इसे संसद के भीतर चले हंगामे की इतिश्री कहिये या हंगामे की परिणिति लेकिन चुप रहने वाले प्रधान मंत्री अब मुखर हो गए हैं और आखरी दिन उन्होंने राष्ट्र के नाम सन्देश देकर कम और नपेतुले शब्दों में कुछ कायदे की बाते कह दी . आप याद कीजिये २६ अगस्त के ब्लॉग " ईमान से ढूंढें बेईमान " जिसमे कहा गया था 'अपने अपने पक्ष रखने से कौन रोकता है. प्रधानमंत्री ने अपना पक्ष तैयार कर लिया है लेकिन संसद के भीतर ही वे बोलना चाहते हैं उन्हें बोलने नहीं दिया जा रहा तो चुप रहने की भी क्या जरुरत है राष्ट्र के नाम सन्देश में ही अपनी इमानदारी जतला दो . सम्पूर्ण राष्ट्र भी एक सर्वोच्च संस्था है और राष्ट्र के लिए ही संवैधानिक संस्था संसद है . फिर भी जहाँ मौका मिले अपनी बात कह दो और अपना ईमान बचा लो यह तो होना ही चाहिए , पीएम साहब आपकी प्रतिष्ठा ईमान की है और उसे बचाए बनायें रखना आपका धर्म है , इसे अविरल निभाएं ' प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह को शायद यह बात जाँच गयी और शुक्रवार को वे अपनी शांत छबि को तोड़कर कुछ मुखर हो गए और उन्होंने राष्ट्र के नाम सन्देश में राष्ट्रवासियों से बात की या यूँ कहें कि संसद नहीं चलने देने के लिए देश के नागरिकों से विपक्ष खासकर बीजेपी की शिकायत भी की .
प्रधानमंत्री ने सन्देश में स्पष्टता से बात की लेकिन अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप वह ईमान नहीं जताया जिसकी देश के नागरिकों को जरुरत थी . प्रधानमंत्री ने यह जरुर कहा कि लोकलेखागार की रपट से निकले निष्कर्षों पर संसद के भीतर बहस होना चाहिए इसके लिए उन्होंने सही सोच रखनेवालों का समर्थन भी माँगा . प्रधानमंत्री ने यह सही किया कि उन्होंने देश के लोगों का मान रखा और उन्हें सर्वोपरि मानकर उठ खड़े होने की अपील की कि वह बीजेपी से कहें कि लोक्संस्थाओं में कामकाज चलने दें. पी एम् साहब अच्छा बोले, सही बोले, नपातुला बोले लेकिन पूरे ईमान से नहीं बोले . जब बेईमान को पकड़ना है तो ईमान का इज़हार करना पड़ेगा , एक लाख छियासीं लाख करोड के कथित महा घोटाले पर नपी - तुली के साथ सधी हुई सीधी बाते भी होना चाहिए और वह भी जब आप देश को संबोधित सन्देश दे रहे हों . मनमोहन सिंह को गर्ज़ाने की जर्य्रत नहीं थी केकिन जो जरुरत थी वह इस सन्देश से पूरी नहीं हुई . उन्हें अपनी बढती हुई आंच पर कुछ विश्वसनीय तथ्य कहना थे, सच से देश का सामना कराना था ,कुछ उस बेईमानी का खुलासा करना था जो हल्ले की वजह बना , आखिर कौन लोग हैं इस महा घोटाले के पीछे इसका उन्हें कुछ संकेत देना था , यह सब आखिर है क्या जाहिर करते तो एक विश्वास का महास्वरुप आप देश को दिखा सकते थे .
ईमान आत्मा से निकलता वह कथ्य है जिसका सत्व कोई जाने या न जाने एक आत्मसंतुष्टि जरुर देता है कि जो कुछ सही था वह मैं ईमान से कह चूका हूँ . कोयला घोटाले पर इसी ईमान की जरुरत है , बेईमान को पकड़ना और दूध पानी को छानकर अलग करना है तो प्रधानमंत्री जी को अभी कुछ और इमानदारी दिखाना है इसलिए कि समूचा राष्ट्र उन्हें एक ईमानदार व्यक्तित्व मानता रहा है . राष्ट्र आपकी बात पर विश्वास करना चाहता है अपनी बात कहें और खुलकर पूरे साहस से कहें , प्रतिकार भी करें तो साहस से करें ,किसी तरह का पेच न रखें इसलिए कि आपका ईमान राष्ट्र की शान है इसे बनायें रखें .COPY RIGHTS @RESERVED FOR SURENDRA BANSAL KEE KALAM SE
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