पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव की गहमा गहमी सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में नज़र आती है जो सबसे बड़ा भौगोलिक और राजनैतिक प्रदेश है . बावजूद इसके उत्तरप्रदेश जितना राजनैतिक सक्रियता के लिए जाना जाता है उससे कहीं अधिक आज वह सम्प्रदाय , जात और धर्म में बंटता नज़र आ रहा है . ऐसा नहीं लगता कि कोई नैतिक राजनीति का गुर यहाँ काम करेगा ,उत्तरप्रदेश के जीत हार के गणित बहुतेरी सीटों पर साफ़ साफ़ निर्णय देते दिख रहे हैं ऐसे में मुद्दे और विकास की धारणाएं चुनाव के नतीजों के लिए कोई मायने नहीं रखती . यहाँ २ चरणों के मतदान पूरे हो गए और कहीं कोई विश्वास नज़र नहीं आ रहा है .
दरअसल राजनीति का नैतिक मूल्य विचारधाराओं और सामाजिक प्रतिबध्दताओं का फलित मूल्यांकन है , इसी के आधार पर जो समूह एकत्र होता है वह दलीय राजनीति का गठन करता है . आज बहुतेरे राजनैतिक दल चुनाव का हिस्सा हैं लेकिन इनमे राजनीति का नैतिक मूल्य कहीं अब नज़र नहीं आ रहा है , खास तौर पर उत्तरप्रदेश जैसे विशाल राजनैतिक प्रदेश में राजनीति के नैतिक मूल्य कहीं नहीं दिख रहे हैं .कहने को कांग्रेस और भाजपा जैसे भीमकाय राजनैतिक दलों के साथ बसपा , सपा , लोकदल , और अनेक छोटी छोटी पार्टिया उत्तरप्रदेश पर सत्ता का भोग चाह रही है . उत्तरप्रदेश पर बार बार राज करने वाली मायावती, कांग्रेस के लिए फिर जमीन जोतने वाले राहुल गाँधीके अलावा मुलायम सिंह , अमरसिंह , अजीतसिंह. सलमान खुर्शीद , बेनीप्रसाद वर्मा , उमा भारती , विनय कटियार,कलराज मिश्र , राजनाथ सिंह, कल्याणसिंह,लालजी tandon समेत तमाम ऐसे नाम हैं जो राजनीति के प्रमुख लोगों में से हैं फिर भी राजनीति की चाल उसके मूल्यों पर चलती नज़र नहीं आ रही है .
राजनीति की नई- नवेली प्रियंका गाँधी ने इसे रायबरेली में नकारात्मक राजनीति कहा है और अपने को बचाते हुए दूसरों पर उन्होंने हमला भी किया है पर यह नकारात्मकता नहीं राजनीति की अनैतिकता है जिसमे उनका अपना दल कांग्रेस भी शामिल है .जब मूल्य टूट जाते हैं तब अनैतिकता का जन्म होता है और वह बढ़ते जाती है ,उत्तरप्रदेश में इसी बढ़ी हुई अनैतिकता के सहारे सभी राजनीति चला रहे हैं और इसी के बूते चुनाव जीत लेना चाहते हैं . कोई भी मुद्दों को लेकर चुनाव में नहीं है इसका सबसे बड़ा सबूत ऐसे उम्मीदवार हैं जो जाति ,धर्म ,बाहुबल ,गुंडई और काले धंधों के वाबजूद सभी राजनैतिक दलों से खड़े हुए हैं . जाहिर है कोई भी राजनैतिक दल इन दागियों की अनदेखी नहीं कर सका है और इन्ही लोगों को विधानसभा में भेजकर चुनाव तर जाना चाहते हैं .फिर कोई कैसे कह सकता है कि वे विकास के नाम पर राज करना चाहते हैं .
राजनीति की अनैतिकता सिर्फ जाति ,धर्म के आधार पर ही नहीं है यह कसौटी तो महज़ चुनाव लड़ने का मुद्दा है ,अनैतिकता तो तब शुरू होती है जब भिन्न भिन्न राजनैतिक दल तलवारें भांज चुनाव लड़ते हैं अपने अपने घोषणा पत्र पर चुनाव लड़ते हैं फिर बहुमत नहीं मिलाने पर गठबंधन बना लेते हैं और सत्ता पर काबीज हो जाते है . यह राजनीति की सबसे बड़ी अनैतिकता है और मतदाताओं के साथ खुली ठगी व् विश्वास घात है .जब आपको गठबंधन के लिए चुना ही नहीं गया तो कैसे आप गठ्बंभन सरकार बना सकते हैं . चुनाव आयोग को इस पर विचार करना चाहिए कि किसी भी तरह का गठबंधन चुनाव पूर्व ही बने और मान्य हो .चुनाव बाद का गठबंधन अनैतिक राजनीति मानी जाना चाहिए . यह जरुरी है . केंद्र में जो भी सरकारें बन रही है वे इसी अनैतिक राजनीति का सहारा ले रही है .
उत्तरप्रदेश में सभी दल दावा कर रहे हैं कि वे अपने बूते पर सरकार बनायेंगे इनमे वे दल भी है जो केंद्र में एक साथ है और यू पी में अलग चुनाव लड़ रहे हैं . अब जबकी यू पी में किसी दल को बहुमत नहीं मिलाने के समाचार आ रहे हैं अनैतिक राजनीति से सत्ता बनने के आसार बढ़ रहे हैं ऐसे में राजनैतिक दलों के कोई मायने नहीं रह जाते .