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Sunday, March 3, 2013

राज़ के लिए रण और नीति

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 कोई माने या न माने  गुजरात के धमाकेदार नेता नरेन्द्र मोदी बीजेपी की राष्ट्रीय पंक्ति में शामिल नेता बन गए हैं .बीजेपी स्वयं इसे मानसिक तौर पर मान चुकी है और इसका इज़हार उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथसिंह ने बीजेपी की राष्ट्रीय  कोंसिल की बैठक में सार्वजानिक कर दिया है .इसे जेडीयू को नाराज़ करने और अपनी चलाने वाला कहा जा सकता है लेकिन यह एक रणनीतिक राजनीति का पहला चेप्टर है जिसे राजनाथसिंह ने बखूबी प्रदर्शित किया है .
बीजेपी अपनी नीति पर २० १ ४ की रणनीतिक तैयारी में नज़र  आ रही है। फार्मूला शायद यही है एनडीए के सभी घटक अपनी अपनी नीतिगत तैयारी से चुनाव में उतरे  उदेश्य सिर्फ अधिक से अधिक सीटें हासिल करना हो , लगता है यह फार्मूला एनडीए के घटक दलों को मिल चुका  है और ख़ास तौर पर जेडीयू को जिसे बिहार में मोदी विरोध से ही अधिक समर्थन मिलता है . इसे मैं  रणनीतिक राजनीति  कहूँगा जिसकी शुरुवात समयबध्दता से बीजेपी ने कर दी है .आगे यह जरुर लगेगा कि  एनडीए के घटक दल विरोधाभास और अंतर्द्व्न्द से घिरे हैं लेकिन लगता है यह सब दिखावा होगा जो रणनीति का हिस्सा ही होगा .जिस तरह से गुजरात के हीरो  नरेन्द्र मोदी के लिए  बीजेपी राष्ट्रीय  राजनीति में रास्ता बना रही है वह सब शनिवार को बकौल राजनाथसिंह बीजेपी ने साफ़ तौर पर दिखा दिया है अब मोदी पर बीजेपी में सब एकमत हैं और इससे से  ही बीजेपी सीटें हासिल करने की बढ़त बनाना चाहती है . कारण इसे चाहे नरेन्द्र मोदी का भाग्य माने या इनका कर्म लेकिन दोनों में बीजेपी के लिए वे ही बेहतर आइकॉन हैं क्योंकि बीजेपी को एक भाग्यशाली और कर्मठ नेता के साथ लोकप्रिय ऐसे नेता की तत्काल जरुरत थी जो उसके नीति के अनुरूप हो जाहिर है फिलवक्त बीजेपी के पास तत्काल इस काडर का और कोई नेता हैं नहीं . 

मोदी पर यदि बीजेपी तैयार है तो विचार एनडीए के घटक दलों का भी हुआ होगा और यह भी कि  इसके क्या परिणाम हो सकते हैं लेकिन मुझे लगता है परिणामों से ज्यादा रणनीति पर विचार हुआ है और यह भी कि कैसे सभी घटक दलों को फायदा हो .फायदा इसी में देखा गया की बढ़त अपनी क्षेत्रीय नीति पर चलने से ही मिल सकेगी इसलिए जहाँ विचार में ,नीति में बीजेपी से जहाँ मतभेद होंगें वे बने रहेंगें और घटक दल इस पर ही चुनाव लड़ेंगें . इसलिए हो सकता है जाहिराना तौर पर बीजेपी मोदी को पीएम्  नामजद ना करे लेकिन  उनका आइकॉन इतना बड़ा होगा कि लोग उनमें पी एम् की छवि देखेंगें .बिहार में जेडीयू साफ़ साफ़ मोदी को नकारेंगें लेकिन फिर भी एनडीए के साथ ही होंगें . बिहार का मामला ऐसा है कि  वहां के बीजेपी नेता भी मोदी के पक्ष में नहीं दिखते यह दिखावा इसलिए है कि बिहार का राजनीतिक पेंच इसके रास नहीं आता . जब वह बीजेपी नेता मजबूर है तो जेडीयू कैसे मोदी पर सहमत हो सकती है.?

मोदी अब एक अधिकृत राष्ट्रिय नेता हो चुके है यह दम राजनाथ ने यूँ ही नहीं भरा है  तमाम बीजेपी नेताओं की मौजूदगी में भरा है जो यह दिखलाता है कि  बीजेपी को एक सर्वमान्य नेता और चुनावी नेतृत्व मिल चुका है जिसके राज़ के लिए रण  और नीति तैयार हो चुकी है यह स्पष्ट है 
सुरेन्द्र बंसल 
surendra.bansal77@gmail.comsurendra.bansal77@gmail.com

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