हैदराबाद बम धमाके की पड़ताल में सुरक्षा अधिकारी जुट गए हैं ,उम्मीद है जल्दी उन सुरागों से वह रास्ता मिल जाएगा जहाँ से आतंक के खौफनाक अमानवीय चेहरे दिलसुख नगर पहुंचे थे.१६ लोगों की मौत और ११७ लोगों के घायल होने की खबर मामूली नहीं है . गृह मंत्रालय को पता था कोई इस तरह की वारदात हो सकती है जो अंदेशा था उसमे हैदराबाद भी एक जगह थी लेकिन ख़ुफ़िया एजेंसियों की सतर्कता के वाबजूद इस वारदात को रोका नहीं जा सका . जब चाक चौबंद हम नहीं हो सकते फिर अहम् सूचनाओं के क्या अर्थ है ?
हैदराबाद की घटना से जाहिर है हमारे तंत्र के अंतर यन्त्र यानी आतंरिक विभागों में तालमेल का अभाव है .कोई सूचना तब तक अर्थ पूर्ण नहीं है जब तक उस पर कारगर करवाई नहीं होती . ख़ुफ़िया तंत्रों ने बता दिया था जिन स्थानों पर आतंकवादी बड़ी घटना को अंजाम दे सकते हैं उनमें से हैदराबाद और संभवतः दिलसुख नगर भी हो सकता है .फिर भी व्यवस्था में प्रबंध की चेतना नहीं आई . बहुत ही आसानी से सिरफिरे लोगों के किसी गुट ने इस घटना को अंजाम दे दिया . जब दिलसुख नगर ऐसी घटनाओं का दर्द पहले से भोग रहा है तब वहां चौकसी नहीं रख पाना राज्य सरकार की और उसके आतंरिक प्रभागों की विफलता है .केंद्र से आई कोई गंभीर सूचना कितनी गंभीर है यह राज्य नहीं समझ सका और यदि समझ भी लिया तो कारगर प्रबंध सुरक्षा इंतजाम नहीं कर सका ये राज्य की गंभीर विफलता है .यह देखा और पड़ताल किया जाना चाहिए कि राज्य ने इस सूचना पर क्या कदम उठाये और क्या वे नाकाफी थे?
जब तक कोई तंत्र और उसके भीतरी यन्त्र काम नहीं करेंगे इस तरह की घटनाओं को कैसे रोक जाएगा . किसी भी चाक चौबंद व्यवस्था के लिए सजग ,सक्रिय और फुर्तीले सोच के लोगों की जरुरत होती है हमारे तंत्र में अलसाए और कागजों को आगे बढ़ा कर जिम्मेदारी से मुक्त हो जाने वाले निष्क्रिय, अकर्मक , निठ्ठले लोगों की भरमार है वे काम नहीं करना चाहते काम से मुक्त होना चाहते हैं अपना पल्ला झाड लेना चाहते हैं . व्यवस्था ने तंत्र के इन यंत्रों को जिम्मेदार और क्रियाशील बनाना होगा सक्रिय करना होगा और उन यंत्रों को बदलना होगा जो काम नहीं कर रहे है या ऐसे यन्त्र जिनकी क्षमता नहीं रहीं . तंत्र को यह देखना ही होगा कि उसका यन्त्र कैसा है ? उनका समन्वय कैसा है और उससे मिलने वाले प्रोडक्ट की क्वालिटी कैसी है?
यह जागरूकता तंत्र के भीतर ही नहीं उसका उपभोग या उसके प्रभाव में आने वाले लोगों में भी होना चाहिये . लोग याने इन तंत्रों और यंत्रों के परिणामों को झेलने वाली जनता को भी इतना सक्रिय होना चाहिये उसे स्वयं को वयवस्था को एक उत्पाद की तरह लेना चाहिए और अपने को एक उपभोक्ता मानना चाहिए . आखिर वह दुनिया भर के टेक्स देकर एक तरह से अपनी सुरक्षा ,और व्यवस्थाओं का खरीदार है . जब उसे अपना मूल्य पूरा नहीं मिले तो उस एक वस्तु की तरह बदल देना चाहिए . यह एक तरह की जागरूकता है स्वयं के प्रति और मजबूत राष्ट्र के प्रति . लोकतंत्र का यही सच्चा और सीधा मंत्र है तंत्र को जिम्मेदार और यन्त्र को कारगर बनाने की .