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Monday, January 28, 2013

गण के प्रति जवाबदेह हो तंत्र .

भारतीय गणतंत्र के 64 वें वर्ष में प्रवेश पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने विधायिका और कार्यपालिका को लेकर जो बहस शुरू की है वह चिंतनीय भी है और सामयिक भी .देश इन दिनों जिस राह से गुजर रहा है उससे भयावह संकेत समाज के बदले जाने के हैं . देश वही है लेकिन समाज बदल रहा है . नीति ,संस्कार और संस्कृति सब बदलते जा रही है जिससे देश प्रभावित हो रहा है . बदलते समाज के इस प्रभाव से देश की विधायिका और कार्यपालिका भी प्रभावित हो रही है. घर के भीतर आपकी संस्कृति और संस्कारों का परिवार  हो लेकिन आज घर से बाहर कदम रखते ही भय, चिंता ,और संस्कारों से विहीन संस्कृति नज़र आती है इसलिए  राष्ट्रपति ने सही पूछा है क्या हमारी विधायिका उदीयमान भारत का प्रतिनिधित्व करती है और कार्यपालिका की वाकई भलाई का माध्यम है ?


राष्ट्रपति ने ये सवाल बहुत देर से पूछे और सत्ता में कार्यपालिक होते हुए कभी नहीं पूछे लेकिन समय पर पूछे हैं . दिल्ली की खौफनाक  घटना के बाद हर दिल पसीज गया है झुंझला गया है जाहिर है राष्ट्रपति भी झुंझलाए होंगें  और जब गणतंत्र दिवस  का मौका आया वे अपनी बात राष्ट्र से कह गए .उन्होंने एक बहुत ही  उच्च बात कही है .उन्होंने कहा है देश का एक कानून है लेकिन उससे भी  ऊँचा एक कानून है .महिला की गरिमा उसी बड़े कानून का नीतिनिर्देशक सिद्दांत  है।अब समय आ गया है कि  देश अपने कुतुबनुमे  को फिर से निर्धारित करे। आगे उन्होंने यह भी कहा कि जनता को विश्वास होना चाहिए कि शासन अच्छाई के लिए है और इसके लिए अच्छा शासन सुनिश्चित करना चाहिए . और भी बाते राष्ट्रपति ने गहरे से सच्चे मनोरथ से कही है उन बातों का स्वागत किया जाना चाहिए .



जिस सामाजिक सरोकार और प्रतिबद्धता  की बातें  राष्ट्रपति ने की है जरुरत सभी को अपना मानस बदल कर उस पर आगे बढ़ने की है . कार्यपालिका में बदलाव सबसे पहले दिखना चाहिए क्योंकि देश की चाल उसी से नज़र आती है  कार्य-पालिका  में भीतर बैठे  लोग  सुशासन का मन बना लें तो विधायिका में भी बदलाव लाया जा सकता है . सुनिश्चित और विश्वसनीय  कार्यपालिका राष्ट्र  को बहुत कुछ दे सकती है। विधायिका का निर्माण ,परिवर्तन और संरक्षण भी उसे ही करना है . देश को बदलना है तो लोगो को जागरूक और सरकार को जवाबदेह बनना होगा . राष्ट्र को भीतरी सुरक्षा की भी उतनी  ही जरुरत है जितनी  उसकी सीमाओं की सुरक्षा जरुरी  है . राष्ट्र की भीतरी सुरक्षा लोगों  के स्वाभिमान ,मान और जान से है .इस गणतंत्र पर यह प्रण जरुर होना चाहिए . आखिर गण के प्रति तंत्र को  जवाबदेह होना ही होगा .


सुरेन्द्र बंसल 
surendra.bansal77@gmail.com


Sunday, January 20, 2013

SURENDRA BANSAL kee Kalam se: असेट राहुल सेट राहुल

SURENDRA BANSAL kee Kalam se: असेट राहुल सेट राहुल

असेट राहुल सेट राहुल


कांग्रेस के असेट राहुल , दिग्विजयसिंह ने यही कहा था ,चिंतन से सेट हो गए हैं . पद कोई बड़ा उन्हें मिला हो ऐसा नहीं है लेकिन कांग्रेस में उन्हें  मान्य से सर्वमान्य मान्यवर बना दिया गया है  , इस पर अचरज तो कोई है नहीं , बिन पद भी वे सर्वमान्य  तो थे ही और महासचिव के पद पर वैसे भी ओहदेदार थे . इसलिए  उपाध्यक्ष होना उनकी प्रोन्नति है क्योंकि यह ढोल-धमाके और फटाके की गूंज के साथ है जश्न के साथ है . छोटा बड़ा हर कांग्रेसी चिंतन से खुश होकर बाहर निकला है . अध्यक्ष के बाद उपाध्यक्ष की इतनी गरिमा कांग्रेस ने ही बढाई  है .

राहुल गाँधी के लिए बड़ा पद पहले ही खोजा  जा रहा था .कांग्रेस के भीतर छह महीने से इस पर चिंतन चल रहा था कैसे और किस तरह उन्हें ज्यादा तर्ज़ दी जाए . खबरे आती रही वे कार्यकारी अध्यक्ष हो सकते हैं लेकिन इसके कई मायने निकल रहे थे . उनमें यह भी क्या तब सोनिया गाँधी रिटायर हो जायेगी , क्या तब उनका राजनैतिक अस्तित्व बना रहेगा , क्या उनकी अस्वस्थता जैसे और कयास लगाए जायेंगें , मीडिया क्या-क्या उधेड़बुन करेगा जिसके क्या परिणाम  हो सकते हैं . इन सब पर कांग्रेस के भीतर चिंतन मनन हुआ है और उसकी तोड़ यही हुई कि  उपाध्यक्ष का पद भी वजनदार बना दिया जाए राहुल गाँधी के इस पद पर आसिन  होते ही उपाध्यक्ष  का पद वजनदार और असरदार हो गया है . 

दिग्विजयसिंह पहले दिन ही बोले थे राहुल कांग्रेस के एसेट्स हैं उनका अर्थ राहुल के कद को ऊँचा देखना था लेकिन तब तक राहुल अ सेट थे .यूपी तक सीमित . उनका राष्ट्रीय महत्व था लेकिन मान्य राजनैतिक स्थापना तब भी नहीं थी , वे खुद भी बुझेबुझे से थे , देखा गया इन दिनों वे बड़े राजनैतिक मुद्दों पर भी चुप रह रहे थे . उनकी चुप्पी के भी दो अर्थ थे पहला- उनकी राजनैतिक महत्वकांक्षा इतनी बढ़ गयी थी कि  वे खुद पद प्रतिष्ठित होकर ही अपनी राय  देना चाहते हों दूसरा- उनका पद प्रतिष्ठित  होना तय था इसलिए तब तक उनसे चुप रहने का ही कहा गया हो ताकि कोई नया विवाद खड़ा नहीं हो इसलिए उनके सेट होने का इंतज़ार किया गया . 

राहुल अब सर्वमान्य सेट हैं . कांग्रेस के भीतर भी और बाहर भी .अब उनकी बातों को कांग्रेस की नीतिगत बात और विचार माना  जाएगा क्योंकि  वे रीति से बने कांग्रेस के नीतिगत व्यक्ति हैं . पूरी तरह से सेट , अध्यक्ष  की गरिमा को बनाये रखकर कार्यकारीअध्यक्ष के रुतबे तक असरदार नेता की तरह प्रतिष्ठित .अ सेट से सेट राहुल याने अब एसेट्स राहुल भी . अब उन्हें राजनीति  में अपने को सेटेड राहुल के रूप में स्थापित करने की चुनौती का भी सामना करना है .पद से बड़ा महत्व  उन्हें दिया  है कांग्रेस के भीतर वे  कितन असर छोड़ेंगें यह वक़्त बतायेगा .उनके लिए समय कठिन नहीं है क्योंकि भीतर की चुनौतियां उनके लिये  है ही नहीं , बड़े पदों पर यह सुविधा हर किसी राजनीतिज्ञ को प्राप्त नहीं है, चुनौती उन्हें गाँधी परिवार  से  निकलकर अपनी बनाने की है  अपनी दिखाने की है 
सुरेन्द्र बंसल 

Saturday, January 12, 2013

फ्रीज़ से बाहर निकलों सरकार !


सेना के जवान का सर कलम कर ले गए अभी सरकार सख्त कदम उठाने जा रही है आप और हम इंतज़ार करें और धीरज रखें . हमारी सरकार बेहद ठंडी है और उसे गर्म होने में समय लगता है , खून  हमारा  कितना ही खौले  जब तक उबाल सरकार में नहीं आएगा  कोई जवाब प्रतिकार सामने नहीं आ सकता . किसी ने फेसबुक पर मुझसे कहा हम क्या कर सकते हैं फ़ौज को हुक्म तो नहीं दे सकते . कुछ मायनों में यह सही है , फौज गुस्से में है ,उसका खून खौल रहा है सैनिक उपवास अनशन पर  हैं वे बदला चाहते हैं पर क्या करें उन्हें भी सरकार का ही हुक्म मानना है . 

लोकतंत्र हमारा इस ठण्ड में भी फ्रीज़ में बैठा है रूम  टेम्प्रेचर पर आने में उसे वक्त लगेगा तब तक उसकी सख्ती बन पाती है या नहीं , बनती भी है तो कितनी किस तरह की बनती है या सख्त होते रवैय्ये पर कहीं अमेरिका का हथोडा पड़  गया तो
सारी  सख्ती टूट कर बिखर जायेगी  हालांकि रक्षा मंत्री एके अंटोनी कह रहे है लड़ाई अब निर्णायक मोड़ पर है लेकिन उन्होंने यह खुलासा नहीं किया कि किस तरह  का निर्णय लेने जा रहे हैं .हम उम्मीद करें वे भारत के स्वाभिमान को जीवित रखने वाला ही कदम चाह रहे होंगें , सीमा के हमारे प्रहरी हमारा स्वाभिमान है कोई उनका सर धड से काट के ले जाए तो इससे बड़ा अपराध कोई नहीं है और इससे बड़ा स्वाभिमान भी कोई नहीं हैं . सरकार  ने यह जरुर सोचा होगा , हालाँकि देर हो रही है अब तक  भारत का वह मुकुट न जाने कहाँ चले गया होगा . यदि हमारी सरकार कुछ नहीं कर पाई तो तमाम देश वासियों को अपराध बोध होगा ,आखिर  किस तरह वह अपना रोष जाहिर करें   .

पडोसी सच्चा और अच्छा होना चाहिए लेकिन नापाक इरादों का पडोसी हो तो जीना दूभर हो जाता है , पाकिस्तान ऐसा ही पडोसी है उसके मिजाज़ को दुरुस्त करना जरुरी है तभी आप चैन से रह सकते हैं , जघन्य अपराध से उसे बरी नहीं किया जा सकता उसे सज़ा मिलना ही चाहिए .पाकिस्तान बार बार नापाक हरकत  करता रहेगा और हम देखते रहेंगें तो हमारी बुजदिली है ऐसे पडोसी हमारी नाक में दम करे  उसके पहले इलाज़ जरुरी है .
मसला गंभीर है फिर भी हम शालीन होकर अंतरराष्ट्रीय दबाव में आ जाते हैं यह कूटनीति नहीं है कूटनीति वह  है  आप अपनी बात इस तरह रखें कि आपको अंतर्राष्ट्रीय समर्थन मिल जए   हमारी नीति फ़ैल हो  रही है किसी भी तरह से हम दबाव नहीं बना पाते हैं यह हमारी विदेश नीति का बेहद कमज़ोर पहलु है .
हमारे जय जवान सुधाकर सिंह और हेमराज यूँ ही शहीद नहीं हुए है और  वे(मरणोपरांत) उनका परिवार    किसी   पुरस्कार का  मोहताज़ भी नहीं है , इन परिवारों का सबसे बड़ा पुरस्कार तो ससम्मान  इन सपूतों का सर वापस स्वाभिमान से  लाना है , इसलिए फ्रीज़ से सरकार को बाहर निकलना जरुरी है वह भी तत्काल .
सुरेन्द्र बंसल   

Sunday, January 6, 2013

मर्यादाओं के पुरुषोत्तम



देश चिंतित है किस तरह एक निरीह लड़की के साथ पैशाचिक बर्ताव किया जाता है और उसे तड़प तडप कर मरने के लए छोड़ दिया जाता है . ऐसी राक्षसी प्रवृत्ति के लोगो के साथ किस तरह का दांडिक न्याय होना चाहिए ,लेकिन हमारा देश चिंतकों ,विचारकों से ज्यादा नेताओं का देश है जो इन सबसे ऊपर हैं इसलिए हम देख रहे हैं कथित दामिनी पर हुए अत्याचार को हम मर्यादाओं से आंकलित कर रहे हैं , एकाएक देश में अनेक मर्यादा पुरषोत्तम अवतरित हो गए हैं।

लोग कैसी भावना से ग्रस्त हैं या किस तरह के विचार उनके मन में हैं यह उनके बयानों से प्रतित होने लगा है . दरअसल समय इस घटना से न्याय मिलने का है। जरुरत यही है कि  दोषी -अपराधी को इतना दंड मिले कि इस तरह के अपराध करने वाले की रूह काँप जाए। फिलवक्त देश यही मांग रहा है, वह अभी कोई नैतिक शिक्षा की तरफ नहीं देख रहा है इसलिए कि समयकाल सबसे पहले त्वरित न्याय प्रदान करने और सबक देने का है ,समूचा देश इसी मांग पर झुंझला रहा है आक्रोशित हो रहा है।  

लेकिन इस समय देश में कुछ सर्वथा ज्ञानी लोग उभर आयें हैं जो यह जता रहे हैं कि महिलाओं को किस तरह उठना ,बैठना ,पहनना चाहिए , भाई लोगों आपकी नीयत अच्छी है आप संस्कारित राष्ट्र चाहते हैं ,आप अपराध रोकना चाहते हैं आप सत्कर्म को बढावा देना चाहते हैं लेकिन समयकाल तो सोचो , कब किस तरह बोलना चाहिये  यह ज्ञान यदि  हमें नहीं है तो फिर किस बात के ज्ञानी हैं , देश की भावनाओं पर विचार करो भाई फिर कुछ जरुरत हो तो बोलो . क्यों अपने को चर्चा में रहने का मसाला बन रहे हो ,कुछ उंचाई पकड़ने के लिए फिजूल उछल रहे हो उंचाई चढाई  से मिलती है और उसके लिए सही रास्ते से चढ़ना होता है .

मर्यादा एक संस्कारित भाव है जिसका कोई लिंग नहीं है यह कोई पुरुष या स्त्री भी नहीं है ,यह एक आचरण है स्वयं को मर्यादित रहने का  भाव सीखाता है भगवान् श्रीराम ने इसी भाव का अध्यात्म दिया है , यह भाव संस्कार में होना चाहिए जो स्त्री और पुरुष दोनों के लिए समान है इसिलए वे मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाये . उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि  स्त्रियों का मर्यादा भाव क्या है . यह सबके लिए समान सुसंस्कार है जो व्यक्ति के चरित्र और व्यक्तित्व का निर्माण करता है और यही व्यक्ति की पहचान होती है .लेकिन इस समय से परे जाकर जो लोग मर्यादा की बात कर रहे है ऐसे नव अवतरित मर्यादाओं के पुरषोत्तम  स्वयं यह नहीं जान पा  रहे हैं कि  इस समय उनका आचरण किस तरह का होना चाहिए , फिलवक्त की मर्यादा यही है कि  सब देश की भवना के साथ एकजुट होकर उन पैशाचिक अपराधियों को सख्ततम सजा का पात्र बनाए  किसी छिछालेदारी से स्वयं को विवाद  का पात्र नहीं बनाएं।
सुरेन्द्र बंसल