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Thursday, April 19, 2012

औरों के लिए . by Surendra Bansal on Wednesday, April 18, 2012 at 10:01pm ·


मैंने भी जिंदगी मैं उस चट्टान के पत्थर बीने हैं ,
जो कल तक तराशे गए कि काम  लायक थे 
नाकाम पत्थरों  को कौन उठाता है
न मंदिर बनाता है न कब्र , 
पत्थर बीनते बीनते 
चट्टान से इस तरह लुडक गया हूँ 
जैसे स्वयं पत्थर बन गया हूँ..

जिंदगी जब पथरा जाती है इस तरह 
संघर्ष टूट जाता है टूटते तारों की तरह 
तब कोई नहीं होता उस पत्थर का 
और वह फिर तराशा जाता है 
औरों के लिए ......

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