पाक की संसद ने जिस तरह बेख़ौफ़ अफजल गुरु मसले पर प्रस्ताव पास किया है उसका उसी लहजे में हमने जवाब भी दिया है , हमारी संसद ने एकमत से पाकिस्तान का निंदा प्रस्ताव पास किया और उसे जताया कि हमारे निजी और अंदरूनी मामले में दखल का वह तनिक भी प्रयास न करे .यह अच्छी बात है कि संसद के भीतर मतभेदों की धमाचौकड़ी मचाने वाले हमारे सांसदों और राजनैतिक दलों ने पूरी ताकत से एकजुटता दिखा कर पाक की दादागिरी को उसी तेवर में जमीं दिखाई है . लेकिन क्या यह ऩा - काफी नहीं है अभी इस मसले को दूर तक ,अंतर तक और वृहदता से देखा समझा और तैयार किया जाना चाहिए .
कोई संसद किसी अंतर्राष्ट्रीय मसले पर यूँ ही एकाएक फैसले नहीं करती है। इसके लिए उसकी सुनियोजित नीति होती है , अंतर्राष्टीय पेंच होते है ,लम्बा समय होता है ,गुट होते हैं और स्वार्थ निहित होते हैं . हालाँकि कहा जा रहा है ये पाक संसद जाने की तैयारी में है और एकाएक फैसले उस नीति का हिस्सा हो सकते है . लेकिन यह फैसला कई हिज्जों और अर्थों में बंटा ,फैला लगता है .इसे यूँ ही छोड़ देना बे-मायने होगा और नुकसान देह होगा .
जो नीति गहरी और अनेक अर्थों वाली होती है वह कूटनीति कहलाती है . पता नहीं हमारी सरकार ने और नेताओं ने पाक संसद की इस कूटनीति को परदे के पार से देखा है या नहीं .लेकिन जाहिर है कि पाक की इस नापाक हरकत के पीछे कोई गहरी अन्तराष्ट्रीय चाल है .इसके पीछे वहां के चुनाव हों तो हमें ज्यादा फर्क नहीं पड़ता लेकिन पाकिस्तान इस मुद्दे को संसद के भीतर से उठा कर अन्तराष्ट्रीय बना रहा है . वह कश्मीर मसले पर दुनिया को जताना चाहता है कि भारत में कश्मीरियों को आज़ादी नहीं है . दूसरा वह आतंकियों की अपरोक्ष मदद कर रहा है वहीं कश्मीरियों की रहनुमाँई का पक्षधर बन रहा है .
फिर भी पाक संसद के भीतर से कोई प्रस्ताव भारत की निंदा करे वह भी संसद पर आतंकी हमले के आरोपी के पक्ष में तो इसके इसके समझे गए गूढ़ अर्थ आगे की अन्तराष्ट्रीय खुरपेंची कहा जा सकता है जिसके पीछे यूरोप पार के देश और नेता हो सकते है जो आतंकवाद समेत कश्मीर और अन्यों मसलों पर भारत के खिलाफ हैं और जहर उगलते आ रहे हैं . हम देख रहे है आतंकवाद से लड़ने वाले कई देश जिसमें अमेरिका और ब्रिटेन भी हैं भारत -पाक के बीच चल रही आतंकी घटनाओं और विवादों पर या तो भारत के साथ नहीं है या दिखावे के लिए साथ नज़र आते हैं .ऐसे देशों की नई कूटनीति का हिस्सा हो सकता ये पाक संसद का प्रस्ताव . इसलिए सजगता से ,गहराई से इस मसले का अध्ययन करने ,इसके पेंच ढूढ़नें और समझने की जरुरत है सिर्फ गुर्राने से काम नहीं चलेगा काट भी जरुरी है
सुरेन्द्र बंसल
कोई संसद किसी अंतर्राष्ट्रीय मसले पर यूँ ही एकाएक फैसले नहीं करती है। इसके लिए उसकी सुनियोजित नीति होती है , अंतर्राष्टीय पेंच होते है ,लम्बा समय होता है ,गुट होते हैं और स्वार्थ निहित होते हैं . हालाँकि कहा जा रहा है ये पाक संसद जाने की तैयारी में है और एकाएक फैसले उस नीति का हिस्सा हो सकते है . लेकिन यह फैसला कई हिज्जों और अर्थों में बंटा ,फैला लगता है .इसे यूँ ही छोड़ देना बे-मायने होगा और नुकसान देह होगा .
जो नीति गहरी और अनेक अर्थों वाली होती है वह कूटनीति कहलाती है . पता नहीं हमारी सरकार ने और नेताओं ने पाक संसद की इस कूटनीति को परदे के पार से देखा है या नहीं .लेकिन जाहिर है कि पाक की इस नापाक हरकत के पीछे कोई गहरी अन्तराष्ट्रीय चाल है .इसके पीछे वहां के चुनाव हों तो हमें ज्यादा फर्क नहीं पड़ता लेकिन पाकिस्तान इस मुद्दे को संसद के भीतर से उठा कर अन्तराष्ट्रीय बना रहा है . वह कश्मीर मसले पर दुनिया को जताना चाहता है कि भारत में कश्मीरियों को आज़ादी नहीं है . दूसरा वह आतंकियों की अपरोक्ष मदद कर रहा है वहीं कश्मीरियों की रहनुमाँई का पक्षधर बन रहा है .
फिर भी पाक संसद के भीतर से कोई प्रस्ताव भारत की निंदा करे वह भी संसद पर आतंकी हमले के आरोपी के पक्ष में तो इसके इसके समझे गए गूढ़ अर्थ आगे की अन्तराष्ट्रीय खुरपेंची कहा जा सकता है जिसके पीछे यूरोप पार के देश और नेता हो सकते है जो आतंकवाद समेत कश्मीर और अन्यों मसलों पर भारत के खिलाफ हैं और जहर उगलते आ रहे हैं . हम देख रहे है आतंकवाद से लड़ने वाले कई देश जिसमें अमेरिका और ब्रिटेन भी हैं भारत -पाक के बीच चल रही आतंकी घटनाओं और विवादों पर या तो भारत के साथ नहीं है या दिखावे के लिए साथ नज़र आते हैं .ऐसे देशों की नई कूटनीति का हिस्सा हो सकता ये पाक संसद का प्रस्ताव . इसलिए सजगता से ,गहराई से इस मसले का अध्ययन करने ,इसके पेंच ढूढ़नें और समझने की जरुरत है सिर्फ गुर्राने से काम नहीं चलेगा काट भी जरुरी है
सुरेन्द्र बंसल
बढिया,बहुत बढिया
ReplyDeletethanx Mahendra ji shrivastav
ReplyDelete