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Sunday, October 23, 2011

विश्वास का एक दीप जलाएं हम सब


असंख्य  दीपों का  महा पर्व दीपावली नई रोशनी और नई ख़ुशी के साथ नई सौगातें और नई कामनाएं लेकर द्वार पर खड़ी है . कार्तिक अमावस की  रात आम अमावस की तरह  कभी काली नहीं होती .हर भारतीय इस अमावस पर ख़ुशी और उमंग लेकर देर रात तक जागता है और शुभकामनाओं के लेन- देन का बगैर लाभ हानि के साथ आदान प्रदान करता है , सच तब सबकी मनोभावनाएँ  कितनी अनुकूल और एक दूसरे के प्रति विश्वास की  हो जाती है और एक रीत की तरह कई दिनों तक इसी तरह चलती रहती है ,यह रीत एक व्यवहार क्यों नहीं बनती है ?

दरअसल विश्वास का स्वरुप बहुत कच्चा है ,न जाने कब टूट जाए और न जाने कब उसे तोड़ दिया जाए. विश्वास एक व्यवहार बनने की जगह तोड़ने की प्रथा बनते जा रही है . आज राष्ट्र इसी अविश्वास की बढ़ती दुर्भावना से ग्रस्त है . देश चल रहा है लेकिन विश्वास कहीं नहीं है . राष्ट्र को चलायमान रखने के सभी कारक तत्व आज अविश्वास से देखे जा रहे है . यह क्यों है ? सरकार के प्रति जिस तरह का अविश्वास इस समय है उतना कभी नहीं रहा . भ्रष्टाचार और महंगाई  ने आम जनता को जितना त्रस्त किया है उससे किसी भी चुनी हुई सरकार के प्रति जन भावनाएं विश्वास की नहीं है . यह सबसे बड़ा दुर्भाग्य है . इसलिए भी कि जिस सरकार को ल्कोतान्त्रिक ढंग से जनता ने चुना और राज़ चलने का विश्वास जाहिर किया वही सरकार के प्रति उसका विश्वास नहीं रहा , ऐसा क्यों ?

लोकतंत्र में सरकार को बनाने , चलाने और उसे चेताने वाले प्रमुख तत्व राजनीतिज्ञ भी आज उतने ही अविश्वास के घेर में हैं . हर राजनीतिज्ञ अपने लिए काम करते हुए दिख  रहा है , उनका यह कर्म राजनीति की  परिभाषा ,उसकी शाब्दिक अर्थता . उसके दायित्व की नैतिक बाध्यता से दूर है .फिर भी वह राजनीतिज्ञ है. जब वह अपना कर्म अपने लिए कर रहा है तो फिर वह राजनीतिज्ञ कैसे हुआ . आश्चर्य  यह होना  कि  वह राजनीतिज्ञ  का लिबास पहनकर किस तरह वी आई पी बना हुआ है  .पर अपने शांत और ज्यादा संयत देश में यह चल रहा है .

राष्ट्र में केंद्र से लेकर ग्राम स्तर तक अगर सरकार चलती हुई दिखती है तो उसके जिम्मेदार कसा हुआ सरकारी तंत्र है जिसके भिन्न भिन्न हिस्सों में कई छोटे बड़े अफसर कर्मी काम कर रहे हैं . इन्हें अधिकार  और कानून दिया गया है एक विश्वास के साथ कि ये सब अपनी अपनी जिम्मेदारी कार्य सीमा के भीतर रहकर काम करेंगे और राष्ट्र को सविधान , कानून और प्रावधानों के अनुरूप गतिशील रखेंगे , लेकिन ये भी अंग्रेजों के काका है ,जनता के लिए काम करने का उन्हें भान नहीं है सिर्फ पॉवर के दुरूपयोग से राज़ करने के अभिशप्त हो गए है ये सभी . फिर विश्वास कहाँ है और अंगेजों की अफसरी का खोट इनके जींस में क्यों है ?

आज इसी बढती  अविश्वास की भावना से जनता त्रस्त है .हम विकसित देश की तरफ बढ़ रहे हैं लेकिन देश के भीतर हर मोर्चे पर अविश्वास बढ़ रहा है .लोग अब एक दूसरे को भी अविश्वास से देखते हैं ,कारपोरेट और व्यवसाय जगत में भी अविश्वास है .जबान का विश्वास अब रहा नहीं इसलिए भी कि लिखा   हुआ   भी अब धोखा बन गया हैऔर नीयत पर अमिट दाग साफ़ देखें जा रहे हैं . ऐसी परिस्थतियों में विश्वास के नव दीप की आज सख्त जरुरत है .सरकार ,नेता, अफसर ,कर्मचारी और जनता सबको विश्वास की नव लौ जलना होगी . दीप पर्व दीपावली पर सब अपनी इस जिम्मेदारी को समझे ,राष्ट्र के साथ ली शपथ को पूरा करने का प्रण करें और अपने स्तर पर हर दुर्भावना को वाकई निकल फेंके तो विश्वास के नवनिर्माण के साथ देश को हम सब मिलकर पुलकित , ज्योत्सनामय, और सशक्त बना सकते हैं , इसलिए इस दीपावली जब आप सैकड़ों दीपक से घर - आँगन रोशन करें तो प्रण पूर्वक एक दीप अलग से विश्वास का भी जलाएं ! इस शुभ भावना के साथ दीप पर्व की शुभकामना !!
सुरेन्द्र बंसल  

Sunday, October 16, 2011

EDITORIAL


कूटनीति से चल रही है राजनीति 
भ्रष्टाचार और सुशासन को लेकर भाजपा नेता लालकृष्ण आडवानी की यात्रा चल रही है और उधर अदालत ने जमीन घोटाले , भ्रष्टाचार के आरोप में कर्नाटक  के विवादित नेता एस येदिउरप्पा को जेल भेज दिया है .वहीँ कांग्रेस की तेज़ लाल तल्ख़ मिर्च दिग्विजयसिंह की चिठ्ठी का असर यूँ हुआ कि अन्ना हजारे ने कांग्रेस के साथ भाजपा को भी भ्रष्टाचार के लिए बराबर का दर्ज़ा  दे दिया .  प्रशांत  भूषण की अदालत परिसर में पिटाई ने प्रशांत को अन्ना टीम में विवादित कर दिया. भ्रष्टाचार अभी गला नहीं है लेकिन भ्रष्टाचार ने इस आन्दोलन को गलाना शुरू कर दिया है . अन्ना मौन पर है तो ये सवाल ज्यादा उभर रहा है कि क्या जन लोकपाल के पहले भ्रष्टाचार के खिलाफ चले हर आन्दोलन को एक कुटनीतिक ढंग से दबा दिया जायेग . फिलवक्त यही लगता है .

हालांकि येदिउरप्पा को जेल भेजने का फैसला अदालत का है लेकिन इससे भाजपा पर हमले और खासकर आडवानी की यात्रा की उपयोगिता पर सवाल खड़े कर दिए गए हैं . पूछा जा रहा है कर्नाटक में भाजपा भी भ्रष्ट नेता को बचाती रही है इसका कोई तर्कसंगत जवाब भाजपा के पास नहीं है .दिग्गी राजा की चिठ्ठी ने इतना असर जरुर बताया कि अन्ना हजारे को वह बोलना पड़ा जो उन्होंने अब तक नहीं कहा था . अन्ना हजारे ने यदि भाजपा को भी भ्रष्टाचार के मामले में कांग्रेस के बराबर दोषी बताया है तो यह दिग्विजयसिंह की कुटनीतिक चाल का भंवर है जिसमे अन्ना  न चाह कर भी फंस गए और दिग्विजयसिंह ने कांग्रेस के शब्द अन्ना के मुंह में डाल दिए . हालाँकि कांग्रेस प्रवक्क्ता जनार्दन द्विवेदी ने दिग्विजयसिंह के पत्र पर अनिच्छा जाहिर कर इसे अनुपयुक्त बताया था  फिर भी इससे कांग्रेस को लाभ और भाजपा तथा अन्ना  टीम दोनों को नुकसान हुआ है .

श्री राम सेना ने प्रशांत भूषण की जो पिटाई की इसकी खुफिया जांच हो तो शायद यह तथ्य सामने आये  कि इस पिटाई के पीछे कोई साजिश है जिसमें श्री राम सेना हथियार बनी हैं . प्रशांत भूषण को अदालतपरिसर  में उनके दफ्तर में  जाकर पीटना कोई सीधा और सरल बात नहीं  है हो सकता है यह सुनियोजित काम हो . इसलिए भी कि प्रशांत भूषण के कश्मीर के सम्बन्ध में बयान देने के कई दिनों बाद यह हिंसक प्रतिक्रिया हुई है . हिंसा एक उग्र स्वभाव है जो तत्काल रिएक्ट करती है . श्री राम सेना को यदि प्रशांत भूषण को पीटना था तो वह उन्हें कहीं भी और जल्दी पिट सकते थे लेकिन वे योजनानुसार पिटे  गए इसका मतलब है कोई है जो श्री राम सेना को अपना हथियार बबन रहा है .

प्रशांत भूषण की पिटाई से अन्ना के विरोधियों को फायदा पहुंचा है . अन्ना टीम में भीतर ही भीतर मतभेद उभर गए . जो अन्ना अब तक प्रशांत भूषण के बयान पर चुप्पी लगाए थे उन्हें कश्मीर पर अपना रुख स्पष्ट करना पड़ा . इस मामले पर अन्ना पहले और तत्काल भी बोल सकते थे लेकिन इस गंभीर मसले पर उन्होंने देर की. अगर जल्दी बोल लेते और प्रशांत भूषण को समझाईस दे लेते तो शायद प्रशांत भूषण पिटाई से बच जाते , अन्ना टीम भी विवाद और फूट से बच जाती .

बहरहाल देश में राजनीति कूटनीति से चल रही है और कुटिल चाले चली जा रही है इसलिए अपनी आखरी लोकयात्रा पर निकले आडवानी का रथ भी खिसक खिसक कर चल रहा है .कूटनीति एक तरह की कुटिलता है राजनीति इस तरह चलती रही तो किसी तरह का जनांदोलन कभी सफल नहीं हो सकेगा ..
सुरेन्द्र बंसल

Wednesday, October 5, 2011

सावधान अन्ना !

सावधान अन्ना!

लगता है अन्ना टीम एक बार फिर जल्दबाजी में है. यह जल्दबाज़ी जन लोकपाल में देरी से उपजी जरुर है लेकिन जल्दबाजी इस बात की चेतावनी है  कि कांग्रेस को वोट नहीं देना ,यह धोखेबाज़ पार्टी  है...समय के पूर्व जल्दबाजी में दिया गया अपरिपक्व बयान लगता है कांग्रेस को लेकर अन्ना हजारे या अन्ना टीम का जो  भी अनुभव हो , दुराभाव हो या मत और मन हो ...अभी से सीधे यह सन्देश देना कि जन लोकपाल बिल में देर हो तो कांग्रेस को वोट मत देना अनुपयुक्त है. अन्ना टीम ने हिसार उप चुनाव के लिए इसी तरह का एक विडियो भी जारी कर दिया है . अरविन्द केजरिवाल  इस विडियो को लेकर हिसार जा रहे है और किरण बेदी ,प्रशांत भूषण भी पहुँच कर कांग्रेस के खिलाफ प्रचार करेंगें .

इस तरह के आक्रमण के लिए अन्ना के पास अभी बहुत वक़्त था फिर अन्ना और उनकी टीम किस जल्दबाजी में है ....इस तरह से वे  अपनी लाइन खो सकते हैं ..अभी देश अन्ना की तरफ बहुत आस लगाए बैठा है ऐसे में अन्ना और साथियों को न केवल परिपक्वता दिखाना चाहिए  है बल्कि परिपक्वता रखना भी है ,और यह भी याद रखन चाहिए कि बेवजह आक्रामक बयान देना भी एक तरह से हिंसक वृति है .किसी भी अहिंसक आन्दोलन का मतलब हाथापाई और तोड़फोड़ ही नहीं है विचारों में भी अहिंसकता भी बेहद जरुरी है ...
अन्ना को शिवाजी भी कहा गया है शायद इसीलिए इतनी आक्रामकता हो लेकिन शिवाजी का रुख  जो  आक्रामक था वह उनका नैसर्गिक स्वभाव था उसमे कोई दो -राह नहीं थी और तब की आवश्यकता भी यही थी आज अन्ना को मुद्दा जीवंत रखना है और उसे अंजाम भी देना है तो संयत और धैर्य भी रखना होगा . आप सरकार  पर चढ़ बैठे यह जरुरी है लेकिन सड़क पर खड़े होकर उसे चाबुक लगाएं यह नहीं होना चाहिए. धीरता नहीं होगी तो आप अपने मिशन में फ़ैल हो जायेंगें .फिल वक़्त अन्ना इस धीरता को खोते नज़र आ रहे हैं उन्हें संभलना होगा और अपने मार्ग पर तद अनुसार ही बढ़ना होगा .
इसलिए भी की अन्ना आज देश के महत्वपूर्ण व्यक्तित्व भी है और विश्वास भी .. उन्हें समझ लेना चाहिए वे एक राजनेता यदि नहीं हैं तो वे राजनेता की तरह दिखे भी नहीं और एक बार राजनेता कि तरह पहचान लिए गए तो विश्वास आधा निकल जाएगा फिर वो न तो बनेगा और न तो ऐसा दिखेगा जो आज है इसलिए सावधान अन्ना!
सुरेन्द्र बंसल

Saturday, October 1, 2011

क्योंकि अन्ना घूसखोरी जारी है .....



अन्ना हजारे के आन्दोलन के दौरान घूसखोरी के खिलाफ जो जनमत बना था उसका असर शमशान की आग की तरह धीरे धीरे ठंडी पड़ रहा है लेकिन घूसखोरी न भस्म हुई है और न ही कम हुई है .हालांकि घोटालों के दौर में २ जी स्पेक्ट्रम को लेकर एक बार फिर बवाल मचा और अभी के गृह मंत्री चिदंबरम भी घेरे में आये . पर हर छोटे स्तर पर जहाँ आम लोगो का सामना घूसखोरों से हर रोज़ होता है उसकी भयान...कता यू पी के चंदौली में देखने को मिली , जब एक ट्रक ड्राईवर की पीट- पीट कर निर्मम हत्या इसलिए कर दी कि उसने मुंहमांगी रिश्वत देने से इनकार कर दिया था ..इस भयावह घटना को बीते ४ -५ दिन हो गए लेकिन सत्ता के राजाओं ने इसे एक मामूली घटना माना और पीड़ित पक्ष की कोई सुध नहीं ली .

अन्ना हजारे के आन्दोलन के समय यह माना जा रहा था कि भ्रष्ट लोगों में भय उत्पन्न हो गया है और देश एक नव सामाजिक सुधार की तरफ बढ़ रहा है .देश में सबने फिर गाँधी युग की शुरुवात देखी थी और उम्मीदों के दीपक जलाए थे . सरकार जन लोकपाल बनाने के लिए तैयार हो गयी ,शायद वह तैयार हो भी रहा होगा फिर भी निचले और हर छोटे स्तर पर जो सुधार दिखना चाहिए था या असर दिखना था वह उल्टा बे- असर नज़र आ रहा है , सरकार के हर विभाग में आज भी रिश्वत खोरी बदस्तूर जारी है , बे-रोक जारी और बे- खौफ जारी है.लोग हर छोटे काम के लिए आज भी रिश्वत देने को मजबूर हैं ,नगर निगम ,पंचायत , कलेक्ट्रेट , आबकारी , सीमा शुल्क , वाणिज्यकर , शिक्षा , सामाजिक सुरक्षा, पेशन , पोलिस आदि प्रकरणों मामलों में रिश्वतखोरी का वही आलम है. राज्य या केंद्र सरकार का कोई भी विभाग आज भी रिश्वत खोरी से अछूता नहीं हैं .

सवाल यह नहीं है की रिश्वत खोरी क्यों और कैसे चल रही है . वह जस्ब तक भ्रष्ट लोग सरकार के भीतर रहेंगें किसी न किसी रूप मे चलती रहेगी . सवाल यह है कि अन्ना के अनशन के बाद वह माहौल गर्म क्यों नहीं रहा सका जिससे रिश्वत खोरों में भय बना रहता अब यह भय क्यों नहीं है.क्या इसलिए कि अन्ना की टीम ने जन लोकपाल के बाद निचले स्तर की घूसखोरी की तरफ ध्यान नहीं दिया, क्या इसलिए कि लोगों को नेतृत्व आन्दोलन के दौरान मिला था वह सरकार से समझौते के बाद स्वयं कमज़ोर पड़ गया , क्या इसलिए कि आन्दोलन से जुड़े तत्व अपनी थकान मिटा रहे हैं या इसलिए कि यह सब क़ानून बनाने का इंतज़ार है ,या कुछ और ...

सवाल यह भी है कि उन राज्य सरकारों ने अपने अपने राज्यों में भ्रष्टाचार पर क्या कदम उठाये जो अन्ना के आन्दोलन में पूरे जोश से साथ थे ., म.प्र. की बात करें तो यहाँ पहली बार किसी रिश्वत खोर अधिकारी को अब तक की सबसे बड़ी सजा से दण्डित किया गया है , पर क्या छोटे स्तर पर रिश्वत खोरी रोकने के प्रयास किसी सरकार ने किये हैं क्या..म .प्र में भी हर विभाग में भ्रष्टाचार व्याप्त है कौन जागा और कौन सुध ले रहा है जरा स्सोचें . कोई नहीं हर जगह वही ढर्रा चल रहा है , सो गए रिश्वत खोरी के दलाल फिर जाग गए हैं और गरीब भी आज अपनी जेब काट कर रिश्वत दे रहा हैं.

रिश्वत का अर्थ ही पहले यह होता था कि गलत और गैर कानूनी काम करवाना है तो अंडर टेबल पैसे दो . अब हर काम के पैसे लगते हैं ,सरकारी नौकरी याने एक बंधी हुई गैरकानूनी कमाई का जरिया... यह चल रहा है और लोग अब भी ट्रस्ट हैं ... कहाँ है वे एक्टिविस्ट जो दहाड़ लगाते नहीं थक रहे थे क्यों आज एक मामूली ट्रक ड्राईवर घूसखोरी से मारा जाता है क्या यह आतंक नहीं है ,क्या यह भाईगिरी नहीं है . अन्नागिरी का जश्न मनाने वाले हम सबको यह विचार करना चाहिए क्योंकि अन्ना घूसखोरी जारी है ..
सुरेन्द्र बंसल