यूपी में चुनाव के पहले मायावती ने जो बल्लम घुमाया उसकी मार बीजेपी को लग रही है .बसपा के दागी और बदनाम मंत्री बाबूसिंह रघुवंशी से पल्ला झाड़ कर मायावती ने खुद को तो बचा लिया लेकिन भाजपाई फंस गए . बताया जा रहा है भाजपा बाबूसिंह रघुवंशी के करोडो के मोहजाल में नहीं जातिगत समीकरण के चक्कर में जा फंसी है लेकिन क्या जानकर कोई कीचड़ में कूदता है ? यह सवाल आज गर्म है .
दरअसल बाबूसिंह रघुवंशी को बसपा से निकाले जाने और भाजपा में शामिल किये जाने के गहरे राजनैतिक अर्थ है ,यह कोई वाले वाले काम नहीं हो गया है , इसकी पूरी तैयारी पहले से ही हो सकती है . यह कैसे हो सकता है कि ऍन चुनाव के पहले मायावती अपने सबसे बदनाम और खास मंत्री को अचानक निकाल बाहर कर दे और तभी अचानक एक दरवाज़ा खुले ,और बाहर लिया गया व्यक्ति एक बड़ी पार्टी में शामिल कर लिया जाए . लगता है यह दोनों तरफ की पूर्व तैयारी ही थी जिसे परोसा ऐसा गया है कि वह नई डिश लगे . काशीराम के पूर्व टेलीफोन ओपरेटर और माया सरकार के दुधारू गाय की तरह कमाने वाले मंत्री बाबूसिंह रघुवंशी जब इअताने बदनाम हो चले की बसपा के लिए मुश्किले बन जाने की संभावना बढ़ गई तो मायावती के लिए समझदारी इसी में थी कि बाबूसिंह रघुवंशी को आउट करें .लेकिन मायावती सरकार में अकेले बाबूसिंह या एक दो ही भ्रष्ट हों ऐसा नहीं है फिर बाबूसिंह को बाहर किये जाने के पीछे और भी कारण जरुर होंगें जो पहले से ही बन - पक रहे होंगें .
मायावती दमदार महिला हैं वो कभी ऐसा नहीं कर सकती हैं कि फायदे की कोई चीज़ हाथ से चली जाए .बाबूसिंह से हो रहे नुकसान का सारा गणित मायावती ने जांच परख लिया होगा उन्हें जब लग रहा होगा कि बाबूसिंह रघुवंशी अभी कोई काम के नहीं हैं उन्होंने उसे बाहर कर दिया .और यह दिखला दिया कि वह दागदार मंत्रियों पर कड़ी कारवाई कर सकती हैं . इससे मायावती को दो फायदे हुए एक. नुकसान वाला काम ख़त्म हो गया . दो. भ्रष्टाचारी पर कारवाई कर मायावती स्वयं स्वच्छ और साफ़ हो गयी हालांकी बुंदेलखंड में उनका गणित भी कुछ गड़बड़ा सकता है .
वहीँ भाजपा भी कोई ऐसे ही बाबूसिंह को तुरत फुरत अन्दर लेने को तैयार नहीं हो गयी होगी . उसकी भी पहले से ही तैयारी लगती है . किरीट सोमैय्या के मार्फ़त आरोपों के घेरे में लेने का काम भी एक साजिश हो सकती है . वह यह कि आरोपों से मायावती को इतना गड़बड़ा दो कि बुंदेलखंड के इस बड़े नेता को बाहर करने के लीये मायावती मजबूर हो जाए और ऐसा हुआ जब बाबूसिंह समेत एनी भी बाहर किये गए .भाजपा की यह पूर्व तैयारी इसलिए भी लगती है कि बीते साल मार्च में मुरादाबाद के जिस मिड -टाउन क्लब में भाजपा के बड़े नेता जिनमें मुख्तार अब्बास नकवी, कलराज मिश्रा, सूर्यप्रताप शाही, मुरली मनोहर जोशी और विनय कटियार भी थे , एकत्र हुए थे वह आयोजन बाबूसिंह रघुवंशी के खासम ख़ास सौरभ जैन का था और तब सौरभ ने तीन हज़ार कार्यकर्ताओं की पार्टी करने में भाजपा पर बड़े उपकार किये थे .यहीं से वह गणित बना तैयार हो गया था जिसका परिणाम बाबूसिंह रघुवंशी को भाजपा में शामिल करना है . मायावती बाबूसिंह को बर्खास्त नहीं करती तब भी बाबूसिंह मायावती के लिए सरदर्द बन सकते थे और भाजपा का सुप्पोर्ट एन चुनाव के वक़्त कर सकते थे . माया ने यह सब भांप कर ही बाबूसिंह को बर्खास्त किया हो .
जाहिर है यह राजनैतिक खेल है जो पहले से ही तैयार किया गया लगता है , भाजपा बिना फायदे के एकाएक चुनाव में बदनामी क्यों मोल लेती यह राजनैतिक दुराचार जरुर लगता है और गडकरी चूँकि अध्यक्ष हैं इसलिए गड़बड़ी उनकी नज़र आ रही है पर इसमे कई नेता शामिल रहे है जो रन ले लिए जमीन तैयार कर रहे थे .यह इसलिए भी कि कोई कीचड में जानकार नहीं कूदता है और कमल जो जानता है वह कीचड में ही बेहतर खिलता है वह भी ऐसे कभी कीचड में कूदता नहीं है ,यह ज़रूर कि नैतिकता की डगाल नाज़ुक होती है और कीचड में भी कूदने से वह धराशायी हो सकती है .
सुरेन्द्र बंसल
दरअसल बाबूसिंह रघुवंशी को बसपा से निकाले जाने और भाजपा में शामिल किये जाने के गहरे राजनैतिक अर्थ है ,यह कोई वाले वाले काम नहीं हो गया है , इसकी पूरी तैयारी पहले से ही हो सकती है . यह कैसे हो सकता है कि ऍन चुनाव के पहले मायावती अपने सबसे बदनाम और खास मंत्री को अचानक निकाल बाहर कर दे और तभी अचानक एक दरवाज़ा खुले ,और बाहर लिया गया व्यक्ति एक बड़ी पार्टी में शामिल कर लिया जाए . लगता है यह दोनों तरफ की पूर्व तैयारी ही थी जिसे परोसा ऐसा गया है कि वह नई डिश लगे . काशीराम के पूर्व टेलीफोन ओपरेटर और माया सरकार के दुधारू गाय की तरह कमाने वाले मंत्री बाबूसिंह रघुवंशी जब इअताने बदनाम हो चले की बसपा के लिए मुश्किले बन जाने की संभावना बढ़ गई तो मायावती के लिए समझदारी इसी में थी कि बाबूसिंह रघुवंशी को आउट करें .लेकिन मायावती सरकार में अकेले बाबूसिंह या एक दो ही भ्रष्ट हों ऐसा नहीं है फिर बाबूसिंह को बाहर किये जाने के पीछे और भी कारण जरुर होंगें जो पहले से ही बन - पक रहे होंगें .
मायावती दमदार महिला हैं वो कभी ऐसा नहीं कर सकती हैं कि फायदे की कोई चीज़ हाथ से चली जाए .बाबूसिंह से हो रहे नुकसान का सारा गणित मायावती ने जांच परख लिया होगा उन्हें जब लग रहा होगा कि बाबूसिंह रघुवंशी अभी कोई काम के नहीं हैं उन्होंने उसे बाहर कर दिया .और यह दिखला दिया कि वह दागदार मंत्रियों पर कड़ी कारवाई कर सकती हैं . इससे मायावती को दो फायदे हुए एक. नुकसान वाला काम ख़त्म हो गया . दो. भ्रष्टाचारी पर कारवाई कर मायावती स्वयं स्वच्छ और साफ़ हो गयी हालांकी बुंदेलखंड में उनका गणित भी कुछ गड़बड़ा सकता है .
वहीँ भाजपा भी कोई ऐसे ही बाबूसिंह को तुरत फुरत अन्दर लेने को तैयार नहीं हो गयी होगी . उसकी भी पहले से ही तैयारी लगती है . किरीट सोमैय्या के मार्फ़त आरोपों के घेरे में लेने का काम भी एक साजिश हो सकती है . वह यह कि आरोपों से मायावती को इतना गड़बड़ा दो कि बुंदेलखंड के इस बड़े नेता को बाहर करने के लीये मायावती मजबूर हो जाए और ऐसा हुआ जब बाबूसिंह समेत एनी भी बाहर किये गए .भाजपा की यह पूर्व तैयारी इसलिए भी लगती है कि बीते साल मार्च में मुरादाबाद के जिस मिड -टाउन क्लब में भाजपा के बड़े नेता जिनमें मुख्तार अब्बास नकवी, कलराज मिश्रा, सूर्यप्रताप शाही, मुरली मनोहर जोशी और विनय कटियार भी थे , एकत्र हुए थे वह आयोजन बाबूसिंह रघुवंशी के खासम ख़ास सौरभ जैन का था और तब सौरभ ने तीन हज़ार कार्यकर्ताओं की पार्टी करने में भाजपा पर बड़े उपकार किये थे .यहीं से वह गणित बना तैयार हो गया था जिसका परिणाम बाबूसिंह रघुवंशी को भाजपा में शामिल करना है . मायावती बाबूसिंह को बर्खास्त नहीं करती तब भी बाबूसिंह मायावती के लिए सरदर्द बन सकते थे और भाजपा का सुप्पोर्ट एन चुनाव के वक़्त कर सकते थे . माया ने यह सब भांप कर ही बाबूसिंह को बर्खास्त किया हो .
जाहिर है यह राजनैतिक खेल है जो पहले से ही तैयार किया गया लगता है , भाजपा बिना फायदे के एकाएक चुनाव में बदनामी क्यों मोल लेती यह राजनैतिक दुराचार जरुर लगता है और गडकरी चूँकि अध्यक्ष हैं इसलिए गड़बड़ी उनकी नज़र आ रही है पर इसमे कई नेता शामिल रहे है जो रन ले लिए जमीन तैयार कर रहे थे .यह इसलिए भी कि कोई कीचड में जानकार नहीं कूदता है और कमल जो जानता है वह कीचड में ही बेहतर खिलता है वह भी ऐसे कभी कीचड में कूदता नहीं है ,यह ज़रूर कि नैतिकता की डगाल नाज़ुक होती है और कीचड में भी कूदने से वह धराशायी हो सकती है .
सुरेन्द्र बंसल
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thanks for coming on my blog