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Sunday, August 26, 2012

ईमान से ढूंढें बेईमान



पीएम् की जुबां पर विपक्ष ताला लगाना चाहता है ,सरकार विपक्ष को धता बताना चाहती है यह आखिर क्यों चल रहा है . दोनों ही स्थिति में वक़्त बर्बाद हो रहा है ,पैसा बर्बाद हो रहा है और उससे ज्यादा कोई नतीजा आता नहीं दीख रहा है . कोयले की कालिख  कितनी गहरी है यह जानना इसलिए जरुरी है कि आशंका अब तक के सबसे बड़े घोटाले की है . सच मानिए इस समय देश दुखी: और निरुत्साहित है .लोगो का राजनीति से विश्वास टूट रहा है हर तरफ उतने ही काले लोग नज़र आ रहे हैं जितना कोयला काला है.घोटाला क्या है कितना है इससे ज्यादा इस घोटाले का उपजना उस कालिख की तरह है जिसे तत्काल साफ़ किया जाना  चाहिए.

इस घोटाले पर सरकार के कुछ नुमाइंदों ने बोलना शुरू किया है ,२जी से साफ़ बचे पी चिदंबरम भी शुरू हो गए हैं  बीजेपी के नेता भी संसद के बाहर बोल रहे हैं लेकिन संसद के भीतर सिर्फ शोर चलता रहा है बीजेपी शोर कर रही है इसलिए कि प्रधानमंत्री इस्तीफा दे और सरकार चाहती है कि शोर चलता रहे दरअसल यह ऐसी चक्करदार राजनीति है जिसमें निर्थकता ज्यादा है .सब देश को बर्बादी की तरफ जाने दे रहे हैं वह भी  भले बनकर , यह समय बडा  दुर्योग का है जिसमें जनता को लूटा जा रहा है देश को लूटा जा रहा है . लगता यही है कोई ईमानदार कोशिश करनेवाला अब राष्ट्रीय राजनीति में नहीं है 

प्रधानमंत्री के मुंह पर ताला लगाकर उन्हें घर (सरकार) से बाहर करना कहीं से भी इमानदारी नहीं है उनकी बात सुनी ही जाना चाहिए, उसका आकलन बहस और प्रत्यक्ष नतीजे तो आना ही चाहिए सर्वोच्च संवैधानिक संस्था संसद  के भीतर यदि गंभीरता से चर्चा हो सके तो इससे बेहतर और कुछ नहीं हो सकता.लेकिन अब तक सत्ता पक्ष भी संसद के भीतर गंभीर मसलों पर गंभीर नहीं रहा है और उसने भी पूरी कोशिश करके हर महत्वपूर्ण मामले को दबाने, छुपाने ,टालने और बरगलाने का ही काम किया है. जहाँ सरकार की विश्वसनीयता पर ही सवाल खड़े हो वहां किसी बेहतर नतीजे की उम्मीद करना बे-मायने है. 
जाहिर  है राजनीति के पक्ष विपक्ष की नीतियाँ घोटालों  के तार खोलने की बजाय मुद्दे को उलझाएँ रखना है, कांग्रेस और बीजेपी दोनों अपने अपने पर अड़े हैं,खड़े हैं और लड़ते दिख रहे हैं .लेकिन हो कुछ नहीं रहा है यूँ अब तक भी कुछ नहीं होता रहा है. बातें बेईमानी की चल रही है घोटाले में जो दिख रहा है उससे सत्ता बेईमान दीख रही है इसलिए वह यह जता रही है कि बेईमान तो बीजेपी और समर्थितों की राज्य सरकारें हैं जिन्होंने नीलामी से इंकार किया था सब तरफ चोर चोर का शोर ही सुनाई दे रहा है ,पर यह है कौन ?

इस कौन को ढूंढ़ने के लिए इमानदारी की जरुरत है . इमानदारी के लिए पहले स्वयं को ईमानदार होना चाहिए सो दोनों ही पक्षों का प्रयास ईमान का हो. जब तक राजनैतिक ईमान नहीं होगा बेईमान और बेईमानी पकड़ी नहीं जा सकेगी . प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह के पास वह कोयला मंत्रालय था जब यह बेईमानी हुई , राज्यों में दूसरी सरकारें थीं जब यह बेईमानी हुई इसलिए अब ईमान की जरुरत है. आप ईमानदार हैं तो अपनी बात पूरी इमानदारी से रख दो , अपने अपने पक्ष रखने से कौन रोकता है. प्रधानमंत्री ने अपना पक्ष तैयार कर लिया है लेकिन संसद के भीतर ही वे बोलना चाहते हैं उन्हें बोलने नहीं दिया जा रहा तो चुप रहने की भी क्या जरुरत है   राष्ट्र के नाम सन्देश में ही अपनी इमानदारी जतला दो . सम्पूर्ण राष्ट्र भी एक सर्वोच्च संस्था है और राष्ट्र के लिए ही संवैधानिक संस्था संसद है . फिर भी जहाँ मौका मिले अपनी बात कह दो और अपना ईमान बचा लो यह तो होना ही चाहिए , पीएम साहब आपकी प्रतिष्ठा ईमान की है और उसे बचाए बनायें रखना आपका धर्म है ,इसे अविरल निभाएं . यही विपक्ष को भी करना चाहिए अड़ियलबाज़ी छोड़ कर ईमान पर चलने का उन्हें भी प्रयास करना चाहिए बेईमान अपने आप सामने आ जायेगा , शोर से तो अस्थिर माहौल तैयार होता है और इसमें बेईमानों को भागने का मौका भी मिल जाता है इसलिए संसद के भीतर रोकटोक के बजाए ईमान जताएं और इमानदारी से बेईमान को पकड़ने का प्रयास करें सुने बहस करें और लम्बी लड़ाई पूरी इमानदारी से लड़े यही होना चाहिए , सब ईमान से चलेंगें तो बेईमानी सामने आ जाएगी .  

Saturday, August 18, 2012

नीरो की बांसुरी दिल्ली में नहीं बजेगी , जागो पीएम् साहब ...



तीन घोटाले और तीन लाख करोड़ रूपए यह कोई बच्चों को बहलाने का झुनझुना नहीं है कि आप इसे मामूली में उड़ा दें . श्री प्रकाश जायसवाल  जिस तरह प्रवचन की मुद्रा में मीडिया से बात कर रहे थे लगता था वह भारतीय मीडिया को बचकाना समझते हैं जिसे अपने तर्कों के झुनझुने से  बहला लेंगें. कैग का काम उन अनियमितताओं और गलतियों को परखना  और उसकी समीक्षात्मक व्याख्या, विश्लेषण करना है सो उसने किया है . अब सरकार जिसके भीतर और बाहर व्यवस्था के भिन्न भिन्न गठित संस्थाएं  है वे कोई निजी कृत्य नहीं कर रहीं  हैं और न ही वे मनमानी चलाने और लोकतान्त्रिक सरकार को चुनौती देने का उपक्रम है . लेकिन सरकार के प्रतिनिधि कह रहे हैं कैग की गणनाएं गुमराह करने वाली और गलत है और लगे हाथ उसे चेता भी दिया है कि कैग अपने दायरे को लांघ रही है .

क्या महालेखानियन्त्रक  का काम इतना गुमराह करने वाला हो सकता है कि कोयले के खदानों की आवंटन प्रक्रियाओं को भी न समझ सके . कैग ने जब कहा है कि ५७ ब्लोक के आवंटन में प्रक्रिया का नियमानुकूल पालन नहीं हुआ है तो यह बहुत ही सिम्पल और सीधी व्याख्या है लेकिन इसके विश्लेषण से मालूम पड़ता है कि इस चूक से जो जानकार की गयी होगी उससे देश का एक लाख ८६ हज़ार करोड़ रूपया निजी पावर कम्पनियों को सीधे मुनाफ़ा दे गया है तो चौकना लाज़मी है और पड़ताल भी जरुरी है .लेकिन सरकार झुनझुना बजा रही है जैसे रोम जल रहा है और नीरो बांसुरी बजा रहा है . 

सरकार कि यह झुन्झुनाई बांसुरी इतना झकझोर रही है कि आज रोज़ रोज़ बड़े घोटालों की ख़बरों से जनता का रोम -रोम  जल रहा है ...लोग हतप्रभ हैं कि उनका पैसा उनके देश के काम नहीं आ रहा है  उनके चुने हुए चंद लोगों के हाथों ही लुटाया जा रहा है .कोयले में १.८६ लाख करोड़ . विमानन में ८८.३३  हज़ार करोड़ और पॉवर में २९ हज़ार करोड़  के बाद   २ जी स्पेक्ट्रम और कामन वेल्थ गेम्स को इन घोटालों के आगे भूल जाना बेहतर है .   2जी स्पेक्ट्रम में १.७६ लाख करोड़ ,कामन वेल्थ में ७० हज़ार करोड़ , तेलगी स्टेम्प में २० हज़ार करोड़ , सत्यम कंप्यूटर  में १४ हज़ार करोड़, चारा घोटाले में ९०० करोड़ के अलावा हवाला,आय पी एल,स्टोक मार्केट स्केम घोटालों  की ऐसी लम्बी फेहरिस्त  है जो सरकार की नज़रों में बेबुनियाद है या कोई ख़ास बात नहीं है . देश से ज्यादा पैसा देश के मलाईदारों के पास जा रहा है . 

ये मलाईदार कौन है , टाटा, अम्बानी,जिंदल जैसे तमाम लोग जो देश की अर्थ व्यवस्था के बड़े हिस्सेदार माने जाते हैं और इज्ज़तदार हैं , इनके  पैसे से हो रहे विकास का आम आदमी कर्ज़दार है लेकिन अब क्या ये ही  लोग देश को और देश के लोगों को चूस रहे हैं ऐसा जो आ रहा है ख़बरों  में दिख रहा है और संवैधानिक संस्थाओं  के सवालों के भीतर दिखाई दे रहा है वह देश के नामचीन बड़े लोगों को नज़रों से झुका रहा है इसलिए यह वक्त शर्म करने का है . बढता हुआ बरगद ऊँचा और अच्छा दिखाई देता है लेकिन वह आसपास की जमीं की उपज खा जाता है . आज देश में यही हो रहा है ऊँचे लोग देश को खाने में लगे हैं और  बेईमानी से नीचा काम कर रहे हैं . 

बड़े लोगों  की बेईमानी में भी ईमान होता है वे ईमान के रास्ते बेईमानी का रास्ता छुपे छुपे  पार कर लेते हैं और कुछ पता ही नहीं चलता , अपने लिहाज़ से सब कुछ तैयार करवा लेते हैं बदलवा देते है और साफ़ चट दिखाई देते हैं  सरकार के नुमाईन्दे इनके दलाल की तरह काम कर रहे होते हैं आज देश इन्हीं दलालों के हाथों में है कौन पकड़ेगा इन्हें और कैसे पकड़ेगा , जब सारी बेईमानी विधि से की जाए चाहे वह वैधानिक न हो पर बचे रहने का रास्ता बना देती है .

श्रीप्रकाश जायसवाल ने जता दिया है कि कुछ नहीं है सब गुमराह की  बातें है तो मान लो अब कुछ होना नहीं है जहाँ तक दलाली बंट सकती है बंट जायेगी और सब चुप हो जायेंगें . विपक्ष से भी उम्मीद ज्यादा मत करिए . साफ़ खरे दिखाई देने वाले प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह से एक सवाल तो फिर भी है कि यदि आपको कुछ गलत दीख रहा है तो आप सीट पर क्यों बने हुए हैं ... लालबहादुर शस्त्री ही क्यों इस समय याद किये जाते हैं जो महज एक रेल दुर्घटना पर पद छोड़ देते हैं यहाँ खरबों के घोटालों की  घटना पर भी आप बने रहते है तो संशय तोडिये और अपनी प्रतिष्ठा को स्थापित रखने के लिए ही यह तथ्य बता दीजिये  कि घोटाले है ही नहीं . क्योंकि पीएम् साहब कैग के  पीएम् ( पोस्टमार्टम ) में आप भी हैं ....और जरुरी यही है कि नीरो की बांसुरी दिल्ली में नहीं बजेगी न जनता का रोम जलेगा  इसलिए जागो .....!!
surendra bansal

Sunday, August 12, 2012

पूर्वोत्तर से पश्चिम साजिश की हवा



असम के नस्ली दंगों का असर फैलाव लेने लगा है . मुंबई जैसे अति व्यस्त शहर में शनिवार को हुई हिंसक घटना ने इसके चिंताजनक संकेत दे दिए हैं . जाहिर है नस्ली बैरभाव अब पूर्वोत्तर से चलकर पश्चिम की तरफ आता दिख रहा है . मुंबई में हिंसा के अभी तो यही अर्थ नज़र आ रहे हैं क्या कोकराझाड की प्रतिहिंसा की कोई  सुनियोजित  साज़िश है ?

मुंबई में जो घटा वह प्रतिहिंसा का ऐसा प्रतीक है जो साज़िश की ओर इशारा कर रहा है लगता है समाज विरोधी तत्व अपने गैर सामाजिक इरादों की योजना पर काम कर रहें हैं .आखिर असम की हिंसा का असर मुंबई में ही क्यों हुआ , यह बंगाल में होता तो समझ में आता लेकिन पूर्वोत्तर से हज़ारों किलोमीटर चल कर जो गुस्सा दिख रहा है वह किसी साज़िश की पूर्व तैयारी का रिहर्सल भी हो सकता  है. 

मुंबई के आज़ाद मैदान पर असम के मुद्दे पर हज़ारों लोगो का एकत्र होना यह दिखलाता है  कि आयोजक रज़ा अकेडमी ने नस्ली हिंसा के प्रतिरोध की आड़ में भावनाओं को भड़काने का सुनियोजित काम किया है . आखिर किसी भाषण की उत्तेजना इस कदर क्यों फैली कि लोग यकायक हिंसक हो गए ,आगजनी को उतारू हो गए .इससे ज्यादा यह कि लोगों ने उनकी व्यवस्था में लगी पुलिस को ही निशाना बनाया और उन्हें चुनचुन कर मारा .

दो लोगों की मौत और बीसियों के घायल होने  का जिम्मेदार कौन है, जो बुरी तरह घायल हुए है उसकी किन पर जिम्मेदारी है .यह पड़ताल ही नहीं उन्हें सज़ा सुनाने का वक़्त  है. सरकार यह नहीं कर सकी तो मुंबई  जैसा विशाल और देश की शान समझे जाने वाला शहर  आपसी वैमनस्य , कट्टर दुश्मनी और खुराफातियों की नित करतूतों की तरफ अग्रसर हो जाएगा . मीडिया भी घटना की निशाना बनी और उसे असम की घटना का दोषी बताकर लोगो को उकसाया गया .

मुंबई की आग उस तरफ भी इशारा करती है कि क्या कुछ ऐसे तत्व मुंबई में आगे बढ़ रहे हैं जो हिंसा के लिए तैयार हैं . इनमें  इतनी हिंसक भावनाएं क्यों बढ़ रही है , क्या तैयारी  है और कौन लोग इन्हें बढ़ावा दे रहे हैं . यह भी पड़ताल किया जाना चाहिए कि कोकरझाड की घटना को एक समुदाय विशेष में कौन लोग बढ़ा रहे हैं और  किस तरह भड़का रहें हैं . समय रहते महाराष्ट्र शासन को सचेत होना चाहिए यह एक खतरनाक  तैयारी का संकेत है .इसका पूर्वोत्तर से पश्चिम  में आना आग में घी का ऐसा काम करना है जिसकी नीयत सामाजिक भाव और आपसी सौहाद्रता को भस्म करना है .इसे सिर्फ साजिश की हवा ही कहा जा सकता है जो पश्चिम में मुंबई तक आ गयी है .

Sunday, August 5, 2012

स्वागतम अन्ना !

स्वागतम अन्ना ! 
देश इन दिनों इस बात की बहस में पड़ा है कि अन्ना हजारे व्यापक जन समर्थन के बाद राजनीति में क्यों उतर रहे हैं ? एक नया विचार देश के सामने आया है तो इसका मूल्यांकन होना ही चाहिए. लेकिन इसे जिस तरफ और जैसे बढाया जा रहा है  वह ठीक नहीं है . अन्ना की हर हरकत से पेट में उन लोगों को मरोड़े आती रही है जिन्हें अन्ना के आन्दोलन का प्रत्यक्ष सामना करना पड़ा है . ऐसे लोग और इनके लोग आज देश में इस बात का माहौल तैयार कर रहे हैं मानो अन्ना ने राजनीति में आने का फैसला कर  कोई बड़ा अपराध कर दिया हो .

लोकशाही की सबसे बड़ी  ताकत और उसे संचालित रखने का सबसे बड़ा कृत्य राजनीति ही है . स्वस्थ राजनैतिक विचार देश को स्वस्थ और खुशहाल रखते हैं .राजनीति सिध्दांतों और विचारो के अनुरूप चलाई जाने वाली ऐसी प्रतिद्वंदिता है जो अपनी नीति के अनुरूप राष्ट्र को विकसित ,प्रतिष्ठित और सुरक्षित  रखने का राज़-यत्न करती है और जब ऐसे विचारों और मूल्यों  के लोग सामूहिक हो जाते हैं तो वह एक संस्था बन जाती है ,यही संस्था  राजनैतिक दल कहलाती है .

किसी आन्दोलन और अनशन को राजनीति से अलग  रखना बेमानी है , हर आन्दोलन राजनीति  का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हिस्सा होते हैं . क्योंकि जब कोई गैर राजनैतिक आन्दोलन आप कर रहे होते हैं तब भी आप राजनीति को प्रभावित करते हैं .लोकतंत्र में राजनीति को प्रभावित किये बिना कोई नीति बन नहीं सकती . अन्ना हजारे और उनकी टीम यही चाहती थी कि राजनीति इतनी प्रभावित हो कि देश की राजनीति की दिशा पलटे और राष्ट्र फिर एक नई दिशा से उन्नत होकर आगे बढ़े . राष्ट्र का सबसे बढ़ा अवरोध इस समय इसके अंतर में समाहित व्यापक भ्रष्टाचार है . जन के लिए तैयार हुआ राज़ आज इसी भ्रष्ट आचरण से जन जन और राष्ट्र को खा रहा है . इसी मुद्दे को लेकर अन्ना हजारे और उनके साथी आगे बढ़े देश को एकत्र किया एक व्यापक माहौल तैयार किया तो उन्होंने क्या अपराध किया . लेकिन देश कि सरकार और राजनीति ने इसे अपराध माना और इस व्यापक जन मुद्दे के साथ बड़े स्तर पर राजनीति की गयी . जो लोग साथ थे  उन्होंने भी और जो खफा थे उन्होंने ने भी कुटिल राजनीति कर आन्दोलन को ख़त्म करने का पूरा प्रयास किया . संसद के भीतर कैसे लोग हैं इसे जब अन्ना के लोगों ने मुद्दा बनाया तो सभी राजनैतिक लोग भड़के . लेकिन किसी ने यह नहीं कहा कि हाँ ऐसे लोग संसद के भीतर हैं जो संसद की गरिमा को ठेस पहुंचाते है . ऐसे लोगो पर चल रही राजनीति ने ही कहा कि चुने हुए लोगों के बारे में ऐसा कहाँ लोकतंत्र और संसद का अपमान है . लेकिन किसी ने यह नहीं कहा कि इन लोगो को राजनीति में लाने कि हमने गलती की  है और हम अब राजनैतिक शुचिता को बनाने का यत्न करेंगें . दरअसल इतनी हिम्मत देश की राजनीति में बची नहीं है इसलिए राजनीति में शुद्धता ,स्वस्थता ,नैतिकता और वैचारिकता ही नहीं है और जब तक राजनीति के ये शुध्द तत्व नहीं होंगें राजनीति न बदलेगी और न देश बदलेगा .  इन्हीं मुद्दों को लेकर अगर कोई राजनीति में आता है तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए 

अन्ना हजारे और उनके लोग अपने जमे हुए विश्वास की पूंजी पर राजनीति में आ रहे हैं उनके लिए चुनौतिया ज्यादा है ,और समय भी कम है  यदि वे सफल हो गए तो देश कि राजनीति नए मोड़ पर होगी और खुद फिसल गए तो हमेशा के लिए वे  उनके सारे रस्ते बंद हो जायेंगें . खुले दिमाग खुली सोच और पक्के इरादे से उन्हें आगे बढ़ना होगा उनकी संख्या संसद के भीतर भले कम हो लेकिन पक्के इरादे और नीतिगत लोग यदि संसद के भीतर दिखने लगेंगें तो यह देश की राजनीति के लिए और लोकतंत्र के लिए नई सुबह होगी . इसे जीवंत रखना होगा रष्ट्र के भले के लिए इसलिए फिलवक्त सभी को कहना  चाहिए स्वागतम अन्ना !