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Sunday, June 17, 2012

प्रणब का राजनैतिक रिटायर्मेंट



अब यह तय है कि राजनैतिक हुनरबाज़ प्रणब मुखर्जी देश के तेरहवें राष्ट्रपति हो सकते हैं , यूपीए ने उनके नाम पर मोहर लगा कर उन्हें देश का प्रथम नागरिक होने की मान्यता दे दी लेकिन इसके साथ ही यह भी तय हो गया कि २०१४ में उनकी संभावित  प्रधानमंत्री की अंतर्उपजती भावना लगभग समाप्त हो गयी है,जाहिर है देश का प्रधान होने का राज़  दायित्व अब उनके पास नहीं आ सकेगा .

प्रणब मुखर्जी १९६९ में जब राज्य सभा के लिए चुने गए तब से आज तक उन्होंने केंद्र सरकार में विभिन्न पदों पर रहकर महत्वपूर्ण  मंत्रालयों और आयोगों का काम संभाला है . वे रक्षा मंत्री भी रहे ,विदेश मंत्री भी और वित्त मंत्री भी रहे हैं . और यह मामूली नहीं है इसलिए भी कि उनका यह तजुर्बा ५३ वर्षों के राजनैतिक जीवन से तैयार हुआ है . हालाँकि राजनीति में विवाद  न हो ऐसा होता नहीं है और आरोप भी लग जाते हैं . उनके साथ भी ऐसा ही हुआ है . इंदिरा गाँधी की मौत के बाद १९८४ में उन्हें राजीव गाँधी ने अलग थलग कर दिया था वे कांग्रेस से हटकर राष्ट्रीय  समाजवादी कांग्रेस  के नाम से नई पार्टी भी खड़ी कर चुके थे लेकिन जब नरसिम्हाराव आये तो उन्होंने प्रणब दा को योजना आयोग में अध्यक्ष बना कर फिर कांग्रेस  में शामिल कर लिया . जाहिर है वे कांग्रेस के बागी रहे हैं और राजीव से उनके मतभेद भी रहे हैं और सोनिया गाँधी भी इस बात को जानती हैं फिर भी उन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है तो इससे कांग्रेस  को कुछ फायदे है . 
पहला तो यह कि कांग्रेस  के पास उनकी पार्टी के भीतर प्रणब मुखर्जी से बेहतर कोई उम्मीदवार था ही नहीं , दूसरा फिर उन्हें उस नाम पर विचार करना होता जो प्रणब से बेहतर तो होता लेकिन पार्टी से बाहर से होता , तीसरा डॉ अब्दुल कलाम जो सर्वसम्मत उम्मीदवार हो सकते थे वे पार्टी से बाहर और एनडीए के समर्थन से राष्ट्रपति हो चुके हैं .इसलिए हर हाल में कांग्रेस के लिए फायदेमंद यही था कि प्रणब मुखर्जी का नाम आगे लाया जाए ,इससे कांग्रेस को सबसे बड़ा फायदा यह हुआ है कि उसका एक बड़ा नेता प्रधानमंत्री की दौड़ से बाहर हो गया है , इससे पार्टी संभावित विवाद से भी बच गयी है . मनमोहनसिंह दो कार्यकाल पूरे कर रहे है तीसरी मर्तबा वे शायद ही बनाये जाते ऐसे में किसी ऐसे  नाम को विचार में लाना ही होता. कांग्रेस के भीतर प्रणब मुखर्जी के नाम पर चर्चा करना और उन्हें ही मंज़ूर करना एक मजबूरी होती , शायद वे ही अगले प्रधानमंत्री होते , इस पर अब विराम लग गया है . अब मनमोहनसिंह तीसरी बार प्रधान होने का इतिहास बना सकते है या कोई और के लिए जगह बन गयी है यह साफ़ हो गया है .

देश का सर्वोच्च होना गौरवमयी हो सकता है लेकिन देश का प्रधान होना उस राज़ तंत्र का प्रमुख होना है जो लोकतंत्र से चलता है , इसलिए लोकशाही का राजा तो प्रधानमंत्री ही होता है जो  कभी गुमनाम नहीं होता अपने नैतिक राजधर्म से देश को संचालित करनेवाला वह प्रमुख व्यक्तित्व होता है , प्रणब मुखर्जी के लिए यह अवसर लगभग चला गया है वे सर्वोच्च तो हो जायेंगें लेकिन फिर भी देश के प्रधान होने का  राजनैतिक कर्म अब वे शायद नहीं कर पायेंगें .इसे उनका राजनैतिक रिटायर्मेंट कहे तो अनुपयुक्त नहीं होगा ,जिसे कांग्रेस पार्टी ने उन्हें प्रदान कर दिया है .

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