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Saturday, December 31, 2011

हर फिक्र को धुंएँ में मत उडाओ , हो सके तो २०१२ तुम अभी मत आओ !



२९ दिसम्बर  जाते हुए साल २०११ का सबसे दुखद , ग्लानियुक्त, हतप्रभ करने वाला , अविश्श्नीय , अनैतिक और लोकतंत्र को धोखा देने वाल दिन कहा जा सकता है . २०१२ की अगुवाई आज अच्छी नहीं लग  रही है . जश्न मनाने का भी कोई मन नहीं है अब सबको चिंता देश और सविंधान की करना चाहिए ,देवानंद की तरह का सकारात्मक सोच अब बदलते जमाने के साथ बदल गया है अब हर फिक्र को धुंएँ में नहीं उड़ाया जा सकता . कसौटियां अब बढ गई हैं और विश्वास छोटा होते जा रहा है .इस ठण्ड में लोकतंत्र मासूमियत की चादर ओड कर चौराहे पर असमंजस में खड़ा है और पहरेदार निर्लज्जता से घरों के अन्दर बेशर्मी की गर्माहट ले रहे हैं २०११ का दुःख जब तक दूर न हो , हो सके तो २०१२ तुम अभी मत आओ!
राज्य सभा के भीतर की घटना ने २०११ के साल भर की घटनाओं को भूला दिया है , याद नहीं किसे बयान करूँ , जब भी सोचता हूँ राज्य सभा का सजीव चित्रण आँखों के भीतर आ जाता है लगता है फिक्र को धुंएँ में उड़ाकर जब देवानंद गए तो उन्होंने कुछ सकारात्मक विचार को दिया था लेकिन अब फिक्र सब देश वासियों होना चाहिए कि  हम जिन्हें वोट देकर सरकार य अपना नेता बनाते है उनका आचरण , उनका दायित्व और उनका ईमान बना रह पायेगा या नहीं , क्यों हमारे चुने हुए लोग हमारे माई-बाप बन जाते हैं , उन्हें गुमान इतना बढ जाता है कि निरंकुश आचरण उनकी नियति बन जाती है और वे लोग अपनी सवैधानिक स्थिति का फायदा उठा कर लोकतंत्र का मज़ाक बनाते हैं.
केंद्र सरकार  राज्य सभा की घटना के लिए कितना ही दोष दूसरों पर मढ़े वह सबसे ज्यादा और पूरी तरह से दोषी  नज़र आती है . संख्याबल नहीं होने से राज्यसभा में उसने वह सब होने दिया जो एक जिम्मेदार तंत्र कभी नहीं कर सकता  , लोकसभा में उनके पास संख्याबल था क्या इसलिए वहां राज्यसभा का घटनाक्रम नहीं दोहराया जा सका . वहां सरकार ने विपक्ष के संशोधनों को धता भी बताया और पुरजोरी से लोकपाल बिल पास भी करा लिया .
राज्य सभा में आये अधिक संशोधनों में भी राजनैतिक षड़यंत्र ही है हर संभव टालमटोल कर समय बिताने की कोशिश करना लोकतंत्र को धोखा ही देना है  कांगेस को आत्म - चिंतन करना चाहियए की वे राष्ट्र को क्या परोस रहे हैं . भाजपा तो शुरू से ही बिल का विरोध यह कह कर कर रही थी कि मज़बूत बिल लाओ फिर सरकार  विरोधी दल से उम्मीद करें कि वह समर्थन करें यह बचकाना सोच है. दरअसल सरकार नहीं चाहती थी कि उसकी एक और हार हो और सरकार के बने रहने पर बवाल हो इसलिए सारी उधेड़बुन की गयी .
फिर भी  यह विचार तो होना ही  चाहिए कि गलत काम ,गलत आचरण और गलत विचारर को यूँ ही नहीं छोड़ा जा सकता और न ही राष्ट्र की हर फिक्र जिसमे लोकतंत्र का सम्मान , लोक भावना, लोकादर, नैतिक मूल्य , संविधान के प्रति निष्ठा , संवैधानिक दायित्व  निहित है उसे यूँ ही धुएं में नहीं उड़ाया जा सकता , अब हर फिक्र हमें करना होगी और सबक भी सीखना होगा जाते हुए २०११ का यही सबक संसद के भीतर से निकलकर आया है इसलिए २०१२ के स्वागत की कोई रूचि  नहीं है हो सके तो २०१२ अभी आने से पहले कुछ पल और रुक जाओ हमें २०११ ठीक करना है ..
सुरेन्द्र बंसल

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