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Tuesday, September 18, 2012

बेस्वाद बर्फी और इत्ती सी ख़ुशी इत्ती सी हँसी


याद नहीं आखरी फिल्म थियेटर में कब और कौनसी देखी थी , थ्री इडियट्स भी यूँ ही घर पर देख ली थी ,अच्छी फिल्मों का शौक जरुर है लेकिन फिजूल की फिल्मों में कभी मन लगा नहीं, इसलिए टेस्ट ही ख़त्म सा हो गया। आज बरसों बाद लगा चलो थियेटर चलते हैं .रणबीर कपूर की बर्फी का कुछ  स्वाद ले लेते हैं , इसलिए भी कि कपूर खानदान का सबसे जवाँ हीरो फिल्म में है तो यह भी देखना है कि  राजकपूर की विरासत का कोई हीरो अब भी है कि नहीं।अचानक बने प्रोग्राम से पीवीआर में सीट मनपसंद मिलना नहीं थी , मित्र आदित्य ने वीआयपी  सीट का इंतजाम कर दिया था।
फ्लेश बैक से फिल्म शुरू हो गयी। जब कोई फिल्म फ्लेशबैक से शुरू होती है तो माना जाता है  की फिल्म की कहानी कसावट भरी और दृश्य कथानक के मुताबिक लाजवाब होंगें लेकिन शरू का एक घंटा मध्यम गति से यूँ ही निकाल दिया , हीरो हलकी -फुलकी कलाबाजियों से एक कामेडियन पात्र -सा उछलकूद करता रहा।लग रहा था इस संवादहीन  फिल्म की कमजोरी इसके पात्र नहीं इसका डायरेक्शन है।समीक्षाओं और रिव्यूव में अनुराग बसु के निर्देशन को कमाल का बताया जा रह है , टुकड़ों में यह निर्देशन अच्छा लगता है इसलिए की कुछ दृश्य अच्छे बन पड़े है लेकिन  फ्लेशबैक के दृश्यों का कहीं तारतम्य नहीं था और न ही पटकथा की इस तरह की मांग थी। फिर क्यों और किसलिए  फिल्म फ्लेश बैक में टुकड़ों में चलती रही, यह दर्शकों को कन्फ्यूज्ड करने  के लिए काफी था। मूक बधिर  हीरो और मेंटली रिटायर्ड हेरोइन से जो करवाया गया वह उन्होंने किया। इससे ज्यादा कुछ करने के लिए उनके पास कुछ था भी नहीं , दो प्रमिकाओं से  प्यार और भावनाओं की खातिर अपराध हिंदी फिल्मों के घिसेपिटे किस्से हैं इन्हें जोड़ लेना और निशक्तजन पर केन्द्रित फिल्म बना देना कोई कलात्मकता नहीं है .
कसी हुई कहानी और सटीक निर्देशन से यह फिल्म लाजवाब बन सकती थी . लेकिन अनुराग बसु ने आत्मकेंद्रित होकर फिल्म का निर्माण किया , फिल्म में स्टार कास्ट के लिए ज्यादा कुछ छोड़ा नहीं . रणबीर कपूर और प्रियंका चोपडा शुरू से अंत तक एक सधी हुई लाइन पर ही एक्ट करते रहे क्योंकि इससे ज्यादा उनके लिए अनुराग ने कुछ छोड़ा भी नहीं था . कुल मिलकर पूरी फिल्म में इत्ती सी हँसी और इत्ती सी ख़ुशी ही दर्शकों को मिल पायी है समय जैसे तैसे कट जाता है यह सोचकर की अब कहानी में कुछ नयापन होगा और आता ही होगा लेकिन अंत तक कुछ खास नहीं जो फिल्म की बद्चाद कर तारीफ़ कर रहे हैं पता नहीं किस नज़र से वे देख रहे हैं . 

2 comments:

  1. पिक्चर की बेहतरीन समीक्षा की है .... थियेटर में कोई पिक्चर देखे अरसा हो गया है .... बर्फी भी जब टी वी पर आएगी तब देखी जाएगी ... आभार मेरे ब्लॉग पर आने का ।



    कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...

    वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
    डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .

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thanks for coming on my blog