Powered By Blogger

Sunday, May 26, 2013

अस्तित्व के लिए संहार


नक्सल प्रभावित बस्तर में कोई सरकार नहीं है इस बात के संकेत छत्तीसगढ़ कांग्रेस के आला नेताओं पर हमले से साफ़ नज़र आ रहे हैं सुकमा और आसपास का इलाका नक्सलियों की राजधानी है . नक्सलियों के इरादें जन जातियों के हित के भले हों लेकिन यह जन जन के खिलाफ एक आतंक बन गया है . कोई एक हज़ार से ज्यादा नक्सली किसी रैली या गुजरते कारवें पर हमला करे तो यह हमला नहीं राष्ट्र की सार्वभौमिकता को चुनौती देने वाला आक्रमण है .

हैरत यह है कि कैसे हज़ार की संख्या में इतने नक्सली एकत्रित हो जाते हैं और सुनियोजित ढंग से घेराबंदी कर नरसंहार के लिए छापामार युद्ध की तरह आक्रमण कर देते है .क्या हमारी सुरक्षा व्यवस्था ,कानून और जिम्मेदार तत्व सब सुस्त और लचर हैं ? यह दोष व्यवस्था और व्यवस्थापकों का है .कितने लोग व्यवस्था में हिम्मत और साहस से काम लेते हैं इस बात की नगण्यता दर्शाती यह घटना है . बताएं लोग किसके भरोसे रहें और जियें .

सलवा जडुम इस ब़ात का ही नतीजा था जब लोगो ने नक्सलियों से सुरक्षा के लिए अपना बराबरी का संगटन बनाया और महेंद्र कुर्मा के नेतृत्व में अपनी सुरक्षा आप की खातिर हथियार उठा लिए . अदालत ने इस अमानवीय कृत्य माना और लोगों से हथियार छिनने के आदेश मानवीयता के आधार पर दिए . महेंद्र कुर्मा कोई लोगों को फुसला कर अपनी सेना नहीं बना रहे थे , असुरक्षा और खतरे की भावना आशंका की खातिर सलवा जडुम जैसा संगठन खड़ा हुआ था सलवा जडुम पर हथियारों की बंदिश के साथ जन की भरपूर सुरक्षा के इंतजाम किये जाना चाहिए थे ,लेकिन व्यवस्थाएं उस तरह नहीं चलती जिस तरह कानून चाहता है इसमे दृढ इच्छा की कमी के साथ चुनौतियां और व्यावहारिक मुश्किले भी होती है साथ में हालत की अडचने भी होती हैं ,इन सब पर विचार जरुरी है 

सुकमा इलाके में नक्सली आक्रमण किसी राजनैतिक विरोध का नतीजा हो यह कहना गलत है ,यह आक्रमण सीधे सीधे सलवा जडुम को ख़त्म करने के लिए किया गया लगता है . महेंद्र कुर्मा की मौत से यह आन्दोलन अब लगभग समाप्ति पर हो जाएगा और शायद अब उसका अस्तित्व भी न बचे . सलवा जडुम के अस्तित्व को ख़त्म कर नक्सली अस्तित्व में मजबूती और बढोतरी इस घटना से हो सकती है क्या हिसक घटना की दोषी हमारी व्यवस्था नहीं है, यह दिख रहा है लेकिन लोगों की सुरक्षा हमारी व्यवस्था में नहीं है यह कैसी व्यवस्था है बस मरने को मजबूर रहिये . नक्सलियों को गैर हिंसक तरीके से काम करने की प्रेरणा देने वाला गाँधी अब तक क्यूँ नहीं हुआ .?

सुरेन्द्र बंसल
surendra.bansal77@gmail.com

Saturday, May 18, 2013

फिक्सिंग के स्पॉट


फिक्सिंग का बवाल कुछ दिनों में ठंडा पड़ जाएगा आईपीएल 6 के स्पॉट बस स्पॉट रह जायेंगें और आईपीएल  7 आ जाएगा उसी गलैमर , भव्यता, तैयारी ,पैसो से महीने भर तक धूम मचाएगा लेकिन क्या कोई फिक्सिंग जैसे स्पॉट फिर होने से रोक पायेगा .मुझे मुश्किल लगता है . बीती गलतियों से आईपीएल के आयोजको ने कोई सबक नहीं लिया और न हीं कोई सुधार किया. पकडे गए तीनो खिलाडी बेन हो जायेगें जो नहीं पकड़े गए हैं वे फिर खेलेंगें उसी तरह जैसे आईपीएल चलता रहा है इसलिए भी कि फिक्सिंग के स्पॉट दो तरह के हैं  एक- दाग, जो इन खिलाडियों और बुकियों के पकडे जाने से लग गए हैं और दो- जगह, जो आईपीएल फोर्मेट में सटोरियों के लिए ही जैसे तैयार की गयी है 

पहले चर्चा दाग याने उन स्पॉट की जिनकी वजह से यह खुलासा हुआ कि आयपीएल सटोरियों के लिए एक उत्सव भरे बाज़ार की तरह काम कर रहा है.आईपीएल खेल रहे खिलाडियों को बेशुमार पैसा मिल रहा है, इन खिलाडियों को लग रहा है और दिख रहा है आखिर आईपीएल में चल क्या रहा है .क्या खेल जा रहा है और क्या दिखाया जा रहा है इसमे कितना क्रिकेट है और कितना धंधा है जब सब धंधा कर रहे हैं तो ये खिलाडी जो युवा हैं क्यों पीछे रहे .उन्हें जरुर फुसलाने के लिए बताया गया होगा किस और कितने खिलाडियों ने इस तरह कितना पैसा कमाया , और किस किस को इस फिक्सिंग की काली  कमाई बंटती है और वे कितने सुरक्षित हैं . इस बहलाने फुसलाने से भरे लालच ने श्री संत , चव्हान  और चदिला को फंसा लिया बदकिस्मती से ये तीनो पकडे गए इसलिए भी कि  पुलिस के ट्रेप पर सूचनाओं से राजस्थान रोयल्स ही थी और ये तीनो खिलाडी उसी टीम के थे इसलिए फंस गए और क्रिकेट के दाग बन गए .इन खिलाडियों पर से ये दाग मिटना अब मुश्किल है.लेकिन क्या आईपीएल में इतने ही दाग हैं या और भी हैं जो दिखाई नहीं दे रहे हैं .

जगह याने फिक्सिंग के स्पॉट दो तरह से है एक जो खेल के हर बारीक पहलु गेंद ,रन ,नोबाल,वाइड बॉल ,कैच और आउट समेत तमाम जगहों को सट्टे के लिए फिक्स कर रहा है और खेल को सट्टा  बना रहा है और दूसरी वे जगहें है जिनसे इन सटोरियों बुकियों के तंत्र को भीतर घुसने का मौका दे रही हैं . दरअसल आईपीएल में जो फ्रेंचायाजिस कंपनिया हैं वे भी बेशुमार पैसा लगा कर अनाप शनाप पैसा कमा रही हैं .इसलिए कहा जा सकता है कि जहाँ पैसा प्रमुख हो वहाँ कमाई का साम,दाम दंड ,भेद सब चल रहा होगा याने फिक्सिंग से ये फ्रेंचायाजिस कंपनिया अछूती हों जरुरी नहीं है .ये टीमो के मालिक भी बुकियों के लिए एक रास्ता हो सकते हैं .वैसे आईपीएल का फोर्मेट जिस तरह से तैयार किया गया है उससे लगता है क्रिकेट से जुड़े तमाम और हर स्तर के लोग अपरोक्ष रूप से इस धंधे में एक रेकेट बना कर काम कर रहे हो तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

जाहिर है स्पॉट फिक्सिंग के बहुत से स्पॉट हैं जो शायद इसीलिए बनाये भी गए हों चूँकि सरकार  के भीतर के बड़े लोग इसमे है,क्रिकेट के बड़े लोग इसमे हैं , ग्लैमर है , नामचीन लोग है और सब धंधा कर रहे हैं . मैंने  कभी लिखा था आईपीएल से क्रिकेट रेसकोर्स  का घोडा हो गया है आप देख रहे है उसी तरह यह दौड़ भी रहा है, चल भी रहा है और खेल भी रहा है कीमत  बाहर भीतर खुल के लग रही है .बदनाम सट्टे बाज़ार की तरह .
सुरेन्द्र बंसल 

Sunday, May 12, 2013

मतभेद के माध्यम


यूपीए  के दो मंत्री उस वक़्त गए हैं जब वह और खासकर कांग्रेस, कर्नाटक  में जीत का जश्न मनाने जा रही थी , जीत की खबर के साथ शाम तक सर्वोच्च न्यायालय की लताड़ आ गयी मानों उसका सीढ़ियाँ चढते हुए पैर फिसल गया और चोट ऐसी की उसके दो दमदार नेताओं  को पद और प्रतिष्ठा खोना पड़ी ,.लेकिन इस घटनाक्रम को पीएम् और सोनिया नहीं राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी के मध्य देखा जाना चाहिए . यह क्यों ?

दरअसल यह मामला पहले से जाहिर हो गया था और कर्णाटक में वोट डाले जाने थे .संसद के भीतर हंगामा चल रहा था और खाद्य सेक्युरिटी जैसे बिल अटके पड़े थे .यूपीए  सांसत में थी क्या करें ,क्या न करें . आखिर इससे कितना असर कर्णाटक के परिणामों पर आएगा ? रेल मंत्री और कोयला मंत्री जैसे पद प्रधान मंत्री के खास पवन बंसल और अश्विनी कुमार के पास थे और दोनो ही बुरी तरह से मामले में फंस गए थे .प्रधानमंत्री निवास पर जब एक महत्वपूर्ण बैठक में इन दोनो मंत्रियों को ब़ाहर किये जाने की तैयारी थी , बताया जाता है राहुल गाँधी के एक एसएमएस ने बैठक की दिशा ही पलट दी और निर्णय  हुआ कि दोनों से इस्तीफा नहीं लिया जाएगा . दोनों मंत्री बच गए .तब अश्विनी कुमार के मामले में सुप्रीम कोर्ट कह चुकी थी कि  जांच रिपोर्ट की आत्मा बदल दी गयी है वहीँ रेल मंत्री की ओर घूस की आंच तब भी आ रही थी .

कर्नाटक में जब कांग्रेस को बहुमत मिल गया तो इस जीत को कांग्रेस ने अपने प्रति मिला समर्थन माना लेकिन भीतर ही भीतर उसे यह पता था कि बीजेपी और येदुरप्पा की लडाई में यह क्षेत्रीय राजनीति की जीत का उसे पुरस्कार मिला है .इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को सरकार  का तोता कह कर ख़ुशी की सारी हवा निकाल दी .संसद में हंगामे के चलते खाद्य सुरक्षा बिल भी पास  नहीं हो सका .इस घटनाक्रम के चलते कांग्रेस घिरी हुई थी भीतर से भी और बाहर से भी शुक्रवार की रात जब दोनों विवादित  मंत्रियों  को हटाने का फैसला हुआ उसके पहले प्रधानमंत्री और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गाँधी  के बीच लम्बा विचारविमर्श हुआ था .

लेकिन क्या यह मामला सोनिया और प्रधानमंत्री के बीच तय हुआ ? हो सकता है पर मामला राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी के बीच झूलता रहा है यह सम्पूर्ण  घटनाक्रम देखने से पता चलता है पहले राहुल गाँधी ने इसे रोका  बाद में सोनिया गाँधी ने आगे बढ़ाया और मंत्रयों को चलता किया . यहाँ यह पूछा जा सकता है कि  क्या राहुल और सोनिया के बीच इस मामले पर मतभेद थे ? क्यों इस महत्वपूर्ण फैसले के वक्त राहुल का नाम नहीं आया जबकि इसे रोकने के वक़्त राहुल के एस एम् एस  की खबर आई थी . क्या मंत्रियों  के इस्तीफे लिए जाने या न लिए जाने के पीछे राहुल और सोनिया में  वैचरिक मतभेद था ?आखिर जब भी कोई मामला मध्य में होता है तो फैसले मतभेद के माध्यम बन जाते है . पता नहीं क्यूँ मीडिया अब तक इस पर नहीं 


सुरेन्द्र बंसल 

Sunday, May 5, 2013

BHAW - SHUNYA


KASUR


SWAPN CHARITRA


TALAASH ....


akhbaar -apne aap se


शिकार पर सीबीआई


बंसल की रेल रुकने वाली है मामला गंभीर है इसलिए भी कि घूस खोरी का यह घूँसा सीबीआई ने लगाया है जिसकी चोट सीधे पवन बंसल को लग रही है . पवन बंसल ने कोई घूस नहीं ली है लेकिन सार्वजानिक जीवन में निकट संबंधियों का आचरण भी जोड़ कर देखा जाता है .यूँ घूस बरास्ता  पत्नी ,पुत्र,भाई, भांजा और भतीजा आसानी से घर में प्रवेश करता है  और इसी रिश्ते पर घूस के सौदे का सबसे ज्यादा विश्वास भी होता है इसलिए ये रिश्ते काफी अहम् है .

इन रिश्तों ने घूस खोरी में खास भूमिकाएँ  हमेशा निभाई है यह दीगर है कि पवन बंसल भांजे की करतूत से फंसते नज़र आ रहे हैं .10 करोड़ की डील में 90 लाख रुपये का लेनदेन करते धराये जाना और मामले में 7 लोगों की गिरफ्तारी इस बात का संकेत है दिल्ली के साउथ ब्लोक और नार्थ ब्लोक में ऐसी गेंग काम कर रही  है जो इन रिश्तों से सीधे गठजोड़ बनाये हुए है .भ्रष्टाचार के व्याप्त की  यह प्रमाणित घटना है लेकिन ऐसे सैकड़ों अप्रमाणित मामले उच्च स्तर से निचले स्तर  तक शासन- प्रशासन के भीतर की दिनचर्या है . दिल्ली के मंत्रालयों से पंचायतों तक  किस पद की प्रतिष्ठाएं बिना बोली के संपन्न होती है ? पंचायतों में सरपंच पति और नगरीय निकायों में पार्षद पति का काम क्या होता है? क्या कभी किसी ने सोचा है विधायक प्रतिनिधि और सांसद  प्रतिनिधि क्या काम कर रहे हैं ? पुलिस थाने क्या नहीं बिकते हैं ? कितने में बिकते है यह उसकी क्षेत्रवार  आमदनी पर निर्भर होता है यही हाल ट्रांसपोर्ट और दूसरे सभी बड़े छोटे पदों का है जिलों के अहम् पद कलेक्टर भी यूँ ही नामांकित नहीं हो जाते है , फिर पदोन्नति ने तो दिखा ही दिया है उसकी कैसी और कितनी कीमत होती है .

इन सबसे ज्यादा ऐसे मामले हर राज्य, हर जिले और हर शासन में एकरूप होते है .दरअसल जो जैसा बलवान (पावर वाला) होता है वैसा काम कर लेता है लेकिन किस सरकार के भीतर इस तरह की घूसखोरी नहीं है . सीबीआई ने महज़ आँखे खोली है और दिखाया है वह यदि मजबूती से और निर्भय होकर काम करे तो रोज़ ही ऐसे मामलों का खुलासा कर सकती है वैसे सीबीआई में यह इच्छाशक्ति होना ही चाहिए . कोलगेट मामले में बदनाम हुई सीबीआई ने तुरत फुरत यह कर दिखाया है जिसके पहले शिकार अपरोक्ष रूप से पवन बंसल हैं . किसी भी राजनैतिक दल को इस मामले से ज्यादा खुश होने की जरुरत नहीं है क्योंकि हर दल के राज में व्यवस्थाएं इसी तरह के नाप तौल  और मोल भाव से चल रही हैं यह सीबीआई को पता है और वह यदि इमानदारी से जुट  गयी तो असंख्य राजनेता और अधिकारीं सीबीआई के अगले शिकार हो सकते हैं . सीबीआई को बस इतना करना है 20  साल में जो राजनेता और अधिकारी सड़क से महलों के स्वामी हो गए हैं उनकी पड़ताल कर ले .यह उपकार सीबीआई को राष्ट्र के लिए करना ही चाहिए . सीबीआई यदि शिकार पर गयी है तो उसे बड़े और ज्यादा शिकार करना ही चाहिए .
surendra.bansal77@gmail.com