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Saturday, March 31, 2012

सच देखकर आँखे मूंद लेना ईमानदारी नहीं है.



From: surendra bansal <surendra.bansal77@gmail.com>
जी आप मान सकते हैं हमारे रक्षा मंत्री ईमानदार हैं , हमारे सेनाध्यक्ष का बयान भी एक ईमानदार प्रयास है और देश में अब तक के एक सर्वाधिक ईमानदार प्रधानमंत्री काम कर ही रहे रहें .फिर भी देश में अब तक के सबसे बड़े घोटाले सामने इतने  ईमानदार लोगों के बीच ही आयें है , पता नहीं बहुतेरे ईमानदार लोगो के मध्य कुछेक बेईमान कैसे देश को पलीता लगा रहे हैं .रोज़ हजारों करोड़ के घोटाले सामने  आने की रफत जनता की बन गई है और वह सब सहते चली जा रही है . राजीव गाँधी महज़ ६५ करोड़ के बोफोर्स तोप घोटाले से सांसत में आ गये थे अब यह कथित घोटाला लगता है जीरे बराबर था , इतने छोटे घोटाले आयें तो शायद अब लोग घोटाला ही नहीं माने. यह भी हो सकता है छोटे मोटे घोटाले रोज़मर्रा की  तरह हो भी रहे हो और उन पर किसी का ध्यान जा ही नहीं रहा हो .
बहरहाल रक्षा मंत्री और सेनाध्यक्ष कुछ विवाद के बाद देश हित में एक जुट दिखने लगे हैं . दरअसल यह घोटाला नहीं है यह घूस की  पेशकश है जो देश के सबसे बड़े रक्षा संस्थान के सुप्रीम को पेश की गयी थी . इसमे अब कोई यह विवाद नहीं है कि यह सच था या झूठ . क्योंकि अब यह तय हो चूका है कि ऐसा कुछ उन दिनों हुआ था जो रक्षा मंत्री समेत तमाम लोगों के बीच भी एक शिकायत के तौर पर आया था  जाहिर है सेनाध्यक्ष ने जो आरोप लगाया है उसकी सच्चाई से कई लोग वाकिफ हैं . मामला २००९ से चल रहा है .७०० टेट्रा ट्रक खरीदी के बदले सिर्फ सेनाध्यक्ष को ही १४ करोड़ रुपये बतौर घूस देने की  पेशकश मामूली नहीं थी यह रकम और भी ज्यादा हो सकती है यदि ऐसी ही पेशकश डील से जुड़े रहेने वाले अन्य पक्षों को भी की गयी हो , इसकी पड़ताल तो अभी हुई ही नहीं है और कहीं चर्चा भी नहीं है लेकिन किसी डील में कोई एक पक्ष ही नहीं रहता उसके अनेक स्तर होते है और लोबिस्ट सभी स्तर पर कोशिश और तैयारी  करते हैं दूसरे पक्ष अभी जाहिर नहीं हुए है हो सकता है घूस देने का मामला आने वाले दिनों में कुछ बढकर मालूम हो .
जो भी हो सेना के भीतर के  सर्वोच्च कक्ष से अत्यंत संवेदनशील खबर बाहर आई है. इससे चिंताएं बड़ी हैं और खबरदार  रहने की  भी अधिक जरुरत है . इसकी दो वजहें हैं - एक- अत्यंत गोपनीय संस्थान के भीतर ऐसे लोगो की पहुँच जो पैसे के बल पर कुछ भी खरीदने की हिम्मत रखते हैं , दो - ईमानदार लोग बेईमानों को देखकर और पहचानकर भी आँखें क्यों मूंदे रहते हैं ..ये दोनों ही वजहे बड़ी चिंता देने वाली है . पता नहीं कब से कितने लोग सेना के भीतर ऐसे प्रयास करते रहे होंगें और सवाल यह भी है कि  क्या बरास्ता खरीदारों के दुश्मन भी अंदर तक पहुंचे है  दूसरा ऐसी ईमानदारी  क्या काम की जब बेईमान आपके सर पर खड़े हों आप उन्हें पहचान रहे हों और फिर भी आप चुप और मौन हो इस खुशफहमी से कि  आप ईमानदार है . जो पक्ष जितने  भी घोटाले  हुए है या उसके प्रयास हुए है जानते हुए भी आँखे मूंदे रहे हैं उन्हें कैसे कहे कि वे ईमानदार है , सच देखकर आँखे मूंद लेना कहीं भी ईमानदारी नहीं है..
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JADU



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JADU 

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