Powered By Blogger

Saturday, October 1, 2011

क्योंकि अन्ना घूसखोरी जारी है .....



अन्ना हजारे के आन्दोलन के दौरान घूसखोरी के खिलाफ जो जनमत बना था उसका असर शमशान की आग की तरह धीरे धीरे ठंडी पड़ रहा है लेकिन घूसखोरी न भस्म हुई है और न ही कम हुई है .हालांकि घोटालों के दौर में २ जी स्पेक्ट्रम को लेकर एक बार फिर बवाल मचा और अभी के गृह मंत्री चिदंबरम भी घेरे में आये . पर हर छोटे स्तर पर जहाँ आम लोगो का सामना घूसखोरों से हर रोज़ होता है उसकी भयान...कता यू पी के चंदौली में देखने को मिली , जब एक ट्रक ड्राईवर की पीट- पीट कर निर्मम हत्या इसलिए कर दी कि उसने मुंहमांगी रिश्वत देने से इनकार कर दिया था ..इस भयावह घटना को बीते ४ -५ दिन हो गए लेकिन सत्ता के राजाओं ने इसे एक मामूली घटना माना और पीड़ित पक्ष की कोई सुध नहीं ली .

अन्ना हजारे के आन्दोलन के समय यह माना जा रहा था कि भ्रष्ट लोगों में भय उत्पन्न हो गया है और देश एक नव सामाजिक सुधार की तरफ बढ़ रहा है .देश में सबने फिर गाँधी युग की शुरुवात देखी थी और उम्मीदों के दीपक जलाए थे . सरकार जन लोकपाल बनाने के लिए तैयार हो गयी ,शायद वह तैयार हो भी रहा होगा फिर भी निचले और हर छोटे स्तर पर जो सुधार दिखना चाहिए था या असर दिखना था वह उल्टा बे- असर नज़र आ रहा है , सरकार के हर विभाग में आज भी रिश्वत खोरी बदस्तूर जारी है , बे-रोक जारी और बे- खौफ जारी है.लोग हर छोटे काम के लिए आज भी रिश्वत देने को मजबूर हैं ,नगर निगम ,पंचायत , कलेक्ट्रेट , आबकारी , सीमा शुल्क , वाणिज्यकर , शिक्षा , सामाजिक सुरक्षा, पेशन , पोलिस आदि प्रकरणों मामलों में रिश्वतखोरी का वही आलम है. राज्य या केंद्र सरकार का कोई भी विभाग आज भी रिश्वत खोरी से अछूता नहीं हैं .

सवाल यह नहीं है की रिश्वत खोरी क्यों और कैसे चल रही है . वह जस्ब तक भ्रष्ट लोग सरकार के भीतर रहेंगें किसी न किसी रूप मे चलती रहेगी . सवाल यह है कि अन्ना के अनशन के बाद वह माहौल गर्म क्यों नहीं रहा सका जिससे रिश्वत खोरों में भय बना रहता अब यह भय क्यों नहीं है.क्या इसलिए कि अन्ना की टीम ने जन लोकपाल के बाद निचले स्तर की घूसखोरी की तरफ ध्यान नहीं दिया, क्या इसलिए कि लोगों को नेतृत्व आन्दोलन के दौरान मिला था वह सरकार से समझौते के बाद स्वयं कमज़ोर पड़ गया , क्या इसलिए कि आन्दोलन से जुड़े तत्व अपनी थकान मिटा रहे हैं या इसलिए कि यह सब क़ानून बनाने का इंतज़ार है ,या कुछ और ...

सवाल यह भी है कि उन राज्य सरकारों ने अपने अपने राज्यों में भ्रष्टाचार पर क्या कदम उठाये जो अन्ना के आन्दोलन में पूरे जोश से साथ थे ., म.प्र. की बात करें तो यहाँ पहली बार किसी रिश्वत खोर अधिकारी को अब तक की सबसे बड़ी सजा से दण्डित किया गया है , पर क्या छोटे स्तर पर रिश्वत खोरी रोकने के प्रयास किसी सरकार ने किये हैं क्या..म .प्र में भी हर विभाग में भ्रष्टाचार व्याप्त है कौन जागा और कौन सुध ले रहा है जरा स्सोचें . कोई नहीं हर जगह वही ढर्रा चल रहा है , सो गए रिश्वत खोरी के दलाल फिर जाग गए हैं और गरीब भी आज अपनी जेब काट कर रिश्वत दे रहा हैं.

रिश्वत का अर्थ ही पहले यह होता था कि गलत और गैर कानूनी काम करवाना है तो अंडर टेबल पैसे दो . अब हर काम के पैसे लगते हैं ,सरकारी नौकरी याने एक बंधी हुई गैरकानूनी कमाई का जरिया... यह चल रहा है और लोग अब भी ट्रस्ट हैं ... कहाँ है वे एक्टिविस्ट जो दहाड़ लगाते नहीं थक रहे थे क्यों आज एक मामूली ट्रक ड्राईवर घूसखोरी से मारा जाता है क्या यह आतंक नहीं है ,क्या यह भाईगिरी नहीं है . अन्नागिरी का जश्न मनाने वाले हम सबको यह विचार करना चाहिए क्योंकि अन्ना घूसखोरी जारी है ..
सुरेन्द्र बंसल

No comments:

Post a Comment

thanks for coming on my blog