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Saturday, January 28, 2012

शर्म के रत्न


अनेक अनमोल रत्नों से जडित भारतीय क्रिकेट टीम टेस्ट मैचों में जिस तरह आस्ट्रेलिया से परास्त हुई उससे कही अब यह नहीं लगता कि हमारे रत्नों का मूल्य अनमोल है. अनमोल वही होता है जो कही और न मिले न जिसका मोल किया जा सके . हमारे क्रिकेट खिलाडी गौतम गंभीर , वीरेंद्र सहवाग, सचिन तेंदुलकर , वीवी एस लक्ष्मण , महेंद्र सिंह धोनी याने ११ में से ६ रत्न सबके सब  अनमोल फिर भी  सब पीट गए ,धुल गए .
ये हालत आज उत्पन्न नहीं हुए हैं यह तब से चल रहा है जब १९४७ में हम जब पहली बार आस्ट्रेलिया खेलने गए . तब हम पाच टेस्ट मैच में से चार हारे और एक ड्रा रहा था .तब से हम आस्ट्रेलिया में ४० मैच खेल चुके है और आपको बता दें हमें जीत सिर्फ पांच दफा ही मिली है जबकि २६ बार हमें हार देखना पड़ी है हालाँकि ९ बार ऐसी स्थिति रही कि  टेस्ट मैच बराबर रहा . लेकिन ऐसा बहुत कम हुआ है जब आपकी टीम  में एकसाथ 6 बड़े दिग्गज हों सबके सब अनमोल हों और फिर टीम की ऐसी दुर्गति हो कि सारे टेस्ट मैच हार जाएँ तो सवाल ऐसे मूल्यों का  जरुर हो उठता है जिनसे बाज़ार का आधार खड़ा होता है . खेल भी आज एक बाज़ार बन गया है जिसे क्रिकेट ने सबसे अधिक बाजारू बनाया है इसलिए अब खेल रत्नों की कीमत भी वहीँ आंकी जाती है जहाँ बाज़ार होता है ,आज यह बाज़ार कह रहा है कि इन अनमोल कहे जाने वाले रत्नों का कोई मूल्य अब नहीं रहा .
ऐसा क्यों ? इसलिए कि  रत्नों के महारत्न सचिन तेंदुलकर  जिन्होंने आस्ट्रेलिया में २० मैचों में २४१ अधिकतम नोट आउट ५३ की औसत से बनाएं है इस बार के चार मैचो में २८७ रन अधिकतम ८० और औसत ३५ का ही बना सके हैं. दो तिहरे शतक के महाधनी वीरेंद्र सहवाग १० मैचों में ९४८ रन ४७ की औसत से बनाने वाले इस बार चार मैच में सिर्फ १९८ रन २९ के औसत से बना सके है इसी तरह द्रविड़ जो १५ मैचो में ११४३ रन  लगभग ४४ की औसत से बना चुके है इस बार चार मैचों में सिर्फ १९४ रन बना सके है २४ की औसत से. लक्ष्मण भी १५ मैच खेल कर १२३६ रन अपने नाम ४४ की औसत से कर चुके है उन्होंने भी चार मैच  खेलकर   १५५ रन १९ की औसत से बनायें .कप्तान धोनी ७ मैचों में २४३ रन ही बना सके थे जो १८ की औसत से थे इस बार उन्होंने औसत मे सुधार किया और ३ मैचों से २४३ रन बनाकर  २० की औसत  तक पहुंचे . गौतम गंभीर पहली बार आस्ट्रेलिया गए थे चार मैचों में १८१ रन २२ की औसत से बना सके .
जाहिर है  इन छः रत्नों में सभी ने गिरा हुआ खेल दिखाया है   . बाज़ार का खेल आंकड़ों से चलता है और उसका मूल्य रोज़ तय होता है उतार चडाव से साख बनती   और बिगड़ती  है  आज क्रिकेट एक बड़ा बाज़ार बन गया हे तो आंकड़े यही कह रहे हैं कि इन रत्नों का बाज़ार में कोई मूल्य नहीं रहा और फिलवक़्त ये चलने लायक नहीं हैं .अब क्रिकेट बोर्ड जो क्रिकेट को खेल से ज्यादा बाज़ार बनाने के लिए जिम्मेदार है उसे यह समझाना होगा की कौनसे रत्न कितने अनमोल रह गए हैं और कितने ना- मूल्य हो गए हैं .उनका क्या किया जाए /?
इसलिए भी कि रत्न अमूल्य , समृधि और प्रतिष्ठा के लिए भी होते है , जो रत्न खंडित ,धूमिल औइर टूट जाते हैं उनका न बाज़ार मूल्य होता है न प्रतिष्ठा बनी रहती है .ऐसे रत्नों को धारण किये रखना शर्म ही है इसलिए शर्म के रत्नों को धारण किये रहने से बेहतर है उन्हें  तत्काल बदला जाए .
सुरेन्द्र बंसल

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