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Wednesday, December 23, 2015

कीर्ति का अपयश

📝अंदाज़ अपना ...........


कीर्ति का यूँ ही अपयश होना था सो हो गया। आप आज़ाद हैं आज़ादी का जश्न मना सकते हैं लेकिन अपने घर ,देश की इज़्ज़त को दांव पर कैसे लगा सकते हैं। कीर्ति ने यही किया ।अपनी ही पार्टी की साख को दांव पर लगाया उसे बदनाम किया और विवादित बना दिया । कीर्ति समेत तमाम विद्रोही अपनी - अपनी पार्टी को परिवार मानते हैं फिर परिवार की इज़्ज़त को सड़क पर नीलाम क्योँ करते हो । कीर्ति आज़ाद का निलंबन ऐसे तमाम तमतमाये लोगो को सबक है जो गाहेबगाहे तेज़तर्रार तेवर दिखाने का प्रयास कर अनैतिक आचरण करते हैं।

मैं यहाँ यह नहीं कह रहा ताज़े मसले बेबुनियाद हैं हो सकता है उसमे उतना ही तंत हो जितना जताया जा रहा हैं। पकाया हुआ हर भोजन बेस्वाद नहीं होता है लेकिन उसे ढङ्ग से ,इज़्ज़त से नहीं परोसा जाए तो तो उसका स्वाद कोई मायने नहीं रखता और संबंधों ,रिश्तों का जायका बिगाड़ने में देर भी नहीं करता । कीर्ति आज़ाद ने यही किया , वे घर के  बाहर बहुत चिल्लाये गुर्राए , बौखलाए लेकिन घर के भीतर, पार्टी के भीतर अपनी बात नहीं रख सके ,जता सके और न ही संयम रख सके । इस घटना को आंतरिक लोकतंत्र के तकाज़े पर नहीं देखा जाना चाहिये इसलिए भी कि आपकी बात मानी जाए या नहीं आपको अपनी बात कहना आना चाहिए । आप इतने सब्रदार नहीं है कि अपनी बात असरकार तरीके से कह सके तो मान लीजिये आपकी यह अपनी कमज़ोरी है । इसका खामियाजा आपका अपना है जो आपके पास आएगा ही । कीर्ति को यह भ्रम था कि सड़क पर कहूँगा तो  बिल्लियाँ भीगी हो दुबक जाएंगी  लेकिन उन्हें यह पता होना चाहिए जेनेटिकली बिल्लियों के पंजे शेर की तरह होते हैं इन कथित बिल्लियों ने सामूहिक निर्णय का पंजा कीर्ति पर मार दिया तो निलंबन की चोट तो लगना ही थी।

कीर्ति बीजेपी से फिलवक्त आज़ाद हो गए और शत्रुघ्न अब भी शेर बने दहाड़ रहे हैं। इसी गलतफहमी का शिकार हुए कीर्ति आज़ाद अब अपने लटके हुए चेहरे पर ओज़ नहीं ठहरा पा  रहे हैं । दरअसल इस तरह के कृत्य जब पार्टी के भीतर से निकलकर् बाहर आते हैं तो उसका समयकाल बहुत महत्वपूर्ण होता है।  कोई घटना , कार्य, गलती ,व्यवहार समय पर नहीं कही जताई जाए तो नियत साफ़ नहीं लगती। आप दूसरों को घेरने की नियत से  बेसमय शोर करें तो यह बदनियती है और अनैतिकता है । लेकिन जब आपको यह मालूम पड़े कुछ गलत हो रहा है उसका वहीँ खुलकर विरोध करें तो यह नैतिक भी है और आपका ईमान भी। मुझे लगता है अरुण जेटली के मसले पर कीर्ति ने इस नैतिक आचरण और ईमान को ताक पर रख दिया था उन्हें डीडीसीए की गड़बड़ियों को डीडीसीए के भीतर ही समय पर पुरजोर तरीके से उठाना चाहिए था। लेकिन कीर्ति ने यह नहीं किया वे साबुत एकत्र करते रहे जब बात उनके अनुकूल नहीं रही उन्होंने ने चिट्ठा खोल दिया । उन्हें यह सब पहले करना चाहिए था । यह कोई कीर्ति नहीं है ,यही कीर्ति का अपयश है ।
सुरेंद्र बंसल (C)
8:30 23122015