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Sunday, May 12, 2013

मतभेद के माध्यम


यूपीए  के दो मंत्री उस वक़्त गए हैं जब वह और खासकर कांग्रेस, कर्नाटक  में जीत का जश्न मनाने जा रही थी , जीत की खबर के साथ शाम तक सर्वोच्च न्यायालय की लताड़ आ गयी मानों उसका सीढ़ियाँ चढते हुए पैर फिसल गया और चोट ऐसी की उसके दो दमदार नेताओं  को पद और प्रतिष्ठा खोना पड़ी ,.लेकिन इस घटनाक्रम को पीएम् और सोनिया नहीं राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी के मध्य देखा जाना चाहिए . यह क्यों ?

दरअसल यह मामला पहले से जाहिर हो गया था और कर्णाटक में वोट डाले जाने थे .संसद के भीतर हंगामा चल रहा था और खाद्य सेक्युरिटी जैसे बिल अटके पड़े थे .यूपीए  सांसत में थी क्या करें ,क्या न करें . आखिर इससे कितना असर कर्णाटक के परिणामों पर आएगा ? रेल मंत्री और कोयला मंत्री जैसे पद प्रधान मंत्री के खास पवन बंसल और अश्विनी कुमार के पास थे और दोनो ही बुरी तरह से मामले में फंस गए थे .प्रधानमंत्री निवास पर जब एक महत्वपूर्ण बैठक में इन दोनो मंत्रियों को ब़ाहर किये जाने की तैयारी थी , बताया जाता है राहुल गाँधी के एक एसएमएस ने बैठक की दिशा ही पलट दी और निर्णय  हुआ कि दोनों से इस्तीफा नहीं लिया जाएगा . दोनों मंत्री बच गए .तब अश्विनी कुमार के मामले में सुप्रीम कोर्ट कह चुकी थी कि  जांच रिपोर्ट की आत्मा बदल दी गयी है वहीँ रेल मंत्री की ओर घूस की आंच तब भी आ रही थी .

कर्नाटक में जब कांग्रेस को बहुमत मिल गया तो इस जीत को कांग्रेस ने अपने प्रति मिला समर्थन माना लेकिन भीतर ही भीतर उसे यह पता था कि बीजेपी और येदुरप्पा की लडाई में यह क्षेत्रीय राजनीति की जीत का उसे पुरस्कार मिला है .इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को सरकार  का तोता कह कर ख़ुशी की सारी हवा निकाल दी .संसद में हंगामे के चलते खाद्य सुरक्षा बिल भी पास  नहीं हो सका .इस घटनाक्रम के चलते कांग्रेस घिरी हुई थी भीतर से भी और बाहर से भी शुक्रवार की रात जब दोनों विवादित  मंत्रियों  को हटाने का फैसला हुआ उसके पहले प्रधानमंत्री और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गाँधी  के बीच लम्बा विचारविमर्श हुआ था .

लेकिन क्या यह मामला सोनिया और प्रधानमंत्री के बीच तय हुआ ? हो सकता है पर मामला राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी के बीच झूलता रहा है यह सम्पूर्ण  घटनाक्रम देखने से पता चलता है पहले राहुल गाँधी ने इसे रोका  बाद में सोनिया गाँधी ने आगे बढ़ाया और मंत्रयों को चलता किया . यहाँ यह पूछा जा सकता है कि  क्या राहुल और सोनिया के बीच इस मामले पर मतभेद थे ? क्यों इस महत्वपूर्ण फैसले के वक्त राहुल का नाम नहीं आया जबकि इसे रोकने के वक़्त राहुल के एस एम् एस  की खबर आई थी . क्या मंत्रियों  के इस्तीफे लिए जाने या न लिए जाने के पीछे राहुल और सोनिया में  वैचरिक मतभेद था ?आखिर जब भी कोई मामला मध्य में होता है तो फैसले मतभेद के माध्यम बन जाते है . पता नहीं क्यूँ मीडिया अब तक इस पर नहीं 


सुरेन्द्र बंसल 

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