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Saturday, May 19, 2012

ये तो लायक ना थे

ये तो लायक ना थे 

देश में बहुत  से ऐसे लोग हैं जो किसी लायकी के नहीं हैं लेकिन  नायक हैं इसलिए लायक हैं , सिरमौर हैं,सबसे ऊपर हैं ,अहम् हैं,और कहीं न कहीं देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं .ताज़ा उदाहरण बॉलीवुड किंग कहे जाने वाले शाहरुख़ के उस रुतबे का है जो उन्होंने एक अदने से सुरक्षा कर्मी पर झाडा . वैसे आई पी एल में अकेले शाहरुख़  ही नहीं उनके साथ विवादित कांड में शामिल मुंबई क्रिकेट एसो के पदाधिकारी भी हैं . यह सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है तमाम ओहदेदार जहाँ कहीं अपना रुतबा दिखाते हैं ऐसी ही हरकतें करते हैं , कभी कभी बात शाहरुख़ जैसे मामले तक बिगड़ जाती है .

शाहरुख़ का वानखेड़े विवाद सामयिक घटना है लेकिन हमें ऐसी वारदातों और उसके पीछे बने वलय वाले मामलों में इसे प्रतिनिधित्व घटना  मानना चाहिए . ऐसी तमाम घटनाएं उस दर्जे का नतीजा है जो इस तरह के लोग अनायास ही प्राप्त कर लेते हैं . दरअसल आगे बढ़ते हुए और चढ़ते  हुए  को लोग कुछ ज्यादा ही ऊँचाइयों पर पहुंचा देते हैं . अक्सर वीआयपी कहे जाने वाले जीव तत्वों के साथ ऐसा ही होता है . ये जीवतत्व अपने को  जितना ऊपर देखते हैं उतना ही बड़ा पाते हैं और ऐसे में हर कोई उनसे छोटा हो जाता है .

शाहरुख़ ने वानखेड़े स्टेडियम में जो रौब झाडा वह उसके तमाम फेंस की दी हुई ऊंचाई का नतीजा है , जब भी इज्ज़त बढ़ती है तो रौब- रुआब अपने आप आ जाता है , शाहरुख़ ने अपने अभिनय से वानखेड़े पर दिखा दिया कि रुतबा  क्या होता है  . जरुरी नहीं कि शाहरुख़ इस मामले में दोषी हों हम बात सिर्फ रौब झाड़ने वाले  लोगों की कर रहे है जो उनको मिली शोहरत  से पनपती और उपजती है .दरअसल हर वीआयपी अपनी एक विधा में पारंगत होता है इसीलिए वह नेता होता है ,अभिनेता होता है ,लेखक होता है ,पत्रकार होता है , खिलाडी होता है ,प्रधान होता है , बड़ा होता है और न जाने क्या क्या होता है . पर क्या उसकी एक विधा जिसका वह पारंगत है उसकी तमाम हरकतों को खासियत  और सर्वमान्य बना देती है , नहीं ... पर देश में यही चल रहा है जो जहाँ वीआयपी है अपने को हर विधा का मास्टर समझ लेता है और हर जगह अपने को एक नेतृत्व करने  वाले में स्थापित  कर लेना चाहता है वह आम तो है ही नहीं.... ऐसा क्यों ? 

भाई मैं एक पत्रकार हूँ और उस क्षेत्र के बाहर एक आम नागरिक हूँ यह चेतना हम में क्यों नहीं हैं . जितने और जो नियम  कानून  कायदे आम लोगो के लिए हैं वह सब मुझ पर भी है , मेरी विधा , मेरी पारंगतता  और मेरा पैसा सामाजिक और राष्ट्रीय नियमों को कैसे खरीद सकती है मुझे मेरा दायरा मालूम होना चाहिए ऐसा क्यों नहीं हो रहा है हर वीआयपी अपने को सर्व व्यापी और इतना लायक समझने लगा है कि वह दूसरों के अधिकारों पर अतिक्रमण करने लग  गया है  दरअसल ऐसे लोग ना तो लायक थे और ना लायक हैं . यह समझना जरुरी है .
सुरेन्द्र बंसल 
सुरेंद्रबंसल@जीमेल.कॉम

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