भारतीय गणतंत्र के 64 वें वर्ष में प्रवेश पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने विधायिका और कार्यपालिका को लेकर जो बहस शुरू की है वह चिंतनीय भी है और सामयिक भी .देश इन दिनों जिस राह से गुजर रहा है उससे भयावह संकेत समाज के बदले जाने के हैं . देश वही है लेकिन समाज बदल रहा है . नीति ,संस्कार और संस्कृति सब बदलते जा रही है जिससे देश प्रभावित हो रहा है . बदलते समाज के इस प्रभाव से देश की विधायिका और कार्यपालिका भी प्रभावित हो रही है. घर के भीतर आपकी संस्कृति और संस्कारों का परिवार हो लेकिन आज घर से बाहर कदम रखते ही भय, चिंता ,और संस्कारों से विहीन संस्कृति नज़र आती है इसलिए राष्ट्रपति ने सही पूछा है क्या हमारी विधायिका उदीयमान भारत का प्रतिनिधित्व करती है और कार्यपालिका की वाकई भलाई का माध्यम है ?
राष्ट्रपति ने ये सवाल बहुत देर से पूछे और सत्ता में कार्यपालिक होते हुए कभी नहीं पूछे लेकिन समय पर पूछे हैं . दिल्ली की खौफनाक घटना के बाद हर दिल पसीज गया है झुंझला गया है जाहिर है राष्ट्रपति भी झुंझलाए होंगें और जब गणतंत्र दिवस का मौका आया वे अपनी बात राष्ट्र से कह गए .उन्होंने एक बहुत ही उच्च बात कही है .उन्होंने कहा है देश का एक कानून है लेकिन उससे भी ऊँचा एक कानून है .महिला की गरिमा उसी बड़े कानून का नीतिनिर्देशक सिद्दांत है।अब समय आ गया है कि देश अपने कुतुबनुमे को फिर से निर्धारित करे। आगे उन्होंने यह भी कहा कि जनता को विश्वास होना चाहिए कि शासन अच्छाई के लिए है और इसके लिए अच्छा शासन सुनिश्चित करना चाहिए . और भी बाते राष्ट्रपति ने गहरे से सच्चे मनोरथ से कही है उन बातों का स्वागत किया जाना चाहिए .
जिस सामाजिक सरोकार और प्रतिबद्धता की बातें राष्ट्रपति ने की है जरुरत सभी को अपना मानस बदल कर उस पर आगे बढ़ने की है . कार्यपालिका में बदलाव सबसे पहले दिखना चाहिए क्योंकि देश की चाल उसी से नज़र आती है कार्य-पालिका में भीतर बैठे लोग सुशासन का मन बना लें तो विधायिका में भी बदलाव लाया जा सकता है . सुनिश्चित और विश्वसनीय कार्यपालिका राष्ट्र को बहुत कुछ दे सकती है। विधायिका का निर्माण ,परिवर्तन और संरक्षण भी उसे ही करना है . देश को बदलना है तो लोगो को जागरूक और सरकार को जवाबदेह बनना होगा . राष्ट्र को भीतरी सुरक्षा की भी उतनी ही जरुरत है जितनी उसकी सीमाओं की सुरक्षा जरुरी है . राष्ट्र की भीतरी सुरक्षा लोगों के स्वाभिमान ,मान और जान से है .इस गणतंत्र पर यह प्रण जरुर होना चाहिए . आखिर गण के प्रति तंत्र को जवाबदेह होना ही होगा .
सुरेन्द्र बंसल
surendra.bansal77@gmail.com
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