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Saturday, February 18, 2012

जिम्मेदार तो दल हैं ....



चुनाव आयोग की नज़र में सलमान खुर्शीद आये तो सलमान साहब ने कानून मंत्री रहते हुए जो  गलती की थी उस पर चट-पट माफी मांग ली .उन्हें आयोग का नोटिस  मिला था . फिर एक और मंत्री और उत्तरप्रदेश के खास चुनाव रणनीतिकार बेनीप्रसाद वर्मा ने वही गलती दोहरा दी , लगभग  सलमान खुर्शीद के अंदाज़ में ही , उसी तेवर में और उसी मंशा से . उन्हें भी आयोग का नोटिस मिला और कड़कनाथ   से  नरमनाथ    होते हुए उन्होंने भी कह दिया जबान फिसल गई थी .
सलमान  और बेनी बाबू  दोनों  केंद्र में मंत्री हैं दोनों की गलती भी एक सी ही थी , दोनों ने मुस्लिम आरक्षण की बात भी बढ़चढकर की थी , दोनों एक ही पार्टी कांग्रेस के नेता हैं जो राष्ट्रीय राजनैतिक दल है दोनों का अपराध यदि था तो एक जैसा . याने एक ही पार्टी के बड़े नेता एक जैसी समानता वाले कथित अपराध एक के बाद दूसरे ने किये हैं . चुनाव के दौरान जब इतनी समानताएं एक ही राज नैतिक दल के एक से अधिक नेताओं में परिलक्षित  होती है तो उसे गलती नहीं स्ट्रेटेजी कहना और मानना चाहिए . सलमान के बाद अगर बेनी बाबू बोले हैं तो यह साफ़ तौर पर यह पार्टी की चुनावी नीति है . ऐसा कैसे हो सकता है जब एक नेता ऐसा विवादित बयान दें जो आयोग की नज़र में आचारसंहिता का उल्लंघन हो और उसके लिए उन्हें चेतावनी दी जा रही हो तब ही  कोई दूसरा नेता चुनाव के चलते ही उस बात को दोहराए तो इसे पार्टी की रणनीति ही मानना चाहिए  . कांग्रेस आज इस आरोप से बरी नहीं हो सकती , 
यह इसलिए भी कि ऐसे मौके पर पार्टी अपनी उपस्थिति और प्रभाव का इस्तेमाल कर प्रचारकों को दिशा निरेद्श और गाईड जारी करती है . क्या मुस्लिम आरक्षण पर कांग्रेस पार्टी की वाकई कोई नियोजित रणनीति थी यह सवाल अब जरुर वहां तक देखा जाना चाहिए जिस समयकाल में इस तरह के बयानों का इस्तेमाल मतदाताओं  को लुभाने के लिए किया जाता है .उत्तरप्रदेश यूँ भी जातियों पर आधारित राजनीती का अखाडा है जहाँ ऐसे बयानों और घोषणाओं का अच्छा  प्रभाव और सीधा प्रभाव पड़ता है .इसलिए आयोग को इसे उस राजनैतिक दल की रणनीति के रूप में परखना और जांचना भी चाहिए उसी अनुरूप जिम्मेदारी तथा दंड भी तय करना चाहिए .
लेकिन चुनाव आयोग का काम टी एन शेषन  के बाद  उतना मुस्तैद और धमक वाला नहीं रहा ,इसलिए ऐसे आचरण संहिताओं के उल्लंघन के मामले  चुनावों में फिर आम हो चले हैं . सलमान खुर्शीद ने संहिता उल्लंघन का अपराध यदि किया था तो आयोग उसे माफ़ कैसे कर सकता है . चुनाव के दौरान ऐसे स्थितियां जिनसे चुनाव की निष्पक्षता प्रभावित ही रही हो उस पर चुनाव आयोग को माफ़ करने के बजाये फैसले लेना चाहिए .ये फैसले माफ़ी के नहीं होते हैं ,ऐसे फैसले सिर्फ दोष या निर्दोष तय करने के होना चाहिए . सलमान हुर्शीद यदि दोषी थे तो आयोग का फैसला भी वही आना चाहिए था और यदि वे निर्दोष थे तो फैसल तदनुसार  ही होना चाहिए . ऐसे गलतियों के लिए माफ़ करने का क्या काम .?
चुनाव आयोग ने सही फैसला  लिया होता तो आज बेनीप्रसाद वर्मा फिर चुनाव में उसी मुद्दे का बेजा फायदा लेने की हिम्मत नहीं करते .अब उन्होंने कह दिया है उनकी जबान उस तरह फिसल गई थी जैसे कोई जमी हुई चिकनी काई पर पैर रख फिसल जाता है , बेनी वर्मा के पैर जबान  रखने से फिसली है अब जब तक उन पर कारवाई होगी या न होगी तब तक उत्तरप्रदेश में चौथे  चरण के भी चुनाव हो जायेंगें . आयोग भी  माफ़ कर देगा ,. पर इस बात को कौन देखेगा कि अब कोई सलमान या बेनी खड़ा होकर फिर ऐसी बात नहीं कहेगा . क्या ऐसा कोई माप दंड चुनाव आयोग के पास है?
जरुरी यह है कि ऐसे मौके पर उस मान्यता  प्राप्त राजनैतिक दल को जिम्मेदार माना जाना चाहिए जिस दल से प्रचारक चुनावों को प्रभवित करने के लिए आचरण संहिता की धज्जियां बेख़ौफ़ उड़ाते हैं ,आखिर  जिम्मेदार तो रणनीतिकार राजनैतिक दल हैं .






Saturday, February 11, 2012

राजनीति की अनैतिकता



पांच राज्यों में हो रहे  विधानसभा चुनाव की गहमा गहमी सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में नज़र आती है जो सबसे बड़ा भौगोलिक और राजनैतिक प्रदेश है . बावजूद इसके उत्तरप्रदेश जितना राजनैतिक सक्रियता के लिए जाना जाता है उससे कहीं अधिक आज वह सम्प्रदाय , जात और धर्म में बंटता  नज़र आ रहा है . ऐसा  नहीं लगता कि कोई  नैतिक राजनीति का गुर यहाँ काम करेगा ,उत्तरप्रदेश के जीत हार के गणित बहुतेरी सीटों पर साफ़ साफ़ निर्णय देते दिख रहे हैं ऐसे में मुद्दे और विकास की धारणाएं चुनाव के नतीजों के लिए कोई मायने नहीं रखती . यहाँ २ चरणों के मतदान पूरे हो गए और कहीं कोई विश्वास नज़र नहीं आ रहा है .

दरअसल राजनीति का नैतिक मूल्य  विचारधाराओं और सामाजिक प्रतिबध्दताओं का फलित मूल्यांकन  है , इसी के आधार पर जो समूह एकत्र होता है वह दलीय राजनीति का गठन  करता है . आज बहुतेरे राजनैतिक दल चुनाव का हिस्सा हैं लेकिन इनमे राजनीति का नैतिक मूल्य कहीं अब नज़र नहीं आ रहा है , खास तौर पर उत्तरप्रदेश जैसे विशाल राजनैतिक प्रदेश में राजनीति के नैतिक मूल्य कहीं नहीं दिख रहे हैं .कहने को कांग्रेस और भाजपा जैसे भीमकाय राजनैतिक दलों के साथ बसपा , सपा , लोकदल , और  अनेक छोटी छोटी पार्टिया उत्तरप्रदेश  पर सत्ता का भोग चाह रही है . उत्तरप्रदेश पर बार बार राज करने वाली मायावती, कांग्रेस के लिए फिर जमीन जोतने वाले राहुल गाँधीके अलावा मुलायम सिंह , अमरसिंह , अजीतसिंह. सलमान खुर्शीद , बेनीप्रसाद वर्मा   , उमा भारती , विनय कटियार,कलराज मिश्र  , राजनाथ सिंह, कल्याणसिंह,लालजी tandon समेत तमाम ऐसे नाम हैं जो राजनीति के प्रमुख लोगों में से हैं फिर भी राजनीति की चाल उसके मूल्यों  पर चलती नज़र नहीं आ रही है .
राजनीति की नई- नवेली प्रियंका गाँधी ने इसे रायबरेली  में नकारात्मक राजनीति कहा है और अपने को बचाते हुए दूसरों पर उन्होंने हमला भी किया है पर यह नकारात्मकता  नहीं राजनीति की अनैतिकता है जिसमे उनका अपना दल कांग्रेस भी शामिल है .जब मूल्य टूट जाते हैं तब अनैतिकता  का जन्म  होता है और वह बढ़ते जाती है ,उत्तरप्रदेश में इसी बढ़ी हुई अनैतिकता के सहारे सभी राजनीति चला रहे हैं और इसी के बूते चुनाव जीत लेना चाहते हैं . कोई भी मुद्दों को लेकर चुनाव में नहीं है इसका सबसे बड़ा सबूत ऐसे उम्मीदवार  हैं जो जाति ,धर्म ,बाहुबल ,गुंडई और काले धंधों के वाबजूद सभी राजनैतिक दलों से खड़े हुए हैं . जाहिर है कोई भी राजनैतिक दल इन दागियों की अनदेखी नहीं कर सका है और इन्ही लोगों को विधानसभा  में भेजकर चुनाव तर जाना चाहते हैं .फिर कोई कैसे कह सकता है कि वे विकास के नाम पर राज करना चाहते हैं .
राजनीति की अनैतिकता सिर्फ जाति ,धर्म के आधार पर ही नहीं है यह कसौटी तो महज़ चुनाव लड़ने का मुद्दा है ,अनैतिकता तो तब  शुरू होती है जब भिन्न भिन्न राजनैतिक दल तलवारें भांज चुनाव लड़ते हैं अपने  अपने घोषणा पत्र पर चुनाव लड़ते हैं फिर बहुमत नहीं मिलाने पर गठबंधन बना लेते हैं और सत्ता  पर काबीज हो जाते है . यह राजनीति की सबसे बड़ी  अनैतिकता है और मतदाताओं के साथ खुली ठगी व् विश्वास घात है .जब आपको गठबंधन के लिए चुना ही नहीं गया तो कैसे आप गठ्बंभन सरकार बना सकते हैं . चुनाव आयोग को इस पर विचार करना चाहिए कि किसी भी तरह का गठबंधन चुनाव पूर्व ही बने और मान्य  हो .चुनाव बाद का गठबंधन अनैतिक राजनीति मानी  जाना चाहिए . यह जरुरी है . केंद्र में जो भी सरकारें बन रही है वे इसी अनैतिक राजनीति का सहारा ले रही है .
उत्तरप्रदेश में सभी दल दावा कर रहे हैं कि वे अपने बूते पर सरकार बनायेंगे इनमे  वे दल भी है जो केंद्र में एक साथ है और यू पी में अलग चुनाव लड़ रहे हैं  . अब जबकी यू पी में किसी दल को बहुमत नहीं मिलाने के समाचार आ रहे हैं अनैतिक  राजनीति  से सत्ता बनने के आसार बढ़ रहे हैं ऐसे में राजनैतिक दलों के कोई मायने नहीं रह जाते .


सिफर

3 seconds ago
कई दिनों से कोई
नहीं आया सपना,
फिर अभी अभी ही
किसी तरह बन गया
उम्मीद का नया सपना ,
मूरत कुछ आश्चर्य  सी 
लिए हुए अपने साथ
आँखों में समां गया
क्यों ???

जाना था टूट उसे अगर
तो नींद में खलल कर
क्यों दिखाई नई डगर
रास्ते टूट जाते हैं
मुद्दत के बाद मगर
जिन रास्तों से
गुजरा ही नहीं मैं ,
वे क्यों गए बिखर ?
सुरेन्द्र बंसल
११फ़र.१२ 

Saturday, February 4, 2012

ये दाग पक्के हैं


पटियाला हाउस की अदालत से गृहमंत्री और पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम को तो राहत मिल गयी लेकिन २ जी स्पेक्ट्रम घोटाले से जुड़े महतवपूर्ण मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से यह  तय हो गया कि दाग तो पक्के हैं . पांच राज्यों में चुनाव का दौर चल रहा हे ऐसे में अदालत ने सुब्रमण्यम स्वामी की वह याचिका रद्द कर दी  है जिसमें चिदम्बंरम को ए . राजा के साथ सह - अभियुक्त बनाये जाने की मांग थी तो यह सुकून सिर्फ  कांग्रेस के भीतर का है कि वह एक और संकट से बच गई लेकिन ११ कंपनियों को १२२ लायसेंस बांटने  के मामले से सरकार बरी नहीं हुई है. 

2g पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला पर्याप्त है यह तय करने के लिए कि 'पहले आओ पहले पाओ ' के आधार पर लायसेंसे बात देने की प्रक्रिया एक बड़े  घोटाले  का आधार है. जिसे बड़ी बड़ी कंपनिया समझ रही थी कि 2g स्पेक्ट्रम लायसेंस कबाड़ कर वे हज़ारों करोड़ मिनटों में कमा सकते है वह केंद्र में बैठी सरकार और उनके धुरंधर महारथी क्यों नहीं समझ सके. केंद्र  के  सबसे  सिपहसलार  कपिल  सिब्बल अब भी सीना तान कर खड़े हैं यह जतलाने के लिए कि घोटाला हुआ ही नहीं है और चिदंबरम निर्दोष हैं . सिब्बल बड़े वकील हैं जानकार है और समझदार हैं इसलिए लगता है कांग्रेस उनको आगे कर अपना बचाव मज़बूत करना चाहती है लेकिन कपिल सिब्बल को एक वकील की तरह लगता है कि उनकी ड्यूटी सिर्फ पार्टी को बचाने के लिए लगाईं गयी है इसलिए वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी यह मानने को तैयार नहीं है कि कही कुछ गड़बड़ हुई है . 

अदालत का फैसला साफ़ है कि लायसेंस वितरण में नीतिगत प्रक्रियाओं का पालन नहीं हुआ है . यही संकेत हैं कि 2g  स्पेक्ट्रम में बड़ा घोटाला  हुआ है जो करीब पौने दो लाख करोड़ का है . इतनी  रकम सरकार के खजाने आ सकती थी और यह नहीं आ सकी है तो कोई न कोई तो इसका जिम्मेदार है यह जिम्मेदारी ए.राजा या चिदंबरम पर ही नहीं पूरी सरकार पर आती है , आखिर सरकार  को बड़ी चोट लग रही है तो क्यों ? यह तो समझा और विचारा जा सकता था लेकिन क्या ए राजा तक ही मामला रहा और पूरी सरकार से छिपा रहा ऐसा नहीं हो सकता आखिर घोटाले के तत्व जिम्मेदार तत्वों केच्साथ मिले रहे इसलिए उन कंपनियों का काम बन गया जो हज़ारों कमा कर अब सरकार को कोस रही है कि भारत में निवेश का अच्छा माहौल नहीं है. 

जाहिर है घोटाले हुए हैं और उसके पीछे बड़े भ्रष्टाचार कि कहानी छुपी हुई है फिर कोई कैसे माने कि कुछ हुआ ही नहीं है . कांग्रेस अब जश्न मना रही है इस बात का कि चिदंबरम बच गए हैं चुनाव में एक बड़ा बवाल खड़ा होने से बच गया पर इतने  बड़े घोटाले  का जिम्मेदार मंत्री जब जेल में हो तो कोई कैसे बच सकता है यह जिम्मेदारी तो पूरी सरकार की है , आगे और  कहानिया आयेंगी पर दाग तो स्थायी हो गए हैं कि १२२ लायसेंस बांटने की गड़बड़ी इस सरकार ने की है, इस दाग को अब छुडाया नहीं जा सकता दुःख इस बात का होना चाहिए कि इस घोटाले  में रिलायंस ,बिरला और टाटा की कंपनिया भी है , बड़ी कंपनिया जो बड़ी हो गयी है क्या उसके नेपथ्य  में घोटाले  ही होते   हैं जिनसे  वे फलफुलकर  बड़ी हो जाती   हैं यह सवाल   कौंधने लगा है क्योंकि ये दाग पक्के है जो  सरकार के साथ इन कंपनियों पर भी लगे हैं
सुरेन्द्र बंसल