भाजपा में यह अस्तित्व का दौर चल रहा है .पहचान तो भाजपा में बहुत से लोगों की बनी हुई है लेकिन अस्तित्व बहुत से लोगों का बचा नहीं है ,जो कुछ है वह खंडित है या उसे चुनौती है . कुछ लोग अतिमहत्वाकान्क्षाओं के हिलोरे खा रहे हैं . लग रहा इन सबके चलते देश की सबसे बड़ी राजनैतिक विपक्षी पार्टी हाशिये पर चली गई है .
दरअसल नरेन्द्र मोदी और नितिन गडकरी की नव युगल सरकार ने बहुत से लोगों को पार्टी के भीतर हिलाया है . लोग समझ गए हैं पार्टी अध्यक्ष और प्रधानमंत्री पद के दावेदार के बीच गठजोड़ लाइन में खड़े लोगों को सरकाकर आगे बढ़ने की कवायद है. पार्टी के दो बड़े नेता जब अपने अपने अस्तित्व के लिए गठजोड़ कर लें तो यह उन लोगों के लिये बड़ी चुनौती है जो पार्टी के भीतर व्यवस्था के अनुरूप कार्य कर रहे हैं .बहाना चाहे संजय जोशी बने हों लेकिन संजय जोशी को पार्टी से हलाल करना एक रेजिमेंट को तबाह कर देना है . संजय जोशी कोई मामूली हस्ती नहीं थे उनकी पार्टी के भीतर मौजूदगी एक तरह से संघ की मौजूदगी थी . संजय जोशी कभी मॉस लीडर नहीं रहे उनका काम दफ्तरी रहा है और नीति नियंता पर संघ की दृष्टि की तरह भी रहा है .
वैसे नितिन गडकरी संघ की मेहरबानी से ही पार्टी अध्यक्ष पर काबिज़ हुए थे और जब वे अध्यक्ष बने तो कोई सोच नहीं सकता था कि वे पार्टी अध्यक्ष बन भी सकते हैं उनका डील डौल भी वैसा नहीं था जिसमे एक राजनेता लोकनेता की छवि दिखाई दे.लेकिन वे अध्यक्ष बने और समय भी उन्हें पूरा मिला . फिर भी पार्टी ने उनके नेतृत्व में २०१४ की चुनावी तैयारी का मजबूत खाका तैयार नहीं किया और उनका टर्म पूरा होने आ गया . अब मोदी के भरोसे ही उनकी दूसरे टर्म की बुनियाद तैयार हुई है लेकिन यह उनकी योग्यता का सबूत नहीं है . एक तरह से पार्टी अध्यक्ष भावी प्रधानमंत्री की गोद में जा बैठे हैं .
नरेन्द्र मोदी गुजरात को चमकाने और मुख्यमंत्री रहते हुए अग्रिम राष्ट्रीय नेता की तरह उभरने वाले राजनीति के फिलवक्त इकलौते शख्श हैं अपनी बनती हुई पहचान को मोदी भी भुनाना चाहते हैं .और वे भी जो कर रहे हैं जिस तरह कर रहे हैं वह भाजपा को बचाने ,बनाने और उभारने का काम नहीं हैं, उनकी चुनौती पार्टी के सबसे बड़े नेता लालकृष्ण आडवाणी से लेकर गुजरात के केशुभाई पटेल और संजय जोशी तक है . मोदी इन चुनौतियों से निबटने की तैयारी में जुट गए हैं , मुंबई में राष्ट्रीय कार्यकारीणी से लेकर गुजरात की प्रांतीय कार्यकारिणी तक मोदी ने अनेक कवायदें की हैं और उनकी हरकतों से हताहत होने वालों की संख्या ज्यादा है . आज पार्टी के भीतर एक आग सुलगती नज़र आ रही है जो सुषमा स्वराज , अरुण जेटली जैसे अनेक नेताओं तक है , इस मसले पर बहुत से नेता और संघ के कर्ता भी अब बंटते नज़र आ रहे हैं .
जाहिर है भाजपा के भीतर यह लड़ाई चालू हो चुकी है २०१४ के लिए पार्टी तैयार हो या न हो जो दिख रहा है वह यह है कि अस्तित्व के लिए मिशन २०१४ का दौर चल रहा है इसमे पार्टी कहीं नहीं दीख रही है शायद २०१४ में सरकार बनाना उनका अजेंडा नहीं है . ऐसा है तो कांग्रेस के लिए यह अच्छा संकेत है .
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