Powered By Blogger

Saturday, December 31, 2011

हर फिक्र को धुंएँ में मत उडाओ , हो सके तो २०१२ तुम अभी मत आओ !



२९ दिसम्बर  जाते हुए साल २०११ का सबसे दुखद , ग्लानियुक्त, हतप्रभ करने वाला , अविश्श्नीय , अनैतिक और लोकतंत्र को धोखा देने वाल दिन कहा जा सकता है . २०१२ की अगुवाई आज अच्छी नहीं लग  रही है . जश्न मनाने का भी कोई मन नहीं है अब सबको चिंता देश और सविंधान की करना चाहिए ,देवानंद की तरह का सकारात्मक सोच अब बदलते जमाने के साथ बदल गया है अब हर फिक्र को धुंएँ में नहीं उड़ाया जा सकता . कसौटियां अब बढ गई हैं और विश्वास छोटा होते जा रहा है .इस ठण्ड में लोकतंत्र मासूमियत की चादर ओड कर चौराहे पर असमंजस में खड़ा है और पहरेदार निर्लज्जता से घरों के अन्दर बेशर्मी की गर्माहट ले रहे हैं २०११ का दुःख जब तक दूर न हो , हो सके तो २०१२ तुम अभी मत आओ!
राज्य सभा के भीतर की घटना ने २०११ के साल भर की घटनाओं को भूला दिया है , याद नहीं किसे बयान करूँ , जब भी सोचता हूँ राज्य सभा का सजीव चित्रण आँखों के भीतर आ जाता है लगता है फिक्र को धुंएँ में उड़ाकर जब देवानंद गए तो उन्होंने कुछ सकारात्मक विचार को दिया था लेकिन अब फिक्र सब देश वासियों होना चाहिए कि  हम जिन्हें वोट देकर सरकार य अपना नेता बनाते है उनका आचरण , उनका दायित्व और उनका ईमान बना रह पायेगा या नहीं , क्यों हमारे चुने हुए लोग हमारे माई-बाप बन जाते हैं , उन्हें गुमान इतना बढ जाता है कि निरंकुश आचरण उनकी नियति बन जाती है और वे लोग अपनी सवैधानिक स्थिति का फायदा उठा कर लोकतंत्र का मज़ाक बनाते हैं.
केंद्र सरकार  राज्य सभा की घटना के लिए कितना ही दोष दूसरों पर मढ़े वह सबसे ज्यादा और पूरी तरह से दोषी  नज़र आती है . संख्याबल नहीं होने से राज्यसभा में उसने वह सब होने दिया जो एक जिम्मेदार तंत्र कभी नहीं कर सकता  , लोकसभा में उनके पास संख्याबल था क्या इसलिए वहां राज्यसभा का घटनाक्रम नहीं दोहराया जा सका . वहां सरकार ने विपक्ष के संशोधनों को धता भी बताया और पुरजोरी से लोकपाल बिल पास भी करा लिया .
राज्य सभा में आये अधिक संशोधनों में भी राजनैतिक षड़यंत्र ही है हर संभव टालमटोल कर समय बिताने की कोशिश करना लोकतंत्र को धोखा ही देना है  कांगेस को आत्म - चिंतन करना चाहियए की वे राष्ट्र को क्या परोस रहे हैं . भाजपा तो शुरू से ही बिल का विरोध यह कह कर कर रही थी कि मज़बूत बिल लाओ फिर सरकार  विरोधी दल से उम्मीद करें कि वह समर्थन करें यह बचकाना सोच है. दरअसल सरकार नहीं चाहती थी कि उसकी एक और हार हो और सरकार के बने रहने पर बवाल हो इसलिए सारी उधेड़बुन की गयी .
फिर भी  यह विचार तो होना ही  चाहिए कि गलत काम ,गलत आचरण और गलत विचारर को यूँ ही नहीं छोड़ा जा सकता और न ही राष्ट्र की हर फिक्र जिसमे लोकतंत्र का सम्मान , लोक भावना, लोकादर, नैतिक मूल्य , संविधान के प्रति निष्ठा , संवैधानिक दायित्व  निहित है उसे यूँ ही धुएं में नहीं उड़ाया जा सकता , अब हर फिक्र हमें करना होगी और सबक भी सीखना होगा जाते हुए २०११ का यही सबक संसद के भीतर से निकलकर आया है इसलिए २०१२ के स्वागत की कोई रूचि  नहीं है हो सके तो २०१२ अभी आने से पहले कुछ पल और रुक जाओ हमें २०११ ठीक करना है ..
सुरेन्द्र बंसल

Saturday, December 24, 2011

अन्ना का सपना सबका अपना

अन्ना का सपना सबका अपना
न्ना  हजारे का सपना जन लोकपाल बिल है. अन्ना के समर्थकों का भी यही सपना है जो लोग जन लोकपाल  पूरा या आधा अधूरा विरोध कर रहे हैं उन्हें  सपने में भी अन्ना का  सपना  नज़र  आता है, जैसे अंग्रेजों को भारत छोडो आन्दोलन के दौरान महात्मा गाँधी सपने में जगा देते थे .अन्ना के इसी सपने को पूरा  करने  या न करने देने की कवायद बीतें कुछ महीनों से चल रही है . लेकिन सबकी नज़र में आज अन्ना का सपना है.
संसद में लोकपाल बिल रखते हुए सरकार ने अन्ना के सपने को तोड़ने की पुरजोर कोशिश की. लेकिन अन्ना जो उद्देश्य लेकर चल रहे हैं उसमे राष्ट्र की भावना निहित है . सरकार ने परवारे जो लोकपाल बिल में बदलाव या नयापन लाया है उसके पीछे सरकार का मकसद वादा तोड़ना भले न रहा हो अन्ना का सपना तोड़ना जरुर रहा है. कपिल सिब्बल जैसे वकील को इस महा अभियान में जुटाया गया और बिल लाकर वादा भी पूरा किया गया .पर क्या मजबूरियां सरकार की रही कि उन्हें जन लोकपाल में बदलाव करना पड़ा .?
लोकपाल कानून को प्रभावी ढंग से बनाने का मकसद क्या किसी का निजी हो सकता है ,लेकिन अन्ना टीम के साथ सरकार का वर्ताव कुछ ऐसा ही रहा जैसे अन्ना हजारे और लोग अपने लिए २ जी जैसे किसी लायसेंस के लिए कुछ फेरबदल करवाना चाह रहे हो. बात सांसदों और सरकार के अधिकारों की आती है और उसी के बूते यह हल्ला मचाया जा रहा  है संसद बड़ी है .पर कोई यह नहीं समझ रहा कि अन्ना का आन्दोलन संसद य सांसदों के अधिकारों को नहीं छीन रहा है , यह जताना  कि संसद में कानून बनाये तो कानून किस तरह राष्ट्र और जन हित में हो यह निज  नहीं है . अन्ना का हल्ला नहीं होता तो क्या संसद में आज लोकपाल बिल आता . भ्रष्ट लोगों पर सरकार जागी दीखती तो यह विरोध की आंधी कभी नहीं आती. संसद का सत्र आगे बढाया जाना भी अन्ना और जनता की जीत है इसे क्यों कर रही है सरकार , इसलिए कि  उसे अन्ना के आन्दोलन का भय सता रहा है, उससे ज्यादा जनता में बड़ते  रोष का भय है और उससे भी ज्यादा भय इस बात का है कि भ्रष्टाचार  की कीचड़ से बाहर निकलना है तो कुछ तो कर दिखाना पड़ेगा नहीं तो इसी दलदल में डूब जाना पड़ेगा . जाहिर है भ्रष्टाचार का ज़हाज़ डूबने वाला है इसलिए इसमे सवार लोग अब बाहर निकलना चाहते हैं .
सलिए अन्ना के सपने पर तो आज सब काम कर हैं , सरकार के भीतर और बाहर भी . यह ज़रूर अपने अपने स्वार्थ अनुसार इसमे लोग जुटे हैं , फिर भी अन्ना बधाई तुम्हे  कि सरकार ने मजबूर होकर मजबूरी का लोकपाल बिल संसद में रख ही दिया , यह एक जीत है जैसे  भी सरकार ने बचने बचाने के खेल इसमे किये हैं फिर भी सबका मकसद अपने ढंग से भ्रष्टाचार पर लगाम कसना ही है,कमाल  यह आन्दोलन का है फड-फड़े लालू यादव को भी दबते दबाते बिल का समर्थन करना पड़ा है. सोनिया गांधी भी जब आज बोली कि

अब लड़ाई आर या पार तो संसद के भीतर लोकपाल विधेयक रख कर ही बोली हैं . उनकी आर पार की लड़ाई सिर्फ वर्चस्व की लड़ाई है और अन्ना को हीरो नहीं बनाने देने की लड़ाई है फिर भी सपना तो वही है जो अन्ना का है या  अन्ना के सपने के विरोध का है .
संसद में जैसा भी और जो भी बिल पारित होगा वह  अन्ना के सपने से उत्पन्न ही होगा क्योंकि आज चर्चा बस यही है अन्ना का सपना सबका अपना !
सुरेन्द्र बंसल

Sunday, December 18, 2011

तो होगा अपना ही जश्न और अपना ही आभार

 लोकपाल बिल की तैयारी  है.यह जन लोकपाल होगा या नहीं यह नहीं कहा जा  सकता लेकिन सरकार अपने स्तर पर लोकपाल बिल  के लिए अब तैयार दीखती है . सरकार ने जिस तरह जन लोकपाल की मांगो पर अलग से बिल  संसद में रखे वह  सरकार की मानसिक मंजूरी का दस्तावेज़  है दिखावे के लिए सरकार अपने  अड़ियल रुख पर कायम है लेकिन अन्ना और उसकी टीम को , लगता है सरकार अब मौका नहीं देगी .

अन्ना ने कहा १ दिस. को या तो जेल भरो आन्दोलन होगा या आभार  दिवस . सरकार क्या करने जा रही है यह सोमवार को संसद में नज़र आएगा पर जो लग रहा है उससे जाहिर है सरकार खुद जश्न मनायगी और आभार भी खुद  . जनलोकपाल के प्रावधानों की मंजूरी भी अचरज भरी हो सकती है सरकार कुछ कड़े नियम भी बना सकती है जन लोकपाल के लिये  चले आन्दोलन से कांग्रेस जितनी  आहत  हुई है वह सत्तर के दशक में हुए जे पी आन्दोअलन की याद दिलाता है . यूपीए बौखलाहट में है और अन्ना की टीम इसे बढ़ाने में जरा भी कसर नहीं रख रही है . अब अन्ना और सरकार  के बीच संवाद ख़त्म सा है . अन्ना राह देख रहे है और सरकार वही कर रही है उसे जो करना है. अन्ना टीम के साथ मिल बैठकर कोई काम की इच्छा सरकार की नहीं है . 
जाहिर है केंद्र सरकार लोकपाल को गंभीरता से पूरा भी करेगी और अन्ना हजारे की टीम को धता भी बताएगी . इसलिए नहीं कह सकते कि आने वाला मसौदा जन लोकपाल ही होगा . मसौदा वह सभी परिप्रेक्ष्य के संदर्भित हो सकता है जो जन लोकपाल के भीतर हैं पर उसके रास्ते और तरीके अलग हो सकते हैं .
यू पी ए  चाहेगी की लोकपाल से उनकी छबि को लगे बट्टे को किसी तरह साफ़ किया जा सके . जन लोकपाल  आन्दोलन से पूरी सरकार आज भ्रष्ट नज़र आ रही है कांग्रेस के पास यही सबसे बढ़ी चुनौती है कि वह कैसे इन दाग से बाहर आये. सारी  मशक्कत १० जनपथ से साउथ नार्थ ब्लाक तक इसी को लेकर है . कांग्रेस ने व्हिप जारी कर सांसदों से कहा भी है कि सोमवार से संसद में हाज़िर रहे मतलब साफ़ है सरकार सब कुछ वही करेगी जो उसे जिस तरह पसंद है . अन्ना और उनकी टीम उसे बिलकुल पसंद नहीं है इसलिए हेर फेर सब कुछ होगा .
अन्ना सोनिया के घर विरोध करेंगें या  फूल देंगें यह वक़्त बताएगा या  फिल वक़्त सरकार इस मूड में नहीं है कि अन्ना और  उनका आन्दोलन फिर सर चढ़कर  बोले . सरकार इतनी भोली नहीं है कि हरबार अपनी नाक में दम भरने दें वह इसके लिए इलाज़ जरुर करेगी और लगता है खुद ही जश्न मनायेगी और खुद ही आभार प्रकट करेगी .

Tuesday, December 6, 2011

प्रधान बड़ा या मुख्य


Editorial in Pits;


राहुल गाँधी उत्तरप्रदेश में जिस गति से आगे बढ़ रहे है वह काबिले तारीफ़ है . मायावती की स्थायी होती सत्ता को वे चुनौती देते नज़र आ रहे है .कांग्रेस के लोग उन्हें मनमोहनसिंह का उत्तराधिकारी मान रहे हैं जबकि राहुल हैं कि  वे अपनी राजनीति को उत्तरप्रदेश से बाहर ही नहीं निकल  पा रहे हैं.

यह स्थिति राहुल ने खुद निर्मित की है या वे अपनी गति को नहीं समझ पा रहे है या उनकी कवायद उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री तक ही है . यहाँ यह सवाल स्वत; ही उपजता है कि क्या राहुल प्रधानमंत्री बनने के लिए वाकई तैयार है . इस सवाल का उत्तर यदि हाँ है तो राहुल उत्तरप्रदेश की सीमा से बाहर अपनी राजनीति क्यों नहीं ला रहे हैं . उनकी राजनीति का इस समय जो प्रतिलक्षण  है वह वह प्रधानमंत्रित्व   के लिए नहीं उत्तरप्रदेश  के मुख्यमंत्रित्व के लिए ज्यादा दिखाई पड़ता है .यहाँ बड़ी असमंजस की स्थिति है ,उनकी पार्टी उन्हें प्रधानमंत्री  जल्दी देखना चाहती है और जिसमे दिग्विजयसिंह जैसे राजनेता ऐसे कवायददार बने हैं जो हर हाल में राहुल के लिए रास्ता बनाने का काम कर रहे हैं  जबकि राहुल राष्ट्रीय राजनीति में दिलचस्पी रखते कहें दिखाई नहीं देते .

राष्ट्रीय राजनीति राष्ट्रीय मुद्दों पर चलती है .एक विचार और दृष्टिकोण पर चलती है जिसकी गति किसी पेसेंजर की तरह नहीं राजधानी  एक्सप्रेस की तरह त्वरित गति वाली होती है. राहुल गाँधी की राजनीति में फिलवक्त यह गति , यह त्वरितता कहीं नज़र नहीं आती . क्यों? क्यों राहुल राजनीति पर देशव्यापी चर्चाओं  में  शामिल नहीं होते . इसके कई कारण हो सकते है .पहला; शायद वे अभी अपने को राष्ट्रीय मुद्दों पर उपयुक्त नहीं मानते हैं .दूसरा ;  वे कांग्रेस के भीतर स्वयं को पार्टी विचारों से अलग मानते हैं .तीसरा ; वे बड़ी जिम्मेदारी से बचना चाहते है चौथा  ; वे पहले उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री  ही बनाना चाहते है .

कारण जो भी हो फिलवक्त राहुल गाँधी की हर चाल उतार प्रदेश के भीतर है . देश में अन्ना हजारे का आन्दोलन हो , २जी स्पेक्ट्रम , कामनवेल्थ आदि घोटाले हों , भ्रष्टाचार की व्यापक चर्चा हो ,महंगाई  की गर्मी हो या ऍफ़ डी आई  की विदेशी खुदरा दुकानों का मुद्दा हो राहुल या तो मौन रहे हैं या देर से थोडा बहुत बोले हों .दूसरी तरफ उत्तरप्रदेश के हर मामले वे वे बोलते , चलते फिरते और रोड शो करते नज़र आते है , फिर चाहे बुनकरों का मामला हो ,उत्तरप्रदेश के किसानो की जमीनों का मामला हो या दलितों के घर जाकर उनके साथ बैठकर भोजन करना हो .उत्तर प्रदेश में राहुल पूर्ण  राजनीतिज्ञ नज़र आते है  यह स्थिति राहुल को बड़ा राजनेता नहीं बनाती  उत्तरप्रदेश का नेता जरुर बनती है . याद करें कब आपने राहुल गाँधी को हमारे मध्य प्रदेश में , या महराष्ट्र ,गुजरात अथवा साउथ के प्रदेशों में देखा है . क्यों राहुल दूसरे राज्यों के लिए  चिंतित नहीं दीखते. उनके सलाहकार उन्हें खुद उत्तरप्रदेश के भीतर ही रखना चाहते है . राहुल शायद साफ़ शब्दों में कहें तो इस समाया राजनीति के बचकानेपन में है .

चुनौतियाँ ही व्यक्ति को मज़बूत और आत्मनिर्भर बनाती है .राहुल युवा है और देश का सही माने में नेतृत्व करना चाहते हैं और उसे युवा समय में ही हासिल करना चाहते हैं तो उन्हें राजनीति के कारक तवों को समझकर , राष्ट्रीय मुख्यधारा से जुड़ना होगा . उन्हें अनिश्चितताओं को भी ख़त्म कर अपनी विचारधारा को स्पष्ट  करना होगा  आखिर यह तो समझना पड़ेगा ही कि प्रधान बड़ा है या मुख्य !
surendra.bansal77@gmail.com

Sunday, November 13, 2011

हो दम तो नंगो को हमाम के बाहर ही पकड़ लो .

by Surendra Bansal on Sunday, November 13, 2011 at 9:52pm
o)


भंवरी देवी कहाँ है यह सीबीआई समेत किसी को नहीं पता लेकिन राजस्थान के बर्खास्त जल संसाधन मंत्री महिपाल  मदेरणा ने भंवरी के साथ क्या ताल्लुकात रखे यह सबको पता है . खबर है कि जो नई सीडी सीबीआई के हाथ लगी है उसमें मदेरणा ९ लड़कियों के  साथ आपतिजनक स्थिति में देखे गए हैं . वहीँ भंवरी का  दावा है  कि उसकी बड़ी बेटी कांग्रेस विधायक मलखान सिंह की पुत्री है. जाहिर है पति होते हुए भंवरी के कई लोगो से सम्बन्ध रहे है जो लज्जाजनक हैं इसलिए मदेरण की नैतिक गिरावट की चर्चा होने के बजाये पहले भंवरी के अपहरण का मामला सुलझाया जाना चाहिए .

सीबीआई अभी तक भंवरी का कोई पता नहीं लगा पाई है और इसके लिए शंकित जिम्मेदार लोगो से पूछताछ तक नहीं की गयी है , भंवरी को लापता हुए दो महीने से अधिक हो गए हैं पर यह पड़ताल क्यों नहीं पूरी हो सकी कि आखिर भंवरी है कहाँ  ? क्या उसका अपहरण कर मार डाला गया है जिसकी खबर है उसे भट्टे में भुन दिया  गया , या भंवरी खुद गायब है और अपने बढते भंवर में फंसे लोगो से बदला ले रही है या उसे राजनैतिक बदले के लिए मोहरा बनाया जा रहा है , जो भी हो भंवरी एक महिला है वह अपने घर से लापता है और इस मामले में वीईपी  कालर वाले नामचीन लोग लोग शामिल है . ऐसी स्थिति में पहली प्राथमिकता राज्य गृह विभाग की है . कि वह इस उच्च मामले में गहरे से छनबीन करवा कर सबसे पहले भंवरी देवी के अपहरण ,हत्या या जालसाजी का पता लगाए .

बहरहाल सब महिपाल मदेरणा के मज़े लेने में लगे हैं . मदेरणा क्या है यह तो सीडी में सब आ चूका है उसकी क्या खबर आप हर रोज़ देंगें पहले उस भंवेरी का पता तो लगवाएं वह आज किस हालत में है ., है या नहीं है , कौन उसे काम में ले रहा है , क्या वह ब्लेकमेल हो रही है या  वह ब्लेकमेल कर रही है ? कांग्रेस के एक अन्य  विधायक मलखानसिंह पर आरोप है कि  भंवरी की बड़ी बेटी का वह पिता है . सवाल यह है कि जब भंवरी के पति को यह चिंता नहीं थी कि भंवरी के साथ क्या हो रहा है , भंवरी के साथ किस किसके नाम जुड़े हैं तो पहली बात चरित्र को प्राथमिकता से परखने के बजाये पहली प्राथमिकता उस अपराध की तरफ देखने की है जिससे मानवता जुडी है . मानवता के नाते भी पहले यही देखा जाना चाहिए कि भानेअरी देवी कहाँ और कैसे परिस्थिति में है . और ही भी  या नहीं . इसलिए भी कि देर होने पर मामला सबूतों से दूर होता जाएगा और अपराधी बच निकलेंगे.

 इसलिए भंवरी का भंवर मदेरणा , मलखान य किसी अन्य को कहाँ दुबोयेगा इससे ज्यादा भंवरी की फिक्र करने और वास्तविकता का पता लगाने कि है ताकि सच्चे या झूटे सब अपराधी बेनकाब हो. अखीर राजनीति आज गंदे परवान पर चडी हुई है और उसका इस्तेमाल दुश्मनी निकालने के लिए किया जा रहा है जबकी ऐसे मामलों की आज बाद है , हर किसी के कपडे आज इतने काले हैं कि दाग एकदम नज़र नहीं आते और ऐसे काले कपडे वालों की बहुतायत ज्यादा है , मामले सिर्फ दुश्मनी से ही बाहर आते है , नैतिकता बची है नहीं और नंगे होकर हमाम की ओर भागने वाले लोग ज्यादा हैं . हो दम तो नंगो को हमाम के बाहर ही पकड़ लो .

Sunday, October 23, 2011

विश्वास का एक दीप जलाएं हम सब


असंख्य  दीपों का  महा पर्व दीपावली नई रोशनी और नई ख़ुशी के साथ नई सौगातें और नई कामनाएं लेकर द्वार पर खड़ी है . कार्तिक अमावस की  रात आम अमावस की तरह  कभी काली नहीं होती .हर भारतीय इस अमावस पर ख़ुशी और उमंग लेकर देर रात तक जागता है और शुभकामनाओं के लेन- देन का बगैर लाभ हानि के साथ आदान प्रदान करता है , सच तब सबकी मनोभावनाएँ  कितनी अनुकूल और एक दूसरे के प्रति विश्वास की  हो जाती है और एक रीत की तरह कई दिनों तक इसी तरह चलती रहती है ,यह रीत एक व्यवहार क्यों नहीं बनती है ?

दरअसल विश्वास का स्वरुप बहुत कच्चा है ,न जाने कब टूट जाए और न जाने कब उसे तोड़ दिया जाए. विश्वास एक व्यवहार बनने की जगह तोड़ने की प्रथा बनते जा रही है . आज राष्ट्र इसी अविश्वास की बढ़ती दुर्भावना से ग्रस्त है . देश चल रहा है लेकिन विश्वास कहीं नहीं है . राष्ट्र को चलायमान रखने के सभी कारक तत्व आज अविश्वास से देखे जा रहे है . यह क्यों है ? सरकार के प्रति जिस तरह का अविश्वास इस समय है उतना कभी नहीं रहा . भ्रष्टाचार और महंगाई  ने आम जनता को जितना त्रस्त किया है उससे किसी भी चुनी हुई सरकार के प्रति जन भावनाएं विश्वास की नहीं है . यह सबसे बड़ा दुर्भाग्य है . इसलिए भी कि जिस सरकार को ल्कोतान्त्रिक ढंग से जनता ने चुना और राज़ चलने का विश्वास जाहिर किया वही सरकार के प्रति उसका विश्वास नहीं रहा , ऐसा क्यों ?

लोकतंत्र में सरकार को बनाने , चलाने और उसे चेताने वाले प्रमुख तत्व राजनीतिज्ञ भी आज उतने ही अविश्वास के घेर में हैं . हर राजनीतिज्ञ अपने लिए काम करते हुए दिख  रहा है , उनका यह कर्म राजनीति की  परिभाषा ,उसकी शाब्दिक अर्थता . उसके दायित्व की नैतिक बाध्यता से दूर है .फिर भी वह राजनीतिज्ञ है. जब वह अपना कर्म अपने लिए कर रहा है तो फिर वह राजनीतिज्ञ कैसे हुआ . आश्चर्य  यह होना  कि  वह राजनीतिज्ञ  का लिबास पहनकर किस तरह वी आई पी बना हुआ है  .पर अपने शांत और ज्यादा संयत देश में यह चल रहा है .

राष्ट्र में केंद्र से लेकर ग्राम स्तर तक अगर सरकार चलती हुई दिखती है तो उसके जिम्मेदार कसा हुआ सरकारी तंत्र है जिसके भिन्न भिन्न हिस्सों में कई छोटे बड़े अफसर कर्मी काम कर रहे हैं . इन्हें अधिकार  और कानून दिया गया है एक विश्वास के साथ कि ये सब अपनी अपनी जिम्मेदारी कार्य सीमा के भीतर रहकर काम करेंगे और राष्ट्र को सविधान , कानून और प्रावधानों के अनुरूप गतिशील रखेंगे , लेकिन ये भी अंग्रेजों के काका है ,जनता के लिए काम करने का उन्हें भान नहीं है सिर्फ पॉवर के दुरूपयोग से राज़ करने के अभिशप्त हो गए है ये सभी . फिर विश्वास कहाँ है और अंगेजों की अफसरी का खोट इनके जींस में क्यों है ?

आज इसी बढती  अविश्वास की भावना से जनता त्रस्त है .हम विकसित देश की तरफ बढ़ रहे हैं लेकिन देश के भीतर हर मोर्चे पर अविश्वास बढ़ रहा है .लोग अब एक दूसरे को भी अविश्वास से देखते हैं ,कारपोरेट और व्यवसाय जगत में भी अविश्वास है .जबान का विश्वास अब रहा नहीं इसलिए भी कि लिखा   हुआ   भी अब धोखा बन गया हैऔर नीयत पर अमिट दाग साफ़ देखें जा रहे हैं . ऐसी परिस्थतियों में विश्वास के नव दीप की आज सख्त जरुरत है .सरकार ,नेता, अफसर ,कर्मचारी और जनता सबको विश्वास की नव लौ जलना होगी . दीप पर्व दीपावली पर सब अपनी इस जिम्मेदारी को समझे ,राष्ट्र के साथ ली शपथ को पूरा करने का प्रण करें और अपने स्तर पर हर दुर्भावना को वाकई निकल फेंके तो विश्वास के नवनिर्माण के साथ देश को हम सब मिलकर पुलकित , ज्योत्सनामय, और सशक्त बना सकते हैं , इसलिए इस दीपावली जब आप सैकड़ों दीपक से घर - आँगन रोशन करें तो प्रण पूर्वक एक दीप अलग से विश्वास का भी जलाएं ! इस शुभ भावना के साथ दीप पर्व की शुभकामना !!
सुरेन्द्र बंसल  

Sunday, October 16, 2011

EDITORIAL


कूटनीति से चल रही है राजनीति 
भ्रष्टाचार और सुशासन को लेकर भाजपा नेता लालकृष्ण आडवानी की यात्रा चल रही है और उधर अदालत ने जमीन घोटाले , भ्रष्टाचार के आरोप में कर्नाटक  के विवादित नेता एस येदिउरप्पा को जेल भेज दिया है .वहीँ कांग्रेस की तेज़ लाल तल्ख़ मिर्च दिग्विजयसिंह की चिठ्ठी का असर यूँ हुआ कि अन्ना हजारे ने कांग्रेस के साथ भाजपा को भी भ्रष्टाचार के लिए बराबर का दर्ज़ा  दे दिया .  प्रशांत  भूषण की अदालत परिसर में पिटाई ने प्रशांत को अन्ना टीम में विवादित कर दिया. भ्रष्टाचार अभी गला नहीं है लेकिन भ्रष्टाचार ने इस आन्दोलन को गलाना शुरू कर दिया है . अन्ना मौन पर है तो ये सवाल ज्यादा उभर रहा है कि क्या जन लोकपाल के पहले भ्रष्टाचार के खिलाफ चले हर आन्दोलन को एक कुटनीतिक ढंग से दबा दिया जायेग . फिलवक्त यही लगता है .

हालांकि येदिउरप्पा को जेल भेजने का फैसला अदालत का है लेकिन इससे भाजपा पर हमले और खासकर आडवानी की यात्रा की उपयोगिता पर सवाल खड़े कर दिए गए हैं . पूछा जा रहा है कर्नाटक में भाजपा भी भ्रष्ट नेता को बचाती रही है इसका कोई तर्कसंगत जवाब भाजपा के पास नहीं है .दिग्गी राजा की चिठ्ठी ने इतना असर जरुर बताया कि अन्ना हजारे को वह बोलना पड़ा जो उन्होंने अब तक नहीं कहा था . अन्ना हजारे ने यदि भाजपा को भी भ्रष्टाचार के मामले में कांग्रेस के बराबर दोषी बताया है तो यह दिग्विजयसिंह की कुटनीतिक चाल का भंवर है जिसमे अन्ना  न चाह कर भी फंस गए और दिग्विजयसिंह ने कांग्रेस के शब्द अन्ना के मुंह में डाल दिए . हालाँकि कांग्रेस प्रवक्क्ता जनार्दन द्विवेदी ने दिग्विजयसिंह के पत्र पर अनिच्छा जाहिर कर इसे अनुपयुक्त बताया था  फिर भी इससे कांग्रेस को लाभ और भाजपा तथा अन्ना  टीम दोनों को नुकसान हुआ है .

श्री राम सेना ने प्रशांत भूषण की जो पिटाई की इसकी खुफिया जांच हो तो शायद यह तथ्य सामने आये  कि इस पिटाई के पीछे कोई साजिश है जिसमें श्री राम सेना हथियार बनी हैं . प्रशांत भूषण को अदालतपरिसर  में उनके दफ्तर में  जाकर पीटना कोई सीधा और सरल बात नहीं  है हो सकता है यह सुनियोजित काम हो . इसलिए भी कि प्रशांत भूषण के कश्मीर के सम्बन्ध में बयान देने के कई दिनों बाद यह हिंसक प्रतिक्रिया हुई है . हिंसा एक उग्र स्वभाव है जो तत्काल रिएक्ट करती है . श्री राम सेना को यदि प्रशांत भूषण को पीटना था तो वह उन्हें कहीं भी और जल्दी पिट सकते थे लेकिन वे योजनानुसार पिटे  गए इसका मतलब है कोई है जो श्री राम सेना को अपना हथियार बबन रहा है .

प्रशांत भूषण की पिटाई से अन्ना के विरोधियों को फायदा पहुंचा है . अन्ना टीम में भीतर ही भीतर मतभेद उभर गए . जो अन्ना अब तक प्रशांत भूषण के बयान पर चुप्पी लगाए थे उन्हें कश्मीर पर अपना रुख स्पष्ट करना पड़ा . इस मामले पर अन्ना पहले और तत्काल भी बोल सकते थे लेकिन इस गंभीर मसले पर उन्होंने देर की. अगर जल्दी बोल लेते और प्रशांत भूषण को समझाईस दे लेते तो शायद प्रशांत भूषण पिटाई से बच जाते , अन्ना टीम भी विवाद और फूट से बच जाती .

बहरहाल देश में राजनीति कूटनीति से चल रही है और कुटिल चाले चली जा रही है इसलिए अपनी आखरी लोकयात्रा पर निकले आडवानी का रथ भी खिसक खिसक कर चल रहा है .कूटनीति एक तरह की कुटिलता है राजनीति इस तरह चलती रही तो किसी तरह का जनांदोलन कभी सफल नहीं हो सकेगा ..
सुरेन्द्र बंसल

Wednesday, October 5, 2011

सावधान अन्ना !

सावधान अन्ना!

लगता है अन्ना टीम एक बार फिर जल्दबाजी में है. यह जल्दबाज़ी जन लोकपाल में देरी से उपजी जरुर है लेकिन जल्दबाजी इस बात की चेतावनी है  कि कांग्रेस को वोट नहीं देना ,यह धोखेबाज़ पार्टी  है...समय के पूर्व जल्दबाजी में दिया गया अपरिपक्व बयान लगता है कांग्रेस को लेकर अन्ना हजारे या अन्ना टीम का जो  भी अनुभव हो , दुराभाव हो या मत और मन हो ...अभी से सीधे यह सन्देश देना कि जन लोकपाल बिल में देर हो तो कांग्रेस को वोट मत देना अनुपयुक्त है. अन्ना टीम ने हिसार उप चुनाव के लिए इसी तरह का एक विडियो भी जारी कर दिया है . अरविन्द केजरिवाल  इस विडियो को लेकर हिसार जा रहे है और किरण बेदी ,प्रशांत भूषण भी पहुँच कर कांग्रेस के खिलाफ प्रचार करेंगें .

इस तरह के आक्रमण के लिए अन्ना के पास अभी बहुत वक़्त था फिर अन्ना और उनकी टीम किस जल्दबाजी में है ....इस तरह से वे  अपनी लाइन खो सकते हैं ..अभी देश अन्ना की तरफ बहुत आस लगाए बैठा है ऐसे में अन्ना और साथियों को न केवल परिपक्वता दिखाना चाहिए  है बल्कि परिपक्वता रखना भी है ,और यह भी याद रखन चाहिए कि बेवजह आक्रामक बयान देना भी एक तरह से हिंसक वृति है .किसी भी अहिंसक आन्दोलन का मतलब हाथापाई और तोड़फोड़ ही नहीं है विचारों में भी अहिंसकता भी बेहद जरुरी है ...
अन्ना को शिवाजी भी कहा गया है शायद इसीलिए इतनी आक्रामकता हो लेकिन शिवाजी का रुख  जो  आक्रामक था वह उनका नैसर्गिक स्वभाव था उसमे कोई दो -राह नहीं थी और तब की आवश्यकता भी यही थी आज अन्ना को मुद्दा जीवंत रखना है और उसे अंजाम भी देना है तो संयत और धैर्य भी रखना होगा . आप सरकार  पर चढ़ बैठे यह जरुरी है लेकिन सड़क पर खड़े होकर उसे चाबुक लगाएं यह नहीं होना चाहिए. धीरता नहीं होगी तो आप अपने मिशन में फ़ैल हो जायेंगें .फिल वक़्त अन्ना इस धीरता को खोते नज़र आ रहे हैं उन्हें संभलना होगा और अपने मार्ग पर तद अनुसार ही बढ़ना होगा .
इसलिए भी की अन्ना आज देश के महत्वपूर्ण व्यक्तित्व भी है और विश्वास भी .. उन्हें समझ लेना चाहिए वे एक राजनेता यदि नहीं हैं तो वे राजनेता की तरह दिखे भी नहीं और एक बार राजनेता कि तरह पहचान लिए गए तो विश्वास आधा निकल जाएगा फिर वो न तो बनेगा और न तो ऐसा दिखेगा जो आज है इसलिए सावधान अन्ना!
सुरेन्द्र बंसल

Saturday, October 1, 2011

क्योंकि अन्ना घूसखोरी जारी है .....



अन्ना हजारे के आन्दोलन के दौरान घूसखोरी के खिलाफ जो जनमत बना था उसका असर शमशान की आग की तरह धीरे धीरे ठंडी पड़ रहा है लेकिन घूसखोरी न भस्म हुई है और न ही कम हुई है .हालांकि घोटालों के दौर में २ जी स्पेक्ट्रम को लेकर एक बार फिर बवाल मचा और अभी के गृह मंत्री चिदंबरम भी घेरे में आये . पर हर छोटे स्तर पर जहाँ आम लोगो का सामना घूसखोरों से हर रोज़ होता है उसकी भयान...कता यू पी के चंदौली में देखने को मिली , जब एक ट्रक ड्राईवर की पीट- पीट कर निर्मम हत्या इसलिए कर दी कि उसने मुंहमांगी रिश्वत देने से इनकार कर दिया था ..इस भयावह घटना को बीते ४ -५ दिन हो गए लेकिन सत्ता के राजाओं ने इसे एक मामूली घटना माना और पीड़ित पक्ष की कोई सुध नहीं ली .

अन्ना हजारे के आन्दोलन के समय यह माना जा रहा था कि भ्रष्ट लोगों में भय उत्पन्न हो गया है और देश एक नव सामाजिक सुधार की तरफ बढ़ रहा है .देश में सबने फिर गाँधी युग की शुरुवात देखी थी और उम्मीदों के दीपक जलाए थे . सरकार जन लोकपाल बनाने के लिए तैयार हो गयी ,शायद वह तैयार हो भी रहा होगा फिर भी निचले और हर छोटे स्तर पर जो सुधार दिखना चाहिए था या असर दिखना था वह उल्टा बे- असर नज़र आ रहा है , सरकार के हर विभाग में आज भी रिश्वत खोरी बदस्तूर जारी है , बे-रोक जारी और बे- खौफ जारी है.लोग हर छोटे काम के लिए आज भी रिश्वत देने को मजबूर हैं ,नगर निगम ,पंचायत , कलेक्ट्रेट , आबकारी , सीमा शुल्क , वाणिज्यकर , शिक्षा , सामाजिक सुरक्षा, पेशन , पोलिस आदि प्रकरणों मामलों में रिश्वतखोरी का वही आलम है. राज्य या केंद्र सरकार का कोई भी विभाग आज भी रिश्वत खोरी से अछूता नहीं हैं .

सवाल यह नहीं है की रिश्वत खोरी क्यों और कैसे चल रही है . वह जस्ब तक भ्रष्ट लोग सरकार के भीतर रहेंगें किसी न किसी रूप मे चलती रहेगी . सवाल यह है कि अन्ना के अनशन के बाद वह माहौल गर्म क्यों नहीं रहा सका जिससे रिश्वत खोरों में भय बना रहता अब यह भय क्यों नहीं है.क्या इसलिए कि अन्ना की टीम ने जन लोकपाल के बाद निचले स्तर की घूसखोरी की तरफ ध्यान नहीं दिया, क्या इसलिए कि लोगों को नेतृत्व आन्दोलन के दौरान मिला था वह सरकार से समझौते के बाद स्वयं कमज़ोर पड़ गया , क्या इसलिए कि आन्दोलन से जुड़े तत्व अपनी थकान मिटा रहे हैं या इसलिए कि यह सब क़ानून बनाने का इंतज़ार है ,या कुछ और ...

सवाल यह भी है कि उन राज्य सरकारों ने अपने अपने राज्यों में भ्रष्टाचार पर क्या कदम उठाये जो अन्ना के आन्दोलन में पूरे जोश से साथ थे ., म.प्र. की बात करें तो यहाँ पहली बार किसी रिश्वत खोर अधिकारी को अब तक की सबसे बड़ी सजा से दण्डित किया गया है , पर क्या छोटे स्तर पर रिश्वत खोरी रोकने के प्रयास किसी सरकार ने किये हैं क्या..म .प्र में भी हर विभाग में भ्रष्टाचार व्याप्त है कौन जागा और कौन सुध ले रहा है जरा स्सोचें . कोई नहीं हर जगह वही ढर्रा चल रहा है , सो गए रिश्वत खोरी के दलाल फिर जाग गए हैं और गरीब भी आज अपनी जेब काट कर रिश्वत दे रहा हैं.

रिश्वत का अर्थ ही पहले यह होता था कि गलत और गैर कानूनी काम करवाना है तो अंडर टेबल पैसे दो . अब हर काम के पैसे लगते हैं ,सरकारी नौकरी याने एक बंधी हुई गैरकानूनी कमाई का जरिया... यह चल रहा है और लोग अब भी ट्रस्ट हैं ... कहाँ है वे एक्टिविस्ट जो दहाड़ लगाते नहीं थक रहे थे क्यों आज एक मामूली ट्रक ड्राईवर घूसखोरी से मारा जाता है क्या यह आतंक नहीं है ,क्या यह भाईगिरी नहीं है . अन्नागिरी का जश्न मनाने वाले हम सबको यह विचार करना चाहिए क्योंकि अन्ना घूसखोरी जारी है ..
सुरेन्द्र बंसल

Thursday, June 9, 2011

literacy

‎" साक्षरता "
गणित के अंकों और भाषा के शाब्दिक ज्ञान
से ही साक्षरता नहीं होती ,
व्यक्ति की साक्षरता उसके अंतर्मन से उपजती है
जो दान,दया ,ज्ञान ,सीख और अनुभव से प्राप्त होती है.
मन की वैचारिकता में दान- दया का भाव, ज्ञान की ललक,
सीख की इच्छा और अनुभव की योग्यता है
तो वह व्यक्ति साक्षर है.
सुरेन्द्र बंसल
16MARCH2003/ 2AM

suryoday

सूरज जब उदय होता है
तो निस्तेज , असहाय सा पड़ा मानव भी उठ बैठता है,
वह क्रियाशील होकर दिन की गति की ओर तेजी से चलने लगता है,
मानों किसी मशीन को ऊर्जा मिल गयी हो .
यह "सूर्योदय" का चमत्कार है
जो किसी और अविष्कार से संभव नहीं है .
जो इस उष्मा को जितना पाता है ,गतिमान होता है
वह सफलता प्राप्ति के उतना नज़दीक होता है ,
इसलिए सूर्योदय पूजनीय है ,
वंदन स्वरुप है !
सुरेन्द्र बंसल,
17march03 /11am
"बेकार सी बातों में जो समय गंवाते हैं,
वे 'समय' के आगे नहीं
समय के पीछे रह जाते हैं"
सुरेन्द्र बंसल
सोचों!
सोनम, शाहरुख़,सलमान और अब शिल्पा शेट्टी
सब बाबा के खिलाफ बद्काद्कर बोल रहे हैं , क्यों?
आगे और स्टार्स आयेंगें.
कहीं यह बाबा के खिलाफ स्टारडम का उपयोग तो नहीं?

सपने by Bansal Surendra



सपने
बनते हैं ,दिखते हैं,
बिगड़ जाते हैं ,
मेरी भी
निन्द्रायी आँखों में ,
अँधेरे को चीरकर
प्रकाश फैलता है,
बनता हुआ
कुछ दिखता है ,
सबेरा होते ही
बिगड़ जाता है सब ,
जैसे नींद
उड़ /बिगड़ जाती है,
मूर्छित से पड़े
शरीर में चेतना आ जाती है ,
मेरी धरती
पहचानी सी लगती है ,
और आकाश भी
उतना ही उंचा नज़र आता है
जितना कल था ,
लेकिन एक बनता हुआ
विश्वास कभी बिगड़ता नहीं
-सुरेन्द्र बंसल
रचित ओक्टोबर ४,२००२
‎" प्रेरणा "......


प्रेरणा वह गति है जो यह इच्छा उत्पन्न करती है कि आगे बढना चाहिए ...


प्रेरणा वह मार्ग है जो आपको स्व इच्छा से अपनी और बुलाता है...


प्रेरणा वह सोच है जो सहमति का इज़हार करती है...


प्रेरणा वह शिक्षा है जो ज्ञान का प्रस्फुटन करती है..


इसलिए प्रेरणा जीवन की नैतिक उर्जा है

सुरेन्द्र बंसल 

Thursday, February 10, 2011

@ जैसा मैंने देखा और महसूस किया..


 Tuesday, February 8, 2011 at 7:12pm

प्रकाश झा निर्देशित आरक्षण की शूटिंग में अमिताभ बच्चन , दीपिका पादुकोण और सैफ अली खान हरित भोपाल में जमे है. 'नूर उस सबाह' के आलिशान होटल में जहाँ उनका लंबा मंज़र है वहां कोई ज्यादा गहमा गहमी नहीं है. कुछ लोग वहां आ जाते हैं और जैसे तैसे झलक पाने का लंबा इंतज़ार करते हैं ... अमिताभ के प्रति लोगो का दीवानापन होना कहना मुझे लगता है गलत होगा... जो लोग अमिताभ का इंतज़ार करते हैं वे उन्हें दीवानी नज़र से नहीं देखते हैं.... इसमें मुझे महानायक का एक प्रभाव नज़र  आता है जो यूँ ही नहीं बना है . यह अमिताभ के उस सफ़र का रोमांच है जो फिल्म 'आनंद' से चला था और जिसके पहले आज का यह कांक्रीट नायक नींव निर्माण के पहले की उस रेत की तरह था जो कंकरी की तरह इधर उधर ढुलक कर नए स्वरुप के लिए संघर्ष कर रहा था....
इस लिए कह सकते हैं जीवन के ६९वे साल में कोई व्यक्ति महानायक के मज़बूत स्वरुप में दिख रहा है तो यह उसका नैसर्गिक प्रभाव है... कोई नई नवेली हेरोइन यह कहती है की वह बिग बी के साथ एक फिल्म करना चाहती है तो उसके पीछे दीवानगी का रोमांस नहीं प्रभाव का रोमांच है.... कोई सागर जैसे छोटे शहर का युवक जिसके पास छत के नीचे रुकने और जीने केलिए खाना मिल जाये इतने पैसे नहीं है वह तीन दिन तक दिन रात सड़क पर पड़ा रहता है इस इंतज़ार में की अमिताभ आयेंगे तो वह उनके साथ फोटो खिचवायेगा ...... यह भी दीवानगी नहीं है यह भी एक कलाकार की क़द्र है... अमिताभ की सुरक्षा में लगे नौजवान साजिद शैख़ बतलाते हैं   कि  अमिताभ ने उसकी ख्वाईश पूरी की  फोटो खिचवाया और फोटो की कॉपी की सी डी  बनवा कर दी .... लोग इन सुरक्षा कर्मियों से बहुत मिन्नतें करते हैं कि किसी तरह एक फोटो खिंचवा दो और मिलवा दो , बहुत कम की यह ख्वाइश पूरी होती है ... पर जिनकी ख्वाईश कभी पूरी नहीं होती उनमे साजिद जैसे लोग हैं जो दिन रात उनकी सुरक्षा में लगे होते हैं , उन्हें चाहते हैं उनके साथ फोटो निकलवाना चाहते हैं लेकिन नहीं निकलवा पाते है ......
लेकिन नूर उस सबाह में वह आलम नहीं है जो शूटिंग साईट पर है .. अमूमन यहाँ शांति है ... कल शाम जब  ट्रेक शूट में  अमिताभ शूटिंग से लौटे तो वहां उन्होंने फोटो भी खिंचवाए और प्रशसकों से उपहार भी लिए...भावनाओं की क़द्र करते हुए....
@ जैसा मैंने देखा और महसूस किया...
स्थान ; नूर उस सबाह , शाम ६.३०