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Tuesday, December 6, 2011

प्रधान बड़ा या मुख्य


Editorial in Pits;


राहुल गाँधी उत्तरप्रदेश में जिस गति से आगे बढ़ रहे है वह काबिले तारीफ़ है . मायावती की स्थायी होती सत्ता को वे चुनौती देते नज़र आ रहे है .कांग्रेस के लोग उन्हें मनमोहनसिंह का उत्तराधिकारी मान रहे हैं जबकि राहुल हैं कि  वे अपनी राजनीति को उत्तरप्रदेश से बाहर ही नहीं निकल  पा रहे हैं.

यह स्थिति राहुल ने खुद निर्मित की है या वे अपनी गति को नहीं समझ पा रहे है या उनकी कवायद उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री तक ही है . यहाँ यह सवाल स्वत; ही उपजता है कि क्या राहुल प्रधानमंत्री बनने के लिए वाकई तैयार है . इस सवाल का उत्तर यदि हाँ है तो राहुल उत्तरप्रदेश की सीमा से बाहर अपनी राजनीति क्यों नहीं ला रहे हैं . उनकी राजनीति का इस समय जो प्रतिलक्षण  है वह वह प्रधानमंत्रित्व   के लिए नहीं उत्तरप्रदेश  के मुख्यमंत्रित्व के लिए ज्यादा दिखाई पड़ता है .यहाँ बड़ी असमंजस की स्थिति है ,उनकी पार्टी उन्हें प्रधानमंत्री  जल्दी देखना चाहती है और जिसमे दिग्विजयसिंह जैसे राजनेता ऐसे कवायददार बने हैं जो हर हाल में राहुल के लिए रास्ता बनाने का काम कर रहे हैं  जबकि राहुल राष्ट्रीय राजनीति में दिलचस्पी रखते कहें दिखाई नहीं देते .

राष्ट्रीय राजनीति राष्ट्रीय मुद्दों पर चलती है .एक विचार और दृष्टिकोण पर चलती है जिसकी गति किसी पेसेंजर की तरह नहीं राजधानी  एक्सप्रेस की तरह त्वरित गति वाली होती है. राहुल गाँधी की राजनीति में फिलवक्त यह गति , यह त्वरितता कहीं नज़र नहीं आती . क्यों? क्यों राहुल राजनीति पर देशव्यापी चर्चाओं  में  शामिल नहीं होते . इसके कई कारण हो सकते है .पहला; शायद वे अभी अपने को राष्ट्रीय मुद्दों पर उपयुक्त नहीं मानते हैं .दूसरा ;  वे कांग्रेस के भीतर स्वयं को पार्टी विचारों से अलग मानते हैं .तीसरा ; वे बड़ी जिम्मेदारी से बचना चाहते है चौथा  ; वे पहले उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री  ही बनाना चाहते है .

कारण जो भी हो फिलवक्त राहुल गाँधी की हर चाल उतार प्रदेश के भीतर है . देश में अन्ना हजारे का आन्दोलन हो , २जी स्पेक्ट्रम , कामनवेल्थ आदि घोटाले हों , भ्रष्टाचार की व्यापक चर्चा हो ,महंगाई  की गर्मी हो या ऍफ़ डी आई  की विदेशी खुदरा दुकानों का मुद्दा हो राहुल या तो मौन रहे हैं या देर से थोडा बहुत बोले हों .दूसरी तरफ उत्तरप्रदेश के हर मामले वे वे बोलते , चलते फिरते और रोड शो करते नज़र आते है , फिर चाहे बुनकरों का मामला हो ,उत्तरप्रदेश के किसानो की जमीनों का मामला हो या दलितों के घर जाकर उनके साथ बैठकर भोजन करना हो .उत्तर प्रदेश में राहुल पूर्ण  राजनीतिज्ञ नज़र आते है  यह स्थिति राहुल को बड़ा राजनेता नहीं बनाती  उत्तरप्रदेश का नेता जरुर बनती है . याद करें कब आपने राहुल गाँधी को हमारे मध्य प्रदेश में , या महराष्ट्र ,गुजरात अथवा साउथ के प्रदेशों में देखा है . क्यों राहुल दूसरे राज्यों के लिए  चिंतित नहीं दीखते. उनके सलाहकार उन्हें खुद उत्तरप्रदेश के भीतर ही रखना चाहते है . राहुल शायद साफ़ शब्दों में कहें तो इस समाया राजनीति के बचकानेपन में है .

चुनौतियाँ ही व्यक्ति को मज़बूत और आत्मनिर्भर बनाती है .राहुल युवा है और देश का सही माने में नेतृत्व करना चाहते हैं और उसे युवा समय में ही हासिल करना चाहते हैं तो उन्हें राजनीति के कारक तवों को समझकर , राष्ट्रीय मुख्यधारा से जुड़ना होगा . उन्हें अनिश्चितताओं को भी ख़त्म कर अपनी विचारधारा को स्पष्ट  करना होगा  आखिर यह तो समझना पड़ेगा ही कि प्रधान बड़ा है या मुख्य !
surendra.bansal77@gmail.com

2 comments:

  1. UP ki kismat me koi bhala manush nahi hai shayad. Rahulji ko chammach, show, aur unknown source of money me maharat hai bus.

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thanks for coming on my blog