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Sunday, August 5, 2012

स्वागतम अन्ना !

स्वागतम अन्ना ! 
देश इन दिनों इस बात की बहस में पड़ा है कि अन्ना हजारे व्यापक जन समर्थन के बाद राजनीति में क्यों उतर रहे हैं ? एक नया विचार देश के सामने आया है तो इसका मूल्यांकन होना ही चाहिए. लेकिन इसे जिस तरफ और जैसे बढाया जा रहा है  वह ठीक नहीं है . अन्ना की हर हरकत से पेट में उन लोगों को मरोड़े आती रही है जिन्हें अन्ना के आन्दोलन का प्रत्यक्ष सामना करना पड़ा है . ऐसे लोग और इनके लोग आज देश में इस बात का माहौल तैयार कर रहे हैं मानो अन्ना ने राजनीति में आने का फैसला कर  कोई बड़ा अपराध कर दिया हो .

लोकशाही की सबसे बड़ी  ताकत और उसे संचालित रखने का सबसे बड़ा कृत्य राजनीति ही है . स्वस्थ राजनैतिक विचार देश को स्वस्थ और खुशहाल रखते हैं .राजनीति सिध्दांतों और विचारो के अनुरूप चलाई जाने वाली ऐसी प्रतिद्वंदिता है जो अपनी नीति के अनुरूप राष्ट्र को विकसित ,प्रतिष्ठित और सुरक्षित  रखने का राज़-यत्न करती है और जब ऐसे विचारों और मूल्यों  के लोग सामूहिक हो जाते हैं तो वह एक संस्था बन जाती है ,यही संस्था  राजनैतिक दल कहलाती है .

किसी आन्दोलन और अनशन को राजनीति से अलग  रखना बेमानी है , हर आन्दोलन राजनीति  का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हिस्सा होते हैं . क्योंकि जब कोई गैर राजनैतिक आन्दोलन आप कर रहे होते हैं तब भी आप राजनीति को प्रभावित करते हैं .लोकतंत्र में राजनीति को प्रभावित किये बिना कोई नीति बन नहीं सकती . अन्ना हजारे और उनकी टीम यही चाहती थी कि राजनीति इतनी प्रभावित हो कि देश की राजनीति की दिशा पलटे और राष्ट्र फिर एक नई दिशा से उन्नत होकर आगे बढ़े . राष्ट्र का सबसे बढ़ा अवरोध इस समय इसके अंतर में समाहित व्यापक भ्रष्टाचार है . जन के लिए तैयार हुआ राज़ आज इसी भ्रष्ट आचरण से जन जन और राष्ट्र को खा रहा है . इसी मुद्दे को लेकर अन्ना हजारे और उनके साथी आगे बढ़े देश को एकत्र किया एक व्यापक माहौल तैयार किया तो उन्होंने क्या अपराध किया . लेकिन देश कि सरकार और राजनीति ने इसे अपराध माना और इस व्यापक जन मुद्दे के साथ बड़े स्तर पर राजनीति की गयी . जो लोग साथ थे  उन्होंने भी और जो खफा थे उन्होंने ने भी कुटिल राजनीति कर आन्दोलन को ख़त्म करने का पूरा प्रयास किया . संसद के भीतर कैसे लोग हैं इसे जब अन्ना के लोगों ने मुद्दा बनाया तो सभी राजनैतिक लोग भड़के . लेकिन किसी ने यह नहीं कहा कि हाँ ऐसे लोग संसद के भीतर हैं जो संसद की गरिमा को ठेस पहुंचाते है . ऐसे लोगो पर चल रही राजनीति ने ही कहा कि चुने हुए लोगों के बारे में ऐसा कहाँ लोकतंत्र और संसद का अपमान है . लेकिन किसी ने यह नहीं कहा कि इन लोगो को राजनीति में लाने कि हमने गलती की  है और हम अब राजनैतिक शुचिता को बनाने का यत्न करेंगें . दरअसल इतनी हिम्मत देश की राजनीति में बची नहीं है इसलिए राजनीति में शुद्धता ,स्वस्थता ,नैतिकता और वैचारिकता ही नहीं है और जब तक राजनीति के ये शुध्द तत्व नहीं होंगें राजनीति न बदलेगी और न देश बदलेगा .  इन्हीं मुद्दों को लेकर अगर कोई राजनीति में आता है तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए 

अन्ना हजारे और उनके लोग अपने जमे हुए विश्वास की पूंजी पर राजनीति में आ रहे हैं उनके लिए चुनौतिया ज्यादा है ,और समय भी कम है  यदि वे सफल हो गए तो देश कि राजनीति नए मोड़ पर होगी और खुद फिसल गए तो हमेशा के लिए वे  उनके सारे रस्ते बंद हो जायेंगें . खुले दिमाग खुली सोच और पक्के इरादे से उन्हें आगे बढ़ना होगा उनकी संख्या संसद के भीतर भले कम हो लेकिन पक्के इरादे और नीतिगत लोग यदि संसद के भीतर दिखने लगेंगें तो यह देश की राजनीति के लिए और लोकतंत्र के लिए नई सुबह होगी . इसे जीवंत रखना होगा रष्ट्र के भले के लिए इसलिए फिलवक्त सभी को कहना  चाहिए स्वागतम अन्ना !

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