Powered By Blogger

Saturday, December 18, 2010

चाल ऐसी हो कि अँधेरी राह पर भी उजाले हो जाएँ.....

चाल ऐसी हो कि अँधेरी राह पर भी उजाले हो जाएँ.....
राहुल फंस गए हैं .... अपने कहे पर उन्होंने सोचा नहीं बस कह दिया , एक जिम्मेदारी वाली बात को गैर जिम्मेदाराना ढंग से......भीतर की बात कहाँ आना चाहिए ,कैसे आना चाहिए यह विचार तो होना  ही चाहिए. सब कह रहे हैं राहुल ने हिन्दू कट्टर वाद की बात कर धर्म को आतंकवाद में घसीट दिया है.. लेकिन बात कुछ इस से बढ कर भी है.. जिसे अभी तक कोई नहीं कह पाया है.. विनय कटियार ने हलके से कुछ कहने कोशिश जरुर की थी लेकिन  सब आतंकवाद तक उलझ कर रह गए....
दरअसल राहुल के वक्तव्य का अर्थ के साथ समयपक्ष भी गलत है ... उन्होंने बेहद गंभीर बात एक विदेशी राजनयिक के सामने कही है ... अमेरिकी राजदूत को यह बताये जाने की कतई  आवश्यकता नहीं थी कि लश्कर  ए तोयबा से कही ज्यादा ख़तरा भारत को हिन्दू कट्टरपंथियों से है.... राहुल उस गंभीरता  को चूक गए जो जो एक परिपक्व राजनेता में होना चाहिए ....  राजनीति   की सड़क पर जब पैदल चलना हो तो इतना सतर्क और सावधान तो रहना ही होता है की पाँव तले की कीचड़ कपड़ों पर न आये ....  राहुल ने अपने कपडे खुद गंदे किये हैं .... लेकिन बात यहीं तक नहीं है...

जो कुछ हुआ वह सीमित नहीं है राहुल वाकई एक बड़ी भूल कर बैठे हैं ... उन्हें भारत के अंतरराष्ट्रीय अस्मिता और कूटनीति को ध्यान में रखना था..... राहुल को कहीं यह लगता था या विश्वास भी था कि देश में किसी धर्म या सम्प्रदाय से सम्बंधित आतंकवाद  पनप रहा है जो देश के लिए चुनौती है तब भी  उन्हें इसे अमेरिकी राजदूत को कहने की क्या जरुरत थी .... इससे जो  बात विश्व तक  पहुँची है उसका अर्थ यह है कि आतंकवाद से लड़ने वाले भारत जैसे देश के भीतर भी एक नया आतंकवाद पनप रहा है... .. सीधा अर्थ है कि हमारी लड़ाई आतंकवाद से ख़त्म हो गई और हम भी क्या पाकिस्तान की तरह एक आतंकवादी देश कि तरफ बढ रहे हैं ...... यह बात उठाना शुरू हो गई तो भारत की बहुत मुश्किलें बढ जायेंगी......  इस पर राहुल ने शायद सोचा ही नहीं ... राहुल ही क्यों और दुसरे कांग्रेस लीडर्स भारत में ही सांप्रदायिक आतंकवाद की बार्तें करते रहे हैं वे भी गैरजिम्मेदाराना आचरण कर हैं...... राहुल भी न समझी में कुछ ऐसे ही नेताओं के साथ हो गए हैं .....घर की बात को घर में कहना होता है राहुल ने इसे बाहर कह दिया है ..... उन्हें इसकी क्या जरुरत थी और किसी बाहरी य विदेशी को कहने से क्या समस्या हल हो जाती है? .... क्या कोई बेटा बाहर जाकर कहता है की उसे आज पिता ने थप्पड़ मारा है या कोई बाप यह कहता की उसका बेटा बिगड़ा हुआ है... बात सिर्फ समझाने की है... राहुल के लिए राह अभी बड़ी और नयी है उन्हें दूर तक चलना है तो तो अपने को संभल कर और स्वाभिमान बना कर चलना पडेगा ... .. लम्बी राह पर चलने के लिए साफ़ सुथरा बना रहना जरुरी है क्योंकि राह पर कपडे न बदले जा सकते हैं और न ही उजले किये जा सकते हैं ..... चाल तो ऐसी होना चाहिए कि अँधेरी राह पर भी उजाले हो जाएँ.....
<span>सुरेन्द्र बंसल </span>

No comments:

Post a Comment

thanks for coming on my blog