Powered By Blogger

Sunday, July 1, 2012

एक शहर का मृत हो जाना




इंदौर म.प्र. का एक जिंदादिल शहर है ( था ) . सुकून की वादियाँ इस शहर से ही खुशनुमा वातावरण का प्रसारण करती रही है .यूँ तो मालवा की शामें जग प्रसिद्ध हैं लेकिन इस शहर के जिंदादिल लोग और आतिथ्य - अपनत्व के संस्कार वाले लोग देश में कहीं और नहीं हैं . आज इस शहर पर हैवानों और दरिंदों का राज़ है . चार साल की मासूम शिवानी की जिंदगी छीन लेने वाले अपराधियों से यह शहर अब अटा पड़ा है . रोज़ एक से अनेक ख़बरें गेंग रेप , अपहरण . हत्या .बलवा . लूट , चोरी , डकैती की आ रही है  , क्रिमिनल पेनल कोड में उल्लेखित शायद ही कोई ऐसा अपराध बचा हो जो इन दिनों इस शहर में नहीं हुआ हो.फिर भी किसी को भी शर्म नहीं है . एक सांस्कृतिक शहर मर रहा है ,संस्कार ख़त्म हो रहे हैं, असुरक्षा बढ़ रही है , भय और आतंक यहाँ की आबोहवा में समां गया है ,लेकिन कर्ता सो रहे हैं लोग चुप हैं और शहर की सांस्कृतिक चिता की अग्नि देख कर भी उद्वेलित नहीं हो रहे हैं , यह मेरे अपने शहर की मौत है .

जिम्मेदार लोग कौन हैं इस बात की भी किसी को चिंता नहीं है ,फिर जिम्मेदारी कौन निभाएगा . एक पुलिस के बड़े अफसर ने कह दिया है आपके घर के भीतर हम चौकसी नहीं कर सकते लेकिन घर के बाहर की चौकीदारी पूरी तरह से हो रही है ? फिर इतने  बड़े और जघन्य अपराध कैसे हो रहे हैं .जिस शहर में मासूमियत को खुले आम रौंध दिया जाए उस शहर के अफसरों को एक पल भी अपने पद पर बने रहने का अधिकार नहीं है , इन्हें अविलम्ब निलंबित किया जाना ही चाहिए ताकि एक सीख और जिम्मेदारी का अहसास बना रहे . 

यह एक व्यावसायिक शहर है .लेकिन यह शहर किसी की दुकान नहीं है आज सबसे ज्यादा शासनिक और प्रशासनिक दुकानदारी इंदौर में ही हो रही है , हर कोई यहाँ व्यवसाय कर रहा है , अन्ना के विशाल आन्दोलन के वावजूद भी . पूर्ववर्ती सरकारों के समय में भी इंदौर सबसे बड़ी दुकान था और आज भी बड़ी और बढती हुई दुकान इंदौर ही है . यहाँ के लोग तो पहले से ज्यादा व्यस्त हैं ही लेकिन जिम्मेदार तत्व महा व्यस्त और महा भ्रष्ट हैं इसमे अब कोई दो बात नहीं है. अफसरों में कौन नहीं है जो इंदौर का स्थायी नहीं है और इंदौर का जमाईं नहीं है . बीते दस -बीस वर्षों का रिकॉर्ड इमानदारी से खंगाला जाए तो सीबीआई को दस-बीस सालों तक इन मामलों से फुर्सत नहीं मिलेगी .

प्रशासनिक के साथ राजनीति भी इस शहर की एक बड़ी दुकान है . इसमें लोग नहीं है जो है या जो कुछ है वह सिर्फ पैसा है , यह बात बहुत कडवी है लेकिन इस शहर की  भी यह सच्चाई है , राजनीति में बहुत से गठजोड़ हैं जो दुकानों की तरह चलाये जा रहे हैं यह गठजोड़ किससे है यह बताने की जरुरत नहीं है लेकिन ये गठजोड़ असामाजिक और अनैतिक हैं.इन पर कोई आंच नहीं हैं और ये फलफूल रहे हैं चल रहें है विकसित हो रहे हैं पनप रहें है ,नए तैयार हो रहे हैं और शहर की प्रदेश की राजनीति की ऐसी भी कर रहे है तैसी भी कर रहे हैं.ख़ास यह है कि इनकी सफेदी और चमकार कायम है.किसी दल में कोई रोक नहीं है सब फलफूल रहे हैं सब राज़ करते हुए राजा हैं नीति की नैतिकता आज इस राजनीति का हिस्सा नहीं हैं. सोचने वालों के लिए यह शर्म है बेशर्म लोगों के लिए यह फिजूल है .

जाहिर है इन दुकानों के चलते शहर की मानवता मर गयी है अपराध बढ़ रहे है और बेशर्मी बढ़  रही है,अब यह मेरा वह शहर नहीं है उसकी मृत स्थिति में हम जी रहे हैं शर्म है तो मुझे अपने पर ,मैं याने एक नागरिक जिसने इतने निठ्ठले और निष्काम लोगों को बढने  पनपने दिया है 

4 comments:

  1. सही और सटीक विश्लेषण किया है
    आपने ....

    "कभी जिन्दा था - अब मर रहा हूँ
    बचा सके तो बचाले - फिर
    ये ना पूछना क्या कर रहा हूँ.... "

    ReplyDelete
  2. Jagruk logo ka Jinda shahar ab samvedavheenata se grast ho gay hai..

    ReplyDelete

thanks for coming on my blog