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Monday, February 22, 2016

इन्हें आज़ाद होना है इनसे आज़ाद होना है



कोई शक नहीं मुझे . वाक़ई यह आज़ादी की लड़ाई है जो जेनयू के भीतर लड़ी जा रही है। गुटों में संघर्ष वैचारिक भिन्नता का चरमोत्कर्ष  द्वन्द है। यह वाम की दखिन से लड़ाई है लेकिन ये देश की सार्वभौमिकता और अखण्डता की भी लड़ाई है। यहाँ बँटे हुए लोग एक पंथ से मुक्ति चाहते हैं जबकि पंथिक विश्वविद्यालय के पक्षधर इसे अपनी सार्वभौमिक सत्ता बनाये रखना चाहते हैं।
यह विचित्र अनुभूत है कि एक शैक्षिक संस्थान वैचारिक स्वंतंत्रता की आड़ लेकर राष्ट्र को चुनौती देने का अक्षम्य अपराध कर रहा है। क्यों? यह क्यों हो रहा है इससे ज्यादा जरुरी यह खोजना है कि किसलिए हो रहा है।

मैंने अपने विवि से पांच डिग्रियां हासिल की लेकिन शिक्षा के दौर में कभी कहीं यह महसूस नहीं किया कि राष्ट्रविरोधी नारे लगे हों हमेशा एक जोश राष्ट्र प्रेम का ही महसूस किया है। फिर ये खतरनाक बदलाव क्यों नज़र आ रहा है वह भी जेनयू जैसे ख्यात संस्थान में। निश्चित तौर पर हमारी  नवपौध में  जो पानी डाला जा रहा है  वह एक सामुदायिक योजना के तहत निहित एक पंथ विचार से ग्रसित है। अब तक यह विवि ऐसी विचारधारा पर काम कर रहा है जो वामपंथ की ओर जाता है । दखिन पंथी यह नहीं चाह रहे कि विवि किसी एक विचार के निर्माण का कारखाना बना रहे।ऐसे में टकराव स्वाभाविक है। इससे पनपी उग्रता ने वहां लोगो को आंदोलित किया और टकराव के जोश में एक सच सामने आया जिसका मंतव्य राष्ट्र को ललकारना है। यह घोर निंदनीय है कि  जेनयू के भीतरी परिसर से राष्ट्र विरोधी आवाज़ गूंजें और उसके समर्थन में ऐसे लोग आ जाएँ जो राष्ट्र के सत्ता में कभी बरसों तक काबिज़ रहे हैं। यह राजनीति की कैसी दशा है और कैसा राज का ये रण है । जहाँ राष्ट्र नहीं है वहां राज नहीं है। राष्ट्र का मान नही  तो आप राज के अधिकारी नहीं। बहुत फिजुलगर्दी चली बीते दिनों । कितने चेहरें बेनकाब हो गए । कैसे लोग है किस सोच के लोग हैं । राष्ट्र को तमाशा बना दिया  और दुश्मनों को हीरो । यह किसी कीमत पर नही चलना चाहिए। एक सशक्त निर्णय की जरुरत है।

विवि किसी पंथ धारा के लिए नहीं होते  वे बस शिक्षा के केंद्र होते हैं । छात्र की वैचारिक दृष्टि को उन्नत करना शिक्षा का काम है किस विचार को अपनाना यह विधार्थी की सोच पर है । लेकिन लगता है जेनयू में शिक्षा मदरसों की तरह करवाई जा रही है जिसमे उग्रता और आतंक भी समाविष्ट हो गया है । ऐसी परिस्थितियां घातक है जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए। किसे पकड़ा और किस पर देशद्रोह  का मुकदमा किया इससे ज्यादा जरुरी है ये पता करना कि यह माहौल कौन बना रहा है और उनके मकसद क्या हैं।  दरअसल छात्र बरगलाये जा रहे हैं यह बरसो से चल रही सुनियोजना है। इससे आज़ादी जरुरी है विवि के भीतर । विवि को एक पंथिक सोच से आज़ाद होना है आज़ादी विचार की लाना है एक प्रभाव की नहीं । अब तक कमज़ोर वृतियां रही है जिससे विवि के भीतर उग्रता और आतंक का द्रोही विचार भी पनप गया अब भी नहीं रोका गया तो यह कभी नहीं रुकेगा। इसलिए एक विचार को आज़ाद करो और भिन्न भिन्न विचारों को पनपने दो । विवि के भीतर जेहादी और आज़ादी के नारे लगाने वाले कुत्सित प्रयासों से जेनयू को अब आज़ाद करो ।

सुरेंद्र बंसल  (C)
copywrite
12.30 /2222016