दो महीने में देश का नया राष्ट्रपति चुन लिया जाएगा लेकिन नए राष्ट्रपति को लेकर जो कवायदे की जा रही है उससे कहीं नहीं लगता कि राष्ट्रपति के लिए वोट वेल्यू रखने वाली राजनैतिक पार्टियाँ देश का राष्ट्रपति चुनने जा रही हैं . अभी तक जो नाम जिस तरह से सामने आ रहें हैं उनसे लगता हैं हर राजनैतिक दल अपना राष्ट्रपति चुनना चाह रही है . देश में इस तरह का चलन राष्ट्र के प्रति राजनैतिक जिम्मेदारी से दूर हटना है
दरअसल विधायकों और सांसदों की वोट वेल्यू के आधार पर चुने जाने वाला राष्ट्रपति हमारी वैश्विक राजनीति और कूटनीति की प्रतिष्ठाओं का प्रतिनिधित्व करने वाला होना चाहिए , लेकिनं इस समय जो मांग और नाम चल रहे हैं उनमे कहीं यह नहीं लग रहा जो कह सके कि यह नाम हमारी आवश्यक प्रतिष्ठाओं के अनुरूप है. अभी नाम चलाने वाले खासकर छोटे और क्षेत्रीय दल जो नाम लेकर आ रहे हैं वे सब अपनी दलगत राजनीति के स्वार्थ वश ही ला रहे हैं . यहाँ तक कि पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम और उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के नाम भी उनकी स्थापित प्रतिष्ठाओं के अनुरूप नहीं उनकी सामाजिक और धार्मिक स्थितियों के अनुसार लिए जा रहे हैं . अब किसी ने यह भी कह दिया है इस बार राष्ट्रपति ईसाई समुदाय से होना चाहिए .
यह देश की विडम्बना है आज सर्वोच्च पद के लिए सर्वोच्च व्यक्तित्व की चाहत और नितान्तता जरुरी नहीं रह गयी है , तुष्टिकरण के साथ आज राज दलों ने इसे वोट खरीदने का औज़ार बना लिया है क्या देश का राष्ट्रपति राजनैतिक दलों की बखत बढ़ाने का जरिया है ? राष्ट्रपति से तो राष्ट्र की बखत बढ़ना चाहिए. लेकिन अपनी अपनी राग से सभी दल अपना हित साध रहे हैं . क्या हम वाकई धर्म निरपेक्ष हैं ? यह सवाल हमारी धर्मनिरपेक्षता पर स्वयं एक प्रश्न है . क्यों नहीं देश प्रतिष्ठित,सम्मानित ,सर्वथा योग्य पद पर एक मत से विचार नहीं कर सकता ?
सुरेन्द्र बंसल
दरअसल विधायकों और सांसदों की वोट वेल्यू के आधार पर चुने जाने वाला राष्ट्रपति हमारी वैश्विक राजनीति और कूटनीति की प्रतिष्ठाओं का प्रतिनिधित्व करने वाला होना चाहिए , लेकिनं इस समय जो मांग और नाम चल रहे हैं उनमे कहीं यह नहीं लग रहा जो कह सके कि यह नाम हमारी आवश्यक प्रतिष्ठाओं के अनुरूप है. अभी नाम चलाने वाले खासकर छोटे और क्षेत्रीय दल जो नाम लेकर आ रहे हैं वे सब अपनी दलगत राजनीति के स्वार्थ वश ही ला रहे हैं . यहाँ तक कि पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम और उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के नाम भी उनकी स्थापित प्रतिष्ठाओं के अनुरूप नहीं उनकी सामाजिक और धार्मिक स्थितियों के अनुसार लिए जा रहे हैं . अब किसी ने यह भी कह दिया है इस बार राष्ट्रपति ईसाई समुदाय से होना चाहिए .
यह देश की विडम्बना है आज सर्वोच्च पद के लिए सर्वोच्च व्यक्तित्व की चाहत और नितान्तता जरुरी नहीं रह गयी है , तुष्टिकरण के साथ आज राज दलों ने इसे वोट खरीदने का औज़ार बना लिया है क्या देश का राष्ट्रपति राजनैतिक दलों की बखत बढ़ाने का जरिया है ? राष्ट्रपति से तो राष्ट्र की बखत बढ़ना चाहिए. लेकिन अपनी अपनी राग से सभी दल अपना हित साध रहे हैं . क्या हम वाकई धर्म निरपेक्ष हैं ? यह सवाल हमारी धर्मनिरपेक्षता पर स्वयं एक प्रश्न है . क्यों नहीं देश प्रतिष्ठित,सम्मानित ,सर्वथा योग्य पद पर एक मत से विचार नहीं कर सकता ?
सुरेन्द्र बंसल
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thanks for coming on my blog