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Saturday, February 23, 2013

तंत्र को यह देखना ही होगा कि उसका यन्त्र कैसा है



हैदराबाद बम धमाके की पड़ताल में सुरक्षा अधिकारी जुट गए हैं ,उम्मीद है जल्दी उन सुरागों से वह रास्ता मिल जाएगा जहाँ से आतंक के खौफनाक अमानवीय चेहरे दिलसुख नगर पहुंचे थे.१६ लोगों की मौत और ११७ लोगों के घायल होने की खबर मामूली नहीं है . गृह मंत्रालय को पता था कोई इस तरह की वारदात हो सकती है जो अंदेशा था उसमे हैदराबाद भी एक जगह थी लेकिन ख़ुफ़िया एजेंसियों की  सतर्कता के वाबजूद इस वारदात को रोका नहीं जा सका . जब चाक चौबंद हम नहीं हो सकते फिर अहम् सूचनाओं के क्या अर्थ है ?
हैदराबाद की घटना से जाहिर है हमारे तंत्र के अंतर यन्त्र यानी आतंरिक विभागों में तालमेल का अभाव है .कोई सूचना तब तक अर्थ पूर्ण नहीं है जब तक उस पर कारगर करवाई नहीं होती . ख़ुफ़िया तंत्रों ने बता दिया था जिन स्थानों पर आतंकवादी बड़ी घटना को अंजाम दे सकते हैं उनमें से हैदराबाद और संभवतः दिलसुख नगर भी हो सकता है .फिर भी व्यवस्था में प्रबंध की चेतना नहीं आई . बहुत ही आसानी से सिरफिरे लोगों के किसी गुट ने इस घटना को अंजाम दे दिया . जब दिलसुख नगर ऐसी घटनाओं का दर्द पहले से भोग रहा है तब वहां चौकसी नहीं रख पाना राज्य सरकार  की और उसके आतंरिक प्रभागों की विफलता है .केंद्र से आई कोई गंभीर सूचना कितनी गंभीर है  यह राज्य नहीं समझ सका और यदि समझ भी लिया तो कारगर प्रबंध सुरक्षा इंतजाम नहीं कर सका ये राज्य की गंभीर विफलता है .यह देखा और पड़ताल किया जाना चाहिए कि राज्य ने इस सूचना पर क्या कदम उठाये और क्या वे नाकाफी थे?
जब तक कोई तंत्र और उसके भीतरी यन्त्र काम नहीं करेंगे इस तरह की घटनाओं को कैसे रोक जाएगा . किसी भी चाक चौबंद व्यवस्था के लिए सजग ,सक्रिय  और फुर्तीले सोच के लोगों की जरुरत होती है हमारे तंत्र में अलसाए और कागजों  को आगे बढ़ा कर जिम्मेदारी से मुक्त हो जाने वाले  निष्क्रिय, अकर्मक , निठ्ठले  लोगों की भरमार है वे काम नहीं करना चाहते काम से मुक्त होना चाहते हैं अपना पल्ला झाड  लेना चाहते हैं . व्यवस्था ने तंत्र के इन यंत्रों  को जिम्मेदार और  क्रियाशील बनाना होगा सक्रिय करना  होगा और उन यंत्रों को बदलना होगा जो काम नहीं कर रहे है या ऐसे यन्त्र जिनकी क्षमता नहीं रहीं . तंत्र को यह देखना ही होगा कि  उसका यन्त्र कैसा है ? उनका समन्वय कैसा है और उससे मिलने वाले  प्रोडक्ट की क्वालिटी कैसी है?
यह जागरूकता तंत्र के भीतर ही नहीं उसका उपभोग या उसके प्रभाव में आने वाले लोगों में भी  होना चाहिये . लोग याने इन तंत्रों और यंत्रों के परिणामों को झेलने वाली जनता को भी इतना सक्रिय होना चाहिये उसे स्वयं को वयवस्था को एक उत्पाद की तरह लेना चाहिए और अपने को एक उपभोक्ता मानना  चाहिए . आखिर वह दुनिया भर के टेक्स देकर एक तरह से अपनी सुरक्षा ,और व्यवस्थाओं का खरीदार है . जब उसे अपना मूल्य पूरा नहीं मिले तो उस एक वस्तु की तरह बदल देना चाहिए . यह एक तरह की जागरूकता है स्वयं के प्रति और मजबूत  राष्ट्र के प्रति . लोकतंत्र का यही सच्चा और सीधा मंत्र है तंत्र को जिम्मेदार और यन्त्र को कारगर बनाने की .
  

Sunday, February 17, 2013

घोटालों के पंख


अब हेलीकाप्टर घोटाला . ज्यादा बड़ा नहीं 362 करोड़ की घूसखोरी का .बड़ा इसलिए नहीं कि  देश ने इससे कहीं बड़े और भीमकाय घोटाले झेले हैं .अच्छा यह है कि  सरकार  ने बहुत जल्द सक्रियता दिखाई है , इटली से जानकारी मांगी है ,सीबीआई को जांच का जिम्मा सौंपा है हालाँकि सरकार तब जागी जब इटली में हेलीकाप्टर कंपनी के अधिकारी को गिरफ्त में लिया गया ,  पूर्व एयर चीफ मार्शल एसपी त्यागी के परिवार का नाम आना हैरत भरा भी और चिंतनीय भी .

देश बड़े घोटालों की गिरफ्त और षड्यंत्र में कब से है इससे ज्यादा यह है कि  इनदिनों घोटालों के पंख लग गए है , लगभग हर तीसरे चौथे  महीने एक घोटाला सामने आ रहा है .हो सकता है इस दफा सरकार  के भीतर स्थापित नेता इस घोटाले में तात्कालिक रूप से नज़र नहीं आ रहे हैं इसलिए सरकार जागी और चलती दिख रही है फिर भी तीन हिस्सों में बंटे  पैसो में सबसे ज्यादा सस्पेंस उस 217 करोड़ के है जो क्रिश्चन मार्शल के हिस्से से बंटे  हैं, यह पैसा मार्शल ने किसको दिया कितना दिया और कहाँ दिया इटली में या भारत  में ,इसका खुलासा होना बाकी है . रक्षा मंत्री सीबीआई को लेकर इटली पहुँचने वाले है ,जानकारी जुटाना उनका मकसद है जिसे देने से इटली की कोर्ट ने इंकार कर दिया है। जाहिर है जिस तरह घोटाले के पंख  लगे हैं अब सरकार के भी पंख लग गए हैं और वह पड़ताल करने उड़ कर इटली जा रही है .

पूर्व एयर चीफ मार्शल एसपी त्यागी के परिवार का नाम आना इस सक्रियता का कारण हो लेकिन ऐसी  सक्रियता हर घोटालों पर होना चाहिए ,जितनी  तेज़ी से घोटाले  हो रहे है उतनी ही तेज़ी से उसकी पड़ताल भी होना चाहिए . घोटाले तेज़ी से बन रहे है उड़ रहे है तो उन्हें तेज़ी से पकड़ना और कैद करना भी ज़रूरी है फिर वह हेलीकाप्टर घोटाला हो या और कोई . लगता भी यही है कि  सरकार अब घोटालों के पंख काट लेना चाहती है लेकिन यह कोशिश पूरी भी होना चाहिए और ईमान से  होना चाहिए देश अब उसके साथ और धोखा नहीं देखना चाहता यह समझ लेना भी ज़रूरी है। अपराधी कहीं भी हो किसी भी तरफ से  हो जिसका भी हो वह देश का अपराधी है उसे उसी अनुसार सजा मिलना चाहिए तभी बढ़ते घोटालों के पंख कट सकेंगें .
सुरेन्द्र बंसल 

Saturday, February 9, 2013

जय राज़-तत्व की नहीं निहित राष्ट्र-तत्व की होना चाहिए



अफजल को फांसी से  चौतरफा एक अजीब सा माहौल है , मीडिया ने इसे एक त्यौहार बना दिया ,जश्न बना दिया है। लोग इसे एक खबर की तरह देख रहे हैं लेकिन जैसा उनके समक्ष परोसा जा रहा है वह किसी उत्सव से कम नहीं है . यह शांति का समय है इसे महज आत्मिक शांति की तरह ही लिया जाना चाहिए . जहाँ 13 दिस .2001 को  हमारे मुल्क की हिफाजत के लिए लगे सुरक्षाकर्मियों ने अपनी शहादत  से  एक बड़ी साजिश को नाकाम किया . इन अमर शहीदों को देर से ही सही लेकिन गौरवपूर्ण अंतिम सलाम अब मिला है . शांत भाव से उन अमर जवानो का स्मरण करने  और उन पर गर्व करने का वक्त  है .

सोचिये , एक आतंकवादी को फांसी  देना किस तरह का कर्म है . यह कर्म है राष्ट्र के प्रति , उसकी सार्वभौमिकता के प्रति ,उसके स्वाभिमान के प्रति ,उसके संविधान के प्रति अपने  नैतिक दायित्व को पूर्ण करना। अफजल गुरु ने कोई बन्दूक नहीं उठाई, गोली नहीं चलाई , बम नहीं फेंके लेकिन उसने इससे भी बड़ा दुष्कर्म किया। उसने साज़िश रची , हमले के लिए उकसाया , ऐसी योजना तैयार की कि राष्ट्र को झकझोर सके ,कमज़ोर कर सके और  आतंक से देश के भीतर संवैधानिक परिस्थितियों को छिन्नभिन्न कर सके . इसलिए राष्ट्र के साथ गद्दारी और साज़िश करने वाले का यही अंजाम होना चाहिए . अफजल गुरु ने खुदा की दी काबिलियत को नापाक इरादों से साजिश गढ़ने में लगाया उन लोगो का साथ निभाया जो उसे खरीद सकते थे . हालाँकि बुकर प्राइज विनर अरुंधति रॉय समेत तथाकथित बुद्धिजीवी इस पक्ष में नहीं थे कि  मो अफज़ल को फांसी दी जाए लेकिन जो राष्ट्र का मान करते हैं उसे सर्वोच्च मानते हैं वे कुकृत्यों के व्यक्तियों के लिए क्षमादान की बात नहीं करेंगें .

इसलिए एक फ़र्ज़ पूरा हुआ राष्ट्र के प्रति उस कर्तव्य का जिसे किया जाना नैतिक दायित्व था उन उत्तरदायित्वों के लिए जिन्हें लोकतंत्र ने इस विश्वास से जिम्मेदारी सौंपी थी कि जब भी राष्ट्र की सार्वभौमिकता, स्वाभिमान और रक्षा की बात होगी वे त्वरित कदम उठाएंगें . इस मसले में देर हुई है लेकिन अंधेर नहीं हुई  राष्ट्र का मान रह गया , शहीदों  का मान रह गया और नापाक इरादों वाली दुनिया ने देख लिया भारत कोई कमज़ोर राष्ट्र नहीं है .कसाब के बाद अफज़ल, यह सिलसिला चलते रहे और हर कोई नापाक इस सख्त सजा का हक़दार बने यह प्रक्रिया तब तक चलती रहना चाहिए जब तक हमलवार आतंकियों  के इरादे नेस्तनाबूत नहीं हो जाते .

एक बार यह फिर भी सोचा जा सकता है राजनीति नहीं है तो फिर क्या नीति है . किस तरह की रीति  है कि  एक अपराधी सालों साल तक कोर्ट की सजा मिलाने के बावजूद जेल में मेहमान की तरह रहता है और बाहर बहस चलती है कि उसे क्षमादान दिया जाए या नहीं . आखिर इस लेतलाली की नीति क्या है क्या वाकई  इसमे कोई राज़ है . दिख तो यही रहा है . यदि आप अपने घाव भरने के लिए ऐसे कदम उठा रहे हैं तो ठीक नहीं है आपकी जिम्मेदारी राष्ट्र के घाव भरने की है . किसी तरह की रिपेयरिंग  करना अपना स्वहित करना है, ऐसे मामले स्वहित के नहीं राष्ट्र हित के होते हैं . अफज़ल को फांसी जल्दी होती तो उसमें निहित राष्ट्र हित स्वत; नज़र आता, देर ने इस राष्ट्र तत्व को धुंधला दिया है और उसमें  से राज़ तत्व की बू आने लगी है . राष्ट्र के नीति निर्धारक तत्वों को अपनी नीति साफ़ स्वच्छ और त्वरित रखना चाहिए .
 
मीडिया ने नीति त्वरित रखी  है और वह इसे भुना रहा है 24 घंटे के काम की तरह फ़िज़ूल की गपशप करके वह दिखा रहा है कि  कैसे वह राष्ट्र के लिए काम कर रहा है ऐसे में वो एक अपराधी को हीरो बनाने की चूक कर रहा है  बहस से इसे जटिल कुटिल बना रहा है यह मेरा अपना मीडिया है जिसने  प्रोफेशनल होने के बाद अपनी बुद्धि और विधा को ताक पर रख दिया है . असंगत शो के ज़रिये और विश्लेषणों - इतिहास के ज़रिये जिस तरह का कवरेज़ हो रहा है वह ऐसी अन्धगति  है जिससे राष्ट्र आहत हो रहा हो , एक सद्समझ कब उपजेगी .यह मीडिया का राजतत्व है .जय राज़-तत्व की  नहीं निहित  राष्ट्र-तत्व  की होना चाहिए 
सुरेन्द्र बंसल