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Saturday, December 8, 2012

राजनीति की धत्त दशा .....



एफडीआई  से माया और मुलायम मुनाफा कमाने वाले पहले ग्राहक हैं , इस मुद्दे पर उन्होंने राजनीति की नीति को बेचकर सरकार की ममता और अपनापन खरीद लिया है .इससे उन्हें  क्या मुनाफा होने वाला है यह वक़्त बतायेगा लेकिन सपा और बसपा का जो रवैया  लोकसभा और राज्यसभा में रहा है उससे यही संकेत आ रहे हैं कि  एफडीआई  से मुनाफा कमानेवाले ये ही पहली दो पार्टिया हैं . 

वक़्त अब यह भी कह रहा है उत्तरप्रदेश के दो सशक्त राजनेता आखिर कैसी और किसलिए नेतागिरी कर रहे हैं , किस नीति से कर रहे हैं और उस नीति का क्या फायदा उनके वोटरों को मिलेगा ? क्या राजनीति की यह भद पीटने वाली घटना नहीं हैं ,जब आप पुरजोर विरोध करो देश और जनता को बताओं कि आप क्यों इसके विरोध में हैं और फिर चोर दरवाजे से जैसे खिसक जाओ , क्या भलमनसाहत है यह ? किस तरह का उपकार है , क्यों किया गया परोपकार है ये ? क्या अब राजनीति यही है . यह तो धत्तनीति है  जिसकी जितनी धिक्कार की जाए कम है . 

भारतीय राजनीति जिस तरह बदल रही है उसमे कहीं मूल्यों को ढूँढना  बेमानी है .इस मूल्यविहिनता का नतिज़ा यह है कि देश की सबसे बड़ी पार्टी इस बात की ख़ुशी मना रही है की उन्हें बेइंतहा गाली देने वाले आकामक  लोगों ने उनकी जान और साख बचा ली है . कौन कह सकता है मूल्य अब भी बाकी है जब सबसे जिम्मेदार दल अपनी रीती नीति के लिए अनैतिक समझौते  कर ले तो उसे मूल्याधारित नीति नहीं कहा जा सकता लेकिन राजनीती में सब जायज़ है की चल रही रीति ने राजनेताओं को मूल्यों से मीलों दूर कर दिया है।  

जब मूल्यविहीन राजनीति चल रही हो  तो जनता और वोटर किस पर विश्वास करें और क्यों करें . किस नीति और मुद्दे पर अपनी सहमती जताए और विरोध जाहिर करें ,यह दुविधा वर्तमान राजनीती की दशा से उभर रही है ,यह चलता रहा और देश का वोटर निरुत्साहित होता गया तो इसका सीधा असर लोकतंत्र के उस सबसे बड़े उत्सव पर पडेगा जिसे आम चुनाव कहा जाता है . तब निरुत्साहित  मतदाता मतदान करने से कोताही करने लगेगा , जबकि  उसे प्रेरित करने के प्रयास किये जा रहे है और इसे उसका अधिकार जताया जा रहा हैं। राजनीति की यह धत्त दशा है . 

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