प्रधानमंत्री ने सन्देश में स्पष्टता से बात की लेकिन अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप वह ईमान नहीं जताया जिसकी देश के नागरिकों को जरुरत थी . प्रधानमंत्री ने यह जरुर कहा कि लोकलेखागार की रपट से निकले निष्कर्षों पर संसद के भीतर बहस होना चाहिए इसके लिए उन्होंने सही सोच रखनेवालों का समर्थन भी माँगा . प्रधानमंत्री ने यह सही किया कि उन्होंने देश के लोगों का मान रखा और उन्हें सर्वोपरि मानकर उठ खड़े होने की अपील की कि वह बीजेपी से कहें कि लोक्संस्थाओं में कामकाज चलने दें. पी एम् साहब अच्छा बोले, सही बोले, नपातुला बोले लेकिन पूरे ईमान से नहीं बोले . जब बेईमान को पकड़ना है तो ईमान का इज़हार करना पड़ेगा , एक लाख छियासीं लाख करोड के कथित महा घोटाले पर नपी - तुली के साथ सधी हुई सीधी बाते भी होना चाहिए और वह भी जब आप देश को संबोधित सन्देश दे रहे हों . मनमोहन सिंह को गर्ज़ाने की जर्य्रत नहीं थी केकिन जो जरुरत थी वह इस सन्देश से पूरी नहीं हुई . उन्हें अपनी बढती हुई आंच पर कुछ विश्वसनीय तथ्य कहना थे, सच से देश का सामना कराना था ,कुछ उस बेईमानी का खुलासा करना था जो हल्ले की वजह बना , आखिर कौन लोग हैं इस महा घोटाले के पीछे इसका उन्हें कुछ संकेत देना था , यह सब आखिर है क्या जाहिर करते तो एक विश्वास का महास्वरुप आप देश को दिखा सकते थे .
ईमान आत्मा से निकलता वह कथ्य है जिसका सत्व कोई जाने या न जाने एक आत्मसंतुष्टि जरुर देता है कि जो कुछ सही था वह मैं ईमान से कह चूका हूँ . कोयला घोटाले पर इसी ईमान की जरुरत है , बेईमान को पकड़ना और दूध पानी को छानकर अलग करना है तो प्रधानमंत्री जी को अभी कुछ और इमानदारी दिखाना है इसलिए कि समूचा राष्ट्र उन्हें एक ईमानदार व्यक्तित्व मानता रहा है . राष्ट्र आपकी बात पर विश्वास करना चाहता है अपनी बात कहें और खुलकर पूरे साहस से कहें , प्रतिकार भी करें तो साहस से करें ,किसी तरह का पेच न रखें इसलिए कि आपका ईमान राष्ट्र की शान है इसे बनायें रखें .COPY RIGHTS @RESERVED FOR SURENDRA BANSAL KEE KALAM SE
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