लो खुश हो जाओ तुम भी
ऐ मेरे मित्र,
कल ही मैंने
एक दर्द खरीद लिया है
इन पैसों से चाहता था
कुछ ले आऊँगा घर
माटी, कंकर ,घासफूस ,
तिनके ,टुकड़े ,लकड़ी ,पत्थर
रखकर टीला बना लूँगा
चढ़ जाऊँगा उस पर तन कर
कुछ उंचा उठ जाऊँगा
रुक गया यहीं पर
थाम लिया अपने को
अपने के भीतर
थम जाओ सुरेन्द्र तुम
अब यहीं तक
दूसरे को लिए जिते रहे
हो अब तक
उन्हें खुश ही रहने दो
बढ़ रही है ख़ुशी तुम्हे
ऐ मुसाफिर
घर लौटने के पहले ही
एक दर्द खरीद लो
लो खुश हो जाओ
ऐ मेरे मित्र तुम भी
कल ही मैंने
एक दर्द खरीद लिया है ..
-सुरेन्द्र बंसल
21 APRIL12
Supperb : )
ReplyDeletethanx sangya
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