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Saturday, November 30, 2013

उजले चेहरे पर कालिख

उजले चेहरे पर कालिख 
सुरेन्द्र बंसल 

यह समय कलियुगी  है , साल बीत रहा है सिर्फ तीस दिन बाकी है लेकिन गिनेंगे तो शायद तीस ऐसे लोग मिल जायेंगें जिनके चेहरों पर इस साल कालिख पुती है इनमे दो तरह के लोग ज्यादा चर्चित रहे।  एक- जो लोग लाखों करोडो के घोटालों में चर्चित रहे दो- वे लोग जो चारित्रिक रूप से लंगड़े हैं , अफ़सोस इनमें नया नाम तरुण तेजपाल का है जो मीडिया बिरादरी से है ,बेशर्म घोटालेबाज़ तो आज भी इज्जतदार बने हुए फिर रहे हैं कुछ जेल में हैं लेकिन जिनकी इज्जत तार तार हुई है चरित्र भंग हुआ है ऐसे नामचीन लोगों के बारे में क्या कहें और इज्जत की दुहाई देने वाले लोगों के चेहरे जब कालिख से पुत जाएँ तब उनके बारे में क्या कहें?

ऐसा नहीं है कि अभी समय बहुत खराब हो गया है अचानक चरित्र का पतन होने लगा है।  पहले भी इतने ख़राब लोग रहे हैं जो उत्पीड़न के ऐसे काम करते रहे हैं लेकिन तब बातें  बाहर  नहीं आती थी।  कारण एक तो तब  मीडिया इतना पहुँच के भीतर नहीं था दूसरा पीड़िता भी लोकलाज और सामाजिक बदनामी के भय से इतनी निडर नहीं थी।  आज जब बहुत से मामले बाहर आ रहे हैं  तो प्रतिकार करने की क्षमता और   निर्भयता में वृद्धि होना है। लोग कहेंगें मामले झूठे भी हो सकते हैं लेकिन कितने झूठे होंगें १५-२० फीसदी। तब ८० फीसदी मामलों की अनदेखी नहीं की जा सकती।  

लेकिन मामलों की  गम्भीरता इस बात की है कि अभी ऐसे उजले चेहरे सामने आये हैं जिनकी तरफ ऊँगली उठाने में हाथ कांपते है क्या ऐसे समझदार,चमकदार और असरदार लोग इतने काले , झूठे और गिरे हुए हो सकते हैं? चरित्र से ये लोग इतने गरीब हो चुके है जो इज्ज़त  लुटते हुए स्वयं इज्ज़त से डूब गए खाली हो गए। आसाराम से लेकर तरुण तेजपाल तक जिनका चरित्र फट चूका है गिर चूका है अपनी कालिख को कैसे भी साफ़ करने का प्रयास करे उनका चेहरा अब कभी उजला नहीं हो सकता।  काला रंग कभी अपना स्वाभाव नहीं बदल सकता वह हमेशा उजालों में कमी कर अंधकार की ओर ही जाता रहेगा।  

जो चेहरे इन दिनों काले हो गए है वे उनके उजले तप के नहीं हैं, मेहनत की  गर्मी से नहीं है वे सब बदनाम कृत्यों से और चारित्रिक रोग के उभर आने के स्वमेव लक्षण हैं। ये सब वासनाओ के वशीभूत अन्धत्व्  के शिकार हैं और अपनी चमक ,उजालो से इतने चकाचौंध हैं कि गिर कर अपनी बेटी जैसी से भी काले काम कर रहे हैं इन्हें कितना धिक्कार करें। तरुण तेजपाल जो पत्रकारिता के साहसिक इंसान की तरह स्थापित थे उन्होंने इतना दुःसाहस कर कालिख से भरा पूरा डिब्बा अपने उजले चेहरे पर उलट लिया।  मीडिया का कोई शख्स  इस तरह बदनाम होता है तो हैरत होती है।  मीडिया का काम ही हाथ में टॉर्च लेकर उजाला बांटना है फैलाना है आखिर क्या कर रहे हैं लोग। कब तक उजले चेहरे काले होते रहेंगें ऐसा चलता रहेगा तो अंधेरों से ही नहीं उजालों से भी डर लगने लगेगा। 

एक बात और मैं यह सोच रहा हूँ मीडिया में और कितने तरुण तेजपाल हैं , क्या तरुण तेजपाल तहलका में ही है या बहुत से तरुण तेजपाल कई जगहों पर है , कुछ खोजिये सोचिये कितने उजले चेहरों पर कालिख कहा कहाँ है ?

Saturday, November 16, 2013

सच है सचिन !

सच है सचिन !
सुरेन्द्र बंसल 

यह सच है कि रत्न की  तरह भारत में और विश्व क्रिकेट में चमकते रहने वाले   सचिन अब क्रिकेट खेलते हुए नहीं दिखेंगें लेकिन यह भी सच है कि उनके करोडो फेंस कि आँखों से बरबस छलक पड़े आंसू भी उनसे भावनात्मक लगाव का जीवंत सच है। सचिन क्रिकेट की  एक ऐसी  सच्चाई रहे जिस सच का सामना सबने किया और सब उस सच से आनंदित होते रहे एक दो नहीं पूरे चौबीस साल तक।  सौ शतक, सैकड़ो रिकॉर्ड ,अद्भुत खेल , क्या नहीं था सचिन के पास।  यही वजह थी जब सचिन 74 रन बनाकर पवेलियन लौटे तो बरबस ही अपनी आँखें गीली हो गयी , उस व्यक्ति के लिए जिसे मैंने कभी भगवान् नहीं माना और न ही कभी भारत रत्न दिए जाने कि तरफदारी की।  दोनों ही बाते अपने को जायज नहीं लगी।

क्यों ? मेरा कहना है सचिन को एक सच रूप में देखो।  जैसा वह दिख  रहा है जैसा वह खेल रहा है ,जैसा वह कर रहा है सब कुछ इस जीवन का ऐसा सच है जिसे हम  महसूस कर रहे हैं ,आनंदित  हो रहे हैं और एक यथार्थ के रूप में देख रहे हैं फिर जब हम  सचिन को देख रहे हैं तो उसे सचिन ही रहने दो यही सच है।  किसी भगवान् को हमने कभी नहीं देखा है लेकिन सचिन को क्रिकेट खेलते इस तरह देखा है कि हमारा रोमांच चरम हो जाता है, सर गर्व से ऊंचा हो जाता है इसलिए सच यही है कि सचिन सचिन है जो सबसे बढ़कर  है। 

यह भी सच है कि सचिन अमोल रत्न है ,जिस तरह का क्रिकेट सचिन ने खेला है वह क्रिकेट की दुनिया के अनमोल रत्न है लेकिन भारत रत्न एक राष्ट्रीय अवार्ड है जो कई विधाओं और परिप्रेक्ष्य , अपरिमित राष्ट्रीय योगदान ,कला और विशिष्ठता के लिए ही दिया जाना चाहिए ,खेल महज एक हिस्सा है उसमे इतना बढ़ा सम्मान देखना शायद भारत रत्न की  महता को कम करना है , पद्म भूषण ,विभूषण ,खेल रत्न अवार्ड आदि सब हैं जो दिए ही जा रहे हैं ,दरअसल भारत रत्न को मैं  एक विशिष्ठ दर्ज़ा देता हूँ और उसके मापदंड बाहर सख्त और दृढ होना चाहिए इसलिए मेरा समर्थन कभी सचिन को भारत रत्न देने का नहीं रहा।  पर अब जब उन्हें इस सर्वोच्च भारतीय सम्मान से पुरस्कृत किया गया है तो समूचे देश के साथ जश्न मनाया जाना चाहिए। 

लेकिन सचिन में मौज़ूद एक अद्भुत खिलाडी की  सचाई को हम कभी नहीं नकार सकते ,सचिन ने खेल को जिस तरह जिया और जिस तरह प्रदर्शित किया यह हैरत की  बात है।  सचिन ने क्रिकेट से दिखाया कैसे कब आक्रामक होना चाहिए  , कब सुरक्षात्मक होना चाहिए , किस तरह का प्रबंध अपनी टीम के लिए अपने प्रदर्शन से करना  चाहिए और किस तकनीक से खेलना चाहिए , इतनी सचाई से रुबरु होना सचिन की  महानता है अब जब सचिन क्रिकेट में नहीं होंगें मैं सोचता हूँ वे तब भी क्रिकेट कि सेवा करते रहेंगें और देश के लिए अपने जैसे खिलाडी तैयार करने का एक और महँ काम शुरू करेंगें।  अलबिदा  नहीं कहेंगें सचिन , क्रिकेट सदा तुम्हारे साथ रहेगा और हम सब भी तुम्हारे साथ क्रिकेट जियेंगें।