चाल ऐसी हो कि अँधेरी राह पर भी उजाले हो जाएँ.....
राहुल फंस गए हैं .... अपने कहे पर उन्होंने सोचा नहीं बस कह दिया , एक जिम्मेदारी वाली बात को गैर जिम्मेदाराना ढंग से......भीतर की बात कहाँ आना चाहिए ,कैसे आना चाहिए यह विचार तो होना ही चाहिए. सब कह रहे हैं राहुल ने हिन्दू कट्टर वाद की बात कर धर्म को आतंकवाद में घसीट दिया है.. लेकिन बात कुछ इस से बढ कर भी है.. जिसे अभी तक कोई नहीं कह पाया है.. विनय कटियार ने हलके से कुछ कहने कोशिश जरुर की थी लेकिन सब आतंकवाद तक उलझ कर रह गए....
दरअसल राहुल के वक्तव्य का अर्थ के साथ समयपक्ष भी गलत है ... उन्होंने बेहद गंभीर बात एक विदेशी राजनयिक के सामने कही है ... अमेरिकी राजदूत को यह बताये जाने की कतई आवश्यकता नहीं थी कि लश्कर ए तोयबा से कही ज्यादा ख़तरा भारत को हिन्दू कट्टरपंथियों से है.... राहुल उस गंभीरता को चूक गए जो जो एक परिपक्व राजनेता में होना चाहिए .... राजनीति की सड़क पर जब पैदल चलना हो तो इतना सतर्क और सावधान तो रहना ही होता है की पाँव तले की कीचड़ कपड़ों पर न आये .... राहुल ने अपने कपडे खुद गंदे किये हैं .... लेकिन बात यहीं तक नहीं है...
जो कुछ हुआ वह सीमित नहीं है राहुल वाकई एक बड़ी भूल कर बैठे हैं ... उन्हें भारत के अंतरराष्ट्रीय अस्मिता और कूटनीति को ध्यान में रखना था..... राहुल को कहीं यह लगता था या विश्वास भी था कि देश में किसी धर्म या सम्प्रदाय से सम्बंधित आतंकवाद पनप रहा है जो देश के लिए चुनौती है तब भी उन्हें इसे अमेरिकी राजदूत को कहने की क्या जरुरत थी .... इससे जो बात विश्व तक पहुँची है उसका अर्थ यह है कि आतंकवाद से लड़ने वाले भारत जैसे देश के भीतर भी एक नया आतंकवाद पनप रहा है... .. सीधा अर्थ है कि हमारी लड़ाई आतंकवाद से ख़त्म हो गई और हम भी क्या पाकिस्तान की तरह एक आतंकवादी देश कि तरफ बढ रहे हैं ...... यह बात उठाना शुरू हो गई तो भारत की बहुत मुश्किलें बढ जायेंगी...... इस पर राहुल ने शायद सोचा ही नहीं ... राहुल ही क्यों और दुसरे कांग्रेस लीडर्स भारत में ही सांप्रदायिक आतंकवाद की बार्तें करते रहे हैं वे भी गैरजिम्मेदाराना आचरण कर हैं...... राहुल भी न समझी में कुछ ऐसे ही नेताओं के साथ हो गए हैं .....घर की बात को घर में कहना होता है राहुल ने इसे बाहर कह दिया है ..... उन्हें इसकी क्या जरुरत थी और किसी बाहरी य विदेशी को कहने से क्या समस्या हल हो जाती है? .... क्या कोई बेटा बाहर जाकर कहता है की उसे आज पिता ने थप्पड़ मारा है या कोई बाप यह कहता की उसका बेटा बिगड़ा हुआ है... बात सिर्फ समझाने की है... राहुल के लिए राह अभी बड़ी और नयी है उन्हें दूर तक चलना है तो तो अपने को संभल कर और स्वाभिमान बना कर चलना पडेगा ... .. लम्बी राह पर चलने के लिए साफ़ सुथरा बना रहना जरुरी है क्योंकि राह पर कपडे न बदले जा सकते हैं और न ही उजले किये जा सकते हैं ..... चाल तो ऐसी होना चाहिए कि अँधेरी राह पर भी उजाले हो जाएँ.....
<span>सुरेन्द्र बंसल </span>
Saturday, December 18, 2010
Monday, November 8, 2010
साझेदारी का लोकतंत्र
साझेदारी का लोकतंत्र
ये पंक्तियाँ जब मै लिख रहा हूँ , संसद में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का भाषण पूरी लज्ज़त के साथ ख़त्म हो चुका है. बराक ओबामा ने बहुत सी बातें कही . उन्होंने भारत को विश्व शक्ति बताया , भारत को सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य बनाने के लिए खुला समर्थन दिया , उन्होंने भारत की सराहना ही नहीं की साथ निभाने का वचन भी दिया , पकिस्तान को चेताने की हिम्मत की कि वह आतंकवाद का सफाया करें . उन्होंने महात्मा गाँधी ,स्वामी विवेकानंद,डा. भीमराव आंबेडकरऔर गुरूवर रवीन्द्रनाथ टैगोर जैसी महान भारतीयों को याद किया और भारत की इस बात के लिए सराहना की कि भारत ने वह काम कुछ दशकों में कर दिखाया है जो सदियों में पूरा होता है. जाहिर है बराक बहुत विश्वाश में और पूरे जज्बे से बोले .
बराक ओबामा का जो कथन इन सबसे अलग और सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है वह यह कि 'एक और उदाहरण भारत और अमेरिका सहयोग का ये होगा कि ''हम दिखायेंगे कि लोकतंत्र आम आदमी के लिए काम करता है, ये राष्ट्रपतियों ,मंत्रियों के बीच की साझेदारी नहीं हो सकती ये लोगों के बीच होना चाहिए .अमेरिकी राष्ट्रपति का यह कथन इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि यह बात एक बड़े लोकतान्त्रिक देश अमेरिका के राष्ट्रपति ने दूसरे बड़े लोकतान्त्रिक देश भारत की संसद में तमाम सांसदों , मंत्रियों , नेताओं और सरकार के बीच कही है.
दरअसल साझेदारी लोगों के बीच होना चाहिए , यही सबसे विश्वास ,कार्य का समर्थन और राष्ट्र का हित है. अब तक सरकारें लोकतान्त्रिक देशों में जिस तरह चल रही हैं वहाँ लोकतंत्र के बावजूद जनता की भागेदारी या साझेदारी कहीं नहीं है.जहाँ तक भारत का सवाल है यहाँ अब भी ब्रिटिश हुकूमत जैसा शासन बरकरार है , आम चुनाव के बाद जनता सरकार कि सेवक हो जाती है और सरकार के नुमाइंदे राजा बन के बैठ जाते हैं . सरकार कही से राष्ट्र की और राष्ट्र की जनता की सेवक नज़र नहीं आती .
बराक ओबामा के इस खुले विचार का समर्थन किया जाना चाहिए और सरकारों को इस पर विचार करना चाहिए कि देश के भीतर भी जनता सरकार में साझेदारी से काम करती नज़र आयें. फिर यह शुभ होते देर नहीं लगेगी कि दो राष्ट्रों की जनता के बीच साझेदारी का खुलापन और विश्वास भी नज़र आने लगें.
सुरेंद्र बंसल
surendrabansalind@hotmail.com
Monday, November 1, 2010
बराक के पहले दीपावली
by Bansal Surendra on Sunday, October 31, 2010 at 2:26pm
बराक ओबामा भारत के दौरे पर उस वक़्त आ रहे हैं जब देश अपने परंपरागत उत्सवी त्यौहार दीपावली की रोशनी से जगमग कर रहा होगा, फिर भी बराक और दूसरे सब कार्य दीपावली के आगे फीके लग रहे हैं.
शनि - पुष्य से ही बाज़ार सज कर व्यस्त हो गए हैं ,परिवारों में भी उत्सव की तैयारियों की व्यस्तता है . ५ नव. की तैयारियां दीपों के उस उत्सव के लिए है जिसके आगमन से वैभव रूपी लक्ष्मी हर घर में पदार्पित होती है . साल में एक बार लक्ष्मी जी इसी तरह आती हैं और हर घर में ख़ुशी बाँट जाती है.
बराक ओबामा की फिर क्या खबर लें , अभी किसे फुर्सत है बराक के आने पर नाप तोल करने की . बहुत से भारतीयों को अभी पता ही नहीं है की अमेरिकी राष्ट्रपति भारत आ रहे है चार दिन में यहाँ से बिदा होंगे . सच, यह भी एक घटना है जो होने जा रही है, न्यूज़ चैनल वाले बहुत चिल - पौं करते हैं लेकिन दीपावली पर उन्हें खामोश टी नहीं लेकिन संयमित होना पडेगा और बराक के पहले लक्ष्मी पूजन की विधियाँ और तंत्र- मंत्र के लुभावने नुस्खें बताना ही पड़ेंगें.
दिल्ली में तो मैं हूँ नहीं , नहीं तो आपको बतलाता की किस चेनल वाले ने कितने पारिश्रमिक पर कैसे- कैसे पंडित , तांत्रिक और ज्योतिषियों को एक प्रोफेशनल की तरह बुक किया है. आखिर दीपों के पम्परागत त्यौहार की रंगत से कौन दूर हो सकता है फिर चैनल्स तो पक्के मास्टर हैं अपने प्रोफेशन में. उन्हें बराक के पहले दीपावली को महत्व देना ही पडेगा .
दीपों के इस पावन त्यौहार पर हम आपसे ज्यादा राजनैतिक, सामाजिक, दार्शनिक बातें नहीं करना चाहते , परम्पराओं में साथ निभाते हुए आपकी ख़ुशी का एक दीप हम भी प्रज्वलित करना चाहते है , इस कामना के साथ की मेरे राष्ट्र में कभी कोई विपदा न आये , लक्ष्मीजी की कृपा ऐसी बने कि हर भूखे जन को भरपेट अन्न मिले. बेकाम को काम, बेसहारे को सहारा मिल सके, जहाँ दुःख हो वहां सुख का वैभव हो, मुद्राएँ भी वहां ज्यादा फले जहाँ उसकी प्राथमिक जरुरत हो और आप सबकी कामनाएं फलीभूत हों.
दीपावली पर हार्दिक -हार्दिक शुभकामनाएं !!
सुरेन्द्र bansal
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