाई से बदनाम है ,आर्थिक दुर्दशा से बदनाम है ,ये हालत सत्ता परिवर्तन के लिए अच्छा माहौल तैयार कर रहे हैं लोग क्रुद्ध है और विकासशील,ईमानदार और लड़ाकू नेता की ओर देख रहे है ,विपक्ष में नरेन्द्र मोदी से बेहतर इन आधारों खरा और कोई नहीं दीखता इसलिए उन्हें प्रधानमंत्री की तरह प्रोजेक्ट करना सही नीति हो सकती है।  लेकिन नीति के साथ रीति भी खरी और सच्ची होना चाहिए। 
सुरेन्द्र बंसल

मोदी आये तो ये गए

साठ  पार मोदी के आने पर साठ पार नेताओं की होगी छुट्टी 
मोदी आये 
तो ये गए    

देश की प्रमुख विपक्षी राजनैतिक पार्टी बीजेपी में जश्न है कि मोदी आ गए हैं और वयोवृद्ध नेता लालकृष्ण आडवाणी  के नैतिक विरोध के बावजूद। लेकिन सच यह है की मोदी  अभी आये नहीं है अभी उनकी यात्रा शुरू हुई है यह यात्रा एक कवायद है २०१४ में सीट संख्या बढ़ाने की जिसका मोदी को महज नेतृत्व मिला और इस कवायद में मोदी कामयाब हो गए. यदि उन्होंने उतनी सीटें जुटा ली जिससे केंद्र में बीजेपी सत्ता पर काबिज़ हो जाए तब मोदी निश्चित तौर पर प्रधानमंत्री होंगें लेकिन इस तरह मोदी वाकई आ गये तो बीजेपी की वर्तमान फ्रंट लाइन के नेता रसातल में चले जायेंगें याने उनकी उम्मीदें ख़त्म हो जायेगी ,ऐसे नेता साठ पार के हैं जबकि नरेन्द्र मोदी स्वयं भी साठ पार हैं। 

 लाल कृष्ण आडवाणी  १९२७ में  जन्में और ८६ साल के होने जा रहे हैं ,सुषमा स्वराज  का जन्म 1952 को हुआ और वे  61साल की हो चुकी हैं ,१९५१ में जन्मे बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ६२ पार हो गए हैं ,मुरली मनोहर जोशी भी १९३४ में जन्मे और ८० पर पहुँच रहे हैं ,यशवंत सिन्हा १९३७ में जन्मे है और वे ७६ पार हो गए हैं ,१९५४ में जन्मे  रविशंकर प्रसाद जरुर मोदी से छोटे है पर साठ पर जल्दी हो जायेंगें , वेंकैय्या नायडु १९४९ के हैं और ६४ के आगे जा चुके हैं।  ये सब बीजेपी के फ्रंट लाइन नेता है जाहिर है बीजेपी का मोदी मिशन सफल होता है तो  यह  भी साफ़ है कि इन नेताओं के नेतृत्व के आसार हमेशा के लिए ख़त्म हो जायेंगें , यह स्थिति मोदी के प्रधानमंत्री बनने से उत्पन्न  होगी क्योंकि उनके पी एम् बनाने से ये सभी नेता कोई सत्तर पार तो कोई अस्सी पार पहुँच जायेंगें और सब तब आज के लालकृष्ण आडवानी की स्थिति में आ जायेंगें। दिख रहा है मोदी के मनोनयन से बीजेपी की एक पौध नहीं ख़त्म हो रही बल्कि ऐसे ऊँचें पेड़ राजनैतिक कट जाने वाले हैं जिनकी ऊँची महत्वाकांक्षा हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगी। तब ये नेता सिर्फ मोदी के केंद्र में सत्तासीन होने पर या तो राष्टपति ,उपराष्ट्रपति ,राज्यपाल  जैसे गैर राजनैतिक पदों तक सीमित हो जायेंगें या मोदी के अधिनस्थ काम करने को मजबूर होंगें। यह बीजेपी के लिए चुनौती भले न हो लेकिन एक सक्षम नेतृत्व की पूरी लाइन का ख़त्म होना जरुर है। 

इनकी उम्मीदें है बरकरार 

 बीजेपी के पास दूसरी लाइन के नेताओं की कोई कमी नहीं है और उसके पास नवागत नेतृत्व के लिए मोदी के बाद के लोग अभी से है जिसमे अधिसंख्य साठ  के नीचे है , इन नेताओं में मप्र के सी एम् शिवराज सिंह चौहान जो फिलवक्त ५४ के हैं और १९५९ में जन्में हैं , राजीव प्रताप रूडी १९६२ के नौजवान नेता हैं सिर्फ ५२ साल के हैं ,शाहनवाज़ हुसैन भी सर्वाधिक तेजतर्रार और ४४ साल के युवा है ,नितिन गडकरी विवादित , आरोपित नेता जरुर हैं लेकिन महज ५७ साल के हैं उनका जन्म १९५७ का है कर्णाटक के नेता अनंत कुमार भी सिर्फ ५४ साल के के हैं  और शिवराज की तरह १९५९ में जन्मे हैं। वहीँ अनुराग ठाकुर , वरुण गाँधी ,स्मृति ईरानी , सुशील मोदी , शत्रुघ्न सिन्हा और भी नेताओ की लम्बी फेहरिश्त है जो न केवल आज मोदी की विकास फौज के अधिकारी हो सकते हैं बल्कि भविष्य में नेतृत्व के लिए भी तैयार हो सकते हैं।
मोदी के लिए ये चुनौती है 

नरेन्द्र मोदी चुनाव में बीजेपी की सत्ता बनाने में कामयाब होंगें तब ये स्थितियां बनेगी , लेकिन बड़ी चुनौती यही है कि  कैसे मोदी ११६ से २७२ के पार ले जायेंगें बीजेपी को. यह एक कठिन काम है हालाँकि मोदी को यूपीए की घोटालेबाज़ी वाली बदनामी से आसान दिखती है लेकिन समीकरण इतने ही होते तो बीजेपी मोदी की ताजपोशी की जल्दबाजी नहीं करती , हिन्दुत्व इसमे बीजेपी का छुपा हुआ मुद्दा है लेकिन मोदी शैली का विकास बीजेपी का खुला मुद्दा है , सेक्युलर मोदी की छबि पेश करने की कोशिश कर मुस्लिम मानसिकता में बदलाव लाना बीजेपी का दूसरा मुद्दा है और इस मुद्दे पर संघ भी काम कर रहा है।  तमाम  कोशिशों के बाद यदि मोदी कामयाब हो जाते है तो अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवानी के बाद बीजेपी में मोदी युग की शुरआत हो जायेगी। और असफल रहे तो बड़े नेताओं में पुराने चावल की तरह महक फिर कामयाब हो जाएगी ,नरेन्द्र मोदी आज एक प्रयोग बन गए हैं इसे राजनाथ की प्रयोग शाला कहें या संघ प्रमुख मोहन भगवत की लेकिन इसके परिणाम बीजेपी को बेहद असर करने वाले हैं। 

आम चुनाव में बीजेपी का अब तक प्रदर्शन 

 साल आम चुनाव सीट जीती परिवर्तन  % वोट वोटों का झुकाव 
19807वीं  लोकसभा 0000
19848वीं  लोकसभा2+27.74%+7.74%
19899वीं  लोकसभा85+8311.36+3.62
199110वीं  लोकसभा120+3720.11+8.75
199611वीं  लोकसभा161+4120.29+0.18
199812वीं  लोकसभा182+2125.59%+5.30
199913वीं  लोकसभा182023.75–1.84
200414वीं  लोकसभा138-4422.16%-1.69
200915वीं  लोकसभा116-2218.80%-3.36%
 201416thवीं  लोकसभाTBDTBDTBDTBD