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Monday, January 30, 2012

जिंदगी- एक राह


by Surendra Bansal on Monday, January 30, 2012 at 4:51pm

"खोपड़ियाँ अलग अलग चलती है ,
जिंदगी की इन उलझी राहों में ,
मुकाम उसे ही मिलता है ,
जो हो भाग्य की बाँहों में
भाग्य कोई बना नहीं सकता
होने को कर्म कोई रोक नहीं सकता ,
ठोकरें खाते हुए जिंदगी तो
खिसकती ही रहती है,
कभी अन्दर तक सिसकती ,
कभी अन्दर से दहकती
कभी बाहर से बहकती
फिर भी अपनी ही खोपड़ी से
उलझी हुई राहों पर बढती हुई जिंदगी "
सुरेन्द्र बंसल
संध्या ४.४५, दिन सोमवार, ३० जन.२०12

Saturday, January 28, 2012

शर्म के रत्न


अनेक अनमोल रत्नों से जडित भारतीय क्रिकेट टीम टेस्ट मैचों में जिस तरह आस्ट्रेलिया से परास्त हुई उससे कही अब यह नहीं लगता कि हमारे रत्नों का मूल्य अनमोल है. अनमोल वही होता है जो कही और न मिले न जिसका मोल किया जा सके . हमारे क्रिकेट खिलाडी गौतम गंभीर , वीरेंद्र सहवाग, सचिन तेंदुलकर , वीवी एस लक्ष्मण , महेंद्र सिंह धोनी याने ११ में से ६ रत्न सबके सब  अनमोल फिर भी  सब पीट गए ,धुल गए .
ये हालत आज उत्पन्न नहीं हुए हैं यह तब से चल रहा है जब १९४७ में हम जब पहली बार आस्ट्रेलिया खेलने गए . तब हम पाच टेस्ट मैच में से चार हारे और एक ड्रा रहा था .तब से हम आस्ट्रेलिया में ४० मैच खेल चुके है और आपको बता दें हमें जीत सिर्फ पांच दफा ही मिली है जबकि २६ बार हमें हार देखना पड़ी है हालाँकि ९ बार ऐसी स्थिति रही कि  टेस्ट मैच बराबर रहा . लेकिन ऐसा बहुत कम हुआ है जब आपकी टीम  में एकसाथ 6 बड़े दिग्गज हों सबके सब अनमोल हों और फिर टीम की ऐसी दुर्गति हो कि सारे टेस्ट मैच हार जाएँ तो सवाल ऐसे मूल्यों का  जरुर हो उठता है जिनसे बाज़ार का आधार खड़ा होता है . खेल भी आज एक बाज़ार बन गया है जिसे क्रिकेट ने सबसे अधिक बाजारू बनाया है इसलिए अब खेल रत्नों की कीमत भी वहीँ आंकी जाती है जहाँ बाज़ार होता है ,आज यह बाज़ार कह रहा है कि इन अनमोल कहे जाने वाले रत्नों का कोई मूल्य अब नहीं रहा .
ऐसा क्यों ? इसलिए कि  रत्नों के महारत्न सचिन तेंदुलकर  जिन्होंने आस्ट्रेलिया में २० मैचों में २४१ अधिकतम नोट आउट ५३ की औसत से बनाएं है इस बार के चार मैचो में २८७ रन अधिकतम ८० और औसत ३५ का ही बना सके हैं. दो तिहरे शतक के महाधनी वीरेंद्र सहवाग १० मैचों में ९४८ रन ४७ की औसत से बनाने वाले इस बार चार मैच में सिर्फ १९८ रन २९ के औसत से बना सके है इसी तरह द्रविड़ जो १५ मैचो में ११४३ रन  लगभग ४४ की औसत से बना चुके है इस बार चार मैचों में सिर्फ १९४ रन बना सके है २४ की औसत से. लक्ष्मण भी १५ मैच खेल कर १२३६ रन अपने नाम ४४ की औसत से कर चुके है उन्होंने भी चार मैच  खेलकर   १५५ रन १९ की औसत से बनायें .कप्तान धोनी ७ मैचों में २४३ रन ही बना सके थे जो १८ की औसत से थे इस बार उन्होंने औसत मे सुधार किया और ३ मैचों से २४३ रन बनाकर  २० की औसत  तक पहुंचे . गौतम गंभीर पहली बार आस्ट्रेलिया गए थे चार मैचों में १८१ रन २२ की औसत से बना सके .
जाहिर है  इन छः रत्नों में सभी ने गिरा हुआ खेल दिखाया है   . बाज़ार का खेल आंकड़ों से चलता है और उसका मूल्य रोज़ तय होता है उतार चडाव से साख बनती   और बिगड़ती  है  आज क्रिकेट एक बड़ा बाज़ार बन गया हे तो आंकड़े यही कह रहे हैं कि इन रत्नों का बाज़ार में कोई मूल्य नहीं रहा और फिलवक़्त ये चलने लायक नहीं हैं .अब क्रिकेट बोर्ड जो क्रिकेट को खेल से ज्यादा बाज़ार बनाने के लिए जिम्मेदार है उसे यह समझाना होगा की कौनसे रत्न कितने अनमोल रह गए हैं और कितने ना- मूल्य हो गए हैं .उनका क्या किया जाए /?
इसलिए भी कि रत्न अमूल्य , समृधि और प्रतिष्ठा के लिए भी होते है , जो रत्न खंडित ,धूमिल औइर टूट जाते हैं उनका न बाज़ार मूल्य होता है न प्रतिष्ठा बनी रहती है .ऐसे रत्नों को धारण किये रखना शर्म ही है इसलिए शर्म के रत्नों को धारण किये रहने से बेहतर है उन्हें  तत्काल बदला जाए .
सुरेन्द्र बंसल

Saturday, January 21, 2012

नाक बचाने की जुगत

 
 
पांच राज्यों में चुनाव प्रचार अभियान तेजी से गति पकड़ रहा है . उत्तरप्रदेश,उत्तराखंड, पंजाब,मणिपुर और गोवा में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं लेकिन सब में  उत्तरप्रदेश लोगो की नज़रों में, मीडिया की ख़बरों में और नेताओं की चाहत में सबसे  ऊपर है .हालाँकि पंजाब और उत्तराखंड भी चर्चा में है फिर भी उत्तरप्रदेश के चुनाव एक मिनी आम चुनाव की तरह होते लग रहे हैं ,यहाँ होड़ जोड़ तोड़ का महा अभियान चल रहा है इसके आगे सारे लोक - मुद्दे गौण हो चले हैं .
उत्तरप्रदेश के चुनाव प्रतिष्ठा के चुनाव भी हैं और अपनी नाक बचाने के चुनाव भी है या यह कहे कि नाक बचाने के चुनाव ज्यादा है तो सही होगा. दरअसल यहाँ राजनीति के सेलेब्रिटी अपनी अपनी नाक को दांव में लगाए हुए है .और इनकी बहुतायत दूसरे चुनावी प्रदेशों से यहाँ ज्यादा है . उत्तरप्रदेश की स्थापित मुख्यमंत्री मायावती चाल चरित्र और तौर- तरीकों से स्वयं एक राजनीतिक सेलेब्रिटी बन चुकी है , सोनिया ,राहुल और प्रियंका की मौजूदगी राजनीति को ग्लैमरस  बना देती है वहीँ बीजेपी की उमा भारती के पदार्पित होते ही चहलपहल गहम गहमी ज्यादा बढ़ गई ,मुलायमसिंह, राज बब्बर, जयाप्रदा ,अजित सिंह , अमरसिंह, दिग्विजयसिंह,सलमान खुर्शीद  आदि उत्तरप्रदेश के ऐसे नाम है जो  वहां राजनीति को वजन देते हैं .
इन सबके बावजूद उत्तरप्रदेश में आम लोगों से जुड़े मुद्दे  गौण हैं .जोड़ तोड़ होड़ की राजनीति में राजनीतिज्ञ मसाला फिल्मों की तरह चुनाव में खेल और कहानी तैयार कर रहे हैं . कैसी  कहानी  , जाति वाद की कहानी , वर्ण वाद की कहानी ,लुभावने वादों की कहानी ,आरक्षण की कहानी ,हाथी की कहानी ,आदि . ऐसी कहानियां  जिनका आम लोगों से वास्ता नहीं है, जो महंगाई की मार पर आधारित नहीं है , जो भ्रष्टाचार से जुडी नहीं है ,जो रोज़गार की व्यवस्था भी नहीं है ,जो विकास की धुरी भी नहीं है . किसी अजेंडे में ये प्रमुखता से न हो पर प्रचार से ये  सब गायब है . फिलवक्त उत्तरप्रदेश राजनीतिज्ञों द्वारा ठगा जा रहा लगता है ऐसी ठगी जिसमे लालच से वोट कबाड़ लेने की नीति है , जिसमे चाल से सत्ता हथियाने की खुरपेंच है ,जिसमें कामयाबी सिर्फ एक होड़ है और सत्ता को अपनी  लिमिटेड कम्पनी की तरह बना लेने की चाहत भर है.
बताएं जब अल्पसंख्यक आरक्षण की बात होती है . बुनकरों को सहायता देने की बात होती है ,जाति के आधार पर टिकट देने की बात होती है तब विकास ,महंगाई और  पेट भरने की जुगाड़ के वायदे कौन याद रखता है ,किसी भी राजनैतिक दल में आज इन मुद्दों  के प्रति गंभीरता नहीं दीख रही है सब किसी तरह चुनाव जीत लेने की जुगाड़ में हैं ,ऐसी जुगाड़ जिससे चुनाव आसानी से जीता जा सके , मायावती को अपनी सत्ता बचाने की चुनौती है , कांग्रेस को राहुल को स्थापित  करने की चुनौती है और राहुल के साथ सोनिया और प्रियंका भी साथ है. .भाजपा को जाति गत समीकरणों से ताल बैठाने की चुनौती है इसलिए उन्होंने उमा भारती को आयत कर लिया है , मुलायम सिंह को अखिलेश यादव के लिए जगह बनाने की चुनौती है और  अजीत सिंह को केंद्र में वर्चस्व बनाये रहने के लिए कांग्रेस का साथ निभाने की चुनौती है  .
जाहिर है हर कोई चुनौतियों का सामना कर रहा है .इतनी चुनौतियों में नाक बचाने की जिम्मेदारी अपने आप आ जाति है इसलिए ये सारे लोग उत्तरप्रदेश में नाक बचाने  की जुगत में लगे हैं और जहाँ नाक बचाना होती है वहीँ ताकत भी ज्यादा लगाना होती है इसलिए सबका जोर सबकी होड़ और सबकी ख्वाइश आज उत्तरप्रदेश है ,पंजाब ,उत्तराखंड,मणिपुर और गोवा इनसे कोसो दूर है .

Saturday, January 14, 2012

इस बढ़ती संक्रामकता से तुम मुक्त हो जाओ पाक


पाकिस्तान  में  तख्ता  पलट की आग कुछ ठंडी पड़ी है लेकिन पाक के बड़े पदासीन लोगों ने  बीतें दिनों जिस तरह इस देश में अस्थिरता के हालात उत्पन्न किये हैं उससे न केवल पाक में आग लगी है बल्कि उसकी आंच भारत पर भी आ रही है .
ताज्जुब यह है की सरकार के अंगों की तरह कार्य करने वाली  सेना और न्यायपालिका न केवल सरकार को चेतावनी दे रही है साथ ही अपने गंभीर  मंसूबें भी जाहिर कर रही है यह उस दोहराव की स्थिति है जिसके तहत पाकिस्तान में तीन मर्तबा सेना सरकार का तखता पलट कर काबीज हुई है .अब यह स्थिति फिर बन रही है हालाँकि  फिलवक्त कुछ ठहर सी गई है ,फिर भी तख्ता पलट कर राज़ करने की संकीर्ण मानसिकता की फलफूल रही संक्रामकता से पाक अब भी मुक्त नहीं हुआ है .राष्ट्रपति जरदारी और प्रधानमंत्री गिलानी ठीक से रात गुजार नहीं पा रहे है कब उन्हें लोकतंत्र को दबोच देने वाले  ना -पाक इरादे सोते हुए ही जकड ले , यह स्थिति किसी भी देश के लिए सर्वथा चुनौतीपूर्ण  होती  है इसलिए भी कि कोई भी देश इन हालातों  में आगे नहीं बढ सकता .पाकिस्तान में जिस तरह के आज हालात है वह किसी भी सरकार के लिए मुश्किलों भरे  है ऐसे में सेना की धमकी पाकिस्तान को और गड्डे में ले जा रही है .
पाक जाए गड्डे में यह हम सोच सकते है इसलिए कि जिस तरह के सम्बन्ध हमारे पाकिस्तान से रहे हैं वे हमें पाकिस्तान का हितैषी कभी नहीं बना सकते लेकिन जो हालात आज पाक में बने हैं वे हमारे लिए भी मुसीबत  बन सकते हैं , जरुरी यह है की पाकिस्तान में चाहे जिस दल की सरकार बनें पर चुनी हुई और लोकतान्त्रिक सरकार हो, यही  भारत के लिए बेहद जरुरी है . पाकिस्तान का इतिहास बताता है कि  जब जब वहां फौज ने शासन किया है , भारत के लिए उसने मुश्किलें पैदा की है .यह मुश्किलें चाहे कश्मीर विवाद की हों ,चाहे इस बहाने बढ़ते आतंकवाद की हो या फिर युद्ध के हालात उत्पन्न करने की हो .पाक के तानाशाही हुक्मरानों के समय पाकिस्तान सिर्फ भारत से दुश्मनी ही करता रहा है , पाक सेना और ख़ुफ़िया एजेंसी आय एस आई  भारत में अलगाव वादियों  को उकसाने , आतंकवादियों को ट्रेनिंग देने , आतंकवादी हमले के लिए व्यूह रचने और साज़िश से युद्ध करने के लिए बदनाम है . जब जब सेना का सता पर कब्ज़ा रहा है भारत विरोधी यह अभियान पाक ने ज्यादा चलाया है
इसलिए भारत के पक्ष में यही है कि वहां जब सरकार बने जो भी सरकार बने जो भी राजनैतिक पार्टी  जीते लेकिन वह जनता की लोकतान्त्रिक सरकार हो . गिलानी के बीतें तीन साल भारत के पक्ष में रहे हैं इस बीच दोनों के दोस्ताना और व्यापारिक सम्बन्ध बड़े है और उससे ज्यादा इस दौरान भारत में आतंकी घटनाओं में बेहद कमी आई है साथ ही कश्मीर में भी घुसपैठ बहुत कम हो गयी है . इसलिए जरुरी है पाकिस्तान में लोकतांत्रिक सरकार चले और स्थिरता बनी रहे . वहां तानाशाही से पनपते आतंकवाद , युद्धवाद  के  संक्रामक वायरस भारत नहीं आयें ,साथ ही विश्व के इस सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश के सभी सरकारी अंगों का मिजाज़ भी लोकतान्त्रिक बना रहे उस पर पड़ोस का असर न हो . इसलिए कामना यही हो इस बढ़ती  संक्रामकता से तुम मुक्त हो जाओ पाक .!

Saturday, January 7, 2012

कीचड में कूदने के मायने ..

यूपी में  चुनाव के पहले मायावती ने जो बल्लम घुमाया उसकी मार बीजेपी को लग रही है .बसपा के दागी और बदनाम मंत्री बाबूसिंह रघुवंशी से   पल्ला झाड़ कर मायावती ने खुद को तो बचा लिया लेकिन भाजपाई  फंस गए . बताया जा रहा है भाजपा बाबूसिंह रघुवंशी के करोडो के मोहजाल में नहीं जातिगत समीकरण के चक्कर में जा फंसी है लेकिन क्या जानकर कोई कीचड़ में कूदता है ? यह सवाल आज गर्म है .

दरअसल बाबूसिंह रघुवंशी को बसपा से निकाले जाने और भाजपा में शामिल किये जाने के गहरे राजनैतिक अर्थ है ,यह कोई वाले वाले काम नहीं हो गया है , इसकी पूरी तैयारी पहले से ही हो सकती है . यह कैसे हो सकता है कि ऍन  चुनाव के पहले मायावती अपने सबसे बदनाम और खास मंत्री को अचानक निकाल बाहर कर दे और तभी अचानक एक दरवाज़ा खुले ,और बाहर लिया गया व्यक्ति एक बड़ी पार्टी में शामिल कर लिया जाए . लगता है यह दोनों तरफ की  पूर्व तैयारी ही थी जिसे परोसा ऐसा गया है कि वह नई डिश लगे .  काशीराम के पूर्व  टेलीफोन ओपरेटर  और माया सरकार के दुधारू गाय की तरह कमाने वाले मंत्री बाबूसिंह रघुवंशी जब इअताने बदनाम हो चले की बसपा के लिए मुश्किले बन जाने की संभावना बढ़ गई तो मायावती के लिए समझदारी इसी में थी कि बाबूसिंह रघुवंशी को आउट करें .लेकिन मायावती सरकार में अकेले बाबूसिंह या  एक दो ही भ्रष्ट हों ऐसा नहीं है फिर बाबूसिंह को बाहर किये जाने के पीछे और भी कारण जरुर होंगें जो पहले से ही बन - पक रहे होंगें .

 मायावती दमदार महिला हैं वो कभी ऐसा नहीं कर सकती हैं कि फायदे की कोई चीज़ हाथ से चली जाए .बाबूसिंह से हो रहे नुकसान का सारा गणित मायावती ने जांच परख लिया होगा उन्हें जब लग रहा होगा कि बाबूसिंह रघुवंशी अभी कोई काम के नहीं हैं उन्होंने उसे बाहर कर दिया .और यह दिखला दिया कि वह दागदार मंत्रियों पर कड़ी कारवाई कर सकती हैं . इससे मायावती को दो फायदे हुए एक. नुकसान वाला काम ख़त्म हो गया . दो. भ्रष्टाचारी  पर कारवाई कर मायावती स्वयं स्वच्छ और साफ़ हो गयी हालांकी बुंदेलखंड में उनका गणित भी कुछ गड़बड़ा सकता है .
वहीँ भाजपा भी कोई ऐसे ही बाबूसिंह को तुरत फुरत अन्दर लेने को तैयार नहीं हो गयी होगी . उसकी भी पहले से ही तैयारी लगती है . किरीट सोमैय्या के मार्फ़त आरोपों के घेरे में लेने का काम भी एक साजिश हो सकती है . वह यह कि  आरोपों से मायावती को इतना गड़बड़ा दो कि बुंदेलखंड के इस  बड़े  नेता को बाहर करने के लीये मायावती मजबूर हो जाए और ऐसा हुआ जब बाबूसिंह समेत एनी भी बाहर किये गए .भाजपा की यह पूर्व तैयारी इसलिए भी लगती है कि बीते साल मार्च में मुरादाबाद के जिस मिड -टाउन क्लब में भाजपा के बड़े नेता जिनमें मुख्तार अब्बास नकवी, कलराज मिश्रा, सूर्यप्रताप शाही, मुरली मनोहर जोशी और विनय कटियार भी थे , एकत्र हुए थे वह आयोजन बाबूसिंह रघुवंशी के खासम ख़ास सौरभ जैन का था और तब सौरभ ने तीन हज़ार कार्यकर्ताओं की पार्टी करने में भाजपा पर बड़े उपकार किये थे .यहीं से वह गणित बना तैयार हो गया था जिसका परिणाम  बाबूसिंह रघुवंशी को भाजपा  में शामिल करना है . मायावती बाबूसिंह को बर्खास्त नहीं करती तब भी बाबूसिंह मायावती के लिए सरदर्द बन सकते थे और भाजपा का सुप्पोर्ट एन चुनाव के वक़्त कर सकते थे . माया ने यह सब भांप कर ही बाबूसिंह को बर्खास्त किया हो .
जाहिर है यह राजनैतिक खेल है जो पहले से ही तैयार किया गया लगता है , भाजपा बिना फायदे के एकाएक चुनाव में बदनामी  क्यों मोल लेती यह राजनैतिक दुराचार  जरुर लगता है और गडकरी चूँकि  अध्यक्ष हैं इसलिए गड़बड़ी उनकी नज़र आ रही है पर इसमे कई नेता शामिल रहे है जो रन ले लिए जमीन तैयार कर रहे थे .यह इसलिए भी कि कोई कीचड में जानकार नहीं कूदता है और कमल जो जानता है वह कीचड में ही बेहतर खिलता है वह भी ऐसे कभी कीचड में कूदता नहीं है ,यह ज़रूर कि नैतिकता की डगाल  नाज़ुक  होती है और कीचड में भी कूदने से वह धराशायी हो सकती है .
सुरेन्द्र बंसल