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Sunday, December 30, 2012

जागते रहो ! पुकार ,ललकार और धिक्कार



जागते रहो !
पुकार  ,ललकार और धिक्कार 

पञ्च तत्व में विलीन हो चुकी एक बेटी का शोक हर घर - परिवार में रहा 
,लोग पुकार रहे हैं ,ललकार रहे हैं धिक्कार रहें हैं .दरिंदों की हरकतों को .व्यवस्था को और कमज़ोर कानून को . असहनीय पीड़ा से त्रस्त होकर सदा के लिए सो जानेवाली एक बेटी ने देश जगा दिया है . यह एतिहासिक है कि अत्याचार पर रोषित लोगों ने  मानवीय मूल्यों के लिए स्वमेव इच्छा से , अंत; भाव से आंदोलित होकर नेतृत्व विहीन एक ऐसा आन्दोलन खड़ा किया है जो अब से पहले कभी न देखा गया और न ही किया गया . देश के युवा पथ भ्रष्ट नहीं हैं और अपने अधिकार ,रक्षा , मूल्यों के लिए कितने  सजग हैं यह उन्होंने सिद्धः कर दिया है ऐसी युवा पीढ़ी  को भी सलाम .

गेंग रेप की शिकार लड़की के प्रति संवेदनाओं ने ऐसा जागरण किया हैं कि लोग स्वमेव यह पुकार करने लगे की एकजुट हो जाओ और अत्याचार का प्रतिशोध फांसी से करो , इंडिया गेट इससे बेहतर जगह नहीं हो सकती थी जो लोगों को प्रेरित रख सके , युवा बच्चों ने दिखाया कि  उन्हें सोशल साईट के दुरूपयोग के लिए बदनाम किया जाता है लेकिन इसका वे ऐसा उपयोग भी कर सकते है जो जनमत बना दें , विचार बना दे और राष्ट्र के लिए एक राह बना दे .लोग देखते देखते इस पुकार पर इंडिया गेट पर एकत्र हो गए ,कारवां बनता गया . यह एक ऐसी शुरुवात थी जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती , कैसे एक सोता हुआ देश करवट लेगा और एकजुट होकर चल पड़ेगा .

भावनाएं जब आहत होती है तो विचार पनपता है और जब विचार बनता है और समग्र रूप से जब वह बाहर आता है तो वह जज्बा बनकर ललकार के लिए तैयार हो जाता है . सैकड़ो नहीं हज़ारों के ज़ज्बें ने इस ललकार को खड़ा किया और उसकी तेज़ प्रतिध्वनि से साऊथ ब्लोक के भीतर बैठे लोगों को झकझोर दिया इस ज़ज्बे को जितना सेल्यूट किया जाए कम है .वह जीना चाहती थी इस कथ्य ने परावर्तन का काम किया और यह ज़ज्बा परावर्तित होकर इतना फैला कि सारा देश हुंकार भरने लगा,ललकारने लगा .यह ललकार उन लोगो के लिए थी और है जो देश को अपना यंत्र समझ कर भीतर बैठे उसे अपने ढंग से संचालित कर रहे थे . इसे युग का परिवर्तन कहा जा सकता , जन के योग से बनती बड़ी ताकत कहा जा सकता जो मतान्ध सत्ताधीशों के लिए एक चेतावनी भी है .

अंग्रेज़ देश की भावनाओं और ललकार से जब उत्तेजित हो जाते थे तो बहशियाना जुल्म पर उतर आते थे , यही सब कुछ निर्दोष लोगों के साथ हमारे तंत्र ने भी किया , बहन बेटियों को पर लाठी ! थू है ऐसी हरकत पर , धिक्कार है . सारे  देश ने एक साथ इस अंग्रेजियत होती सत्ता को  धिक्कारा ,लताड़ा, दो दिन तक वे देश की बहन बेटी और भाइयों को पिटते रहे .लाठियां चलाते रहे और जब धिक्कार की गूंज सारे देश से उन्हें सुनाई देने लगी तो उनके कसे बंधे नाडे  ढीले पड  गए और उन्हें समझ आया कि उनका सड़क पर निकलना दूभर हो जाएगा . देश तो जाग चुका  सत्ता के कुम्भकर्ण भी जाग गए और उन्हें भी दुःख होने लगा , समझ आया कि  उनकी कितनी बहन बेटियाँ हैं . जब आप सही कर्म नहीं कर रहे हैं तो दुष्कर्म कर रहे हैं .देश की सत्ता ने यह दुष्कर्म किया है लोगों की भावनाओं को कुचलने का दुष्कर्म .इसलिए धिक्कार है .

सही मायने में आत्म-स्फूर्त होकर शुरू हुए इस आन्दोलन का सूत्र ही पुकार,ललकार और धिक्कार है। इस सूत्र ने लोगो को स्वयं एक नेतृत्व दिया विचार दिया और ज़ज्बा दिया . देश को दिखा दिया की नेतृत्व के बगैर  किस तरह कोई आन्दोलन  लोगों को प्रेरित रखकर सत्ता को भी झकझोर सकता है पुकार सकता है ,ललकार सकता है और धिक्कार सकता है ,अब समय जागते रहने का है मुद्दों को जाया करने का नहीं अंजाम तक पहुंचाने का है . जो लोग सोच रहे है सिर्फ फांसी देने से कुछ नहीं होगा वे उत्तेज़ना की पराकाष्ठा  नहीं समझ रहे हैं ऐसे उत्तेजना जो स्व- रोष भाव, स्व दर्द से उपजी हो उसकी शांति इसी तरह होना चाहिए एक सन्देश देती हुई .
surendra.bansal77@gmail.com

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