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Sunday, December 23, 2012

न वजूद बढ़ा न मान



गुजरात में मोदी एक बार फिर सत्ता पर शोभित हो गए हैं।कांग्रेस ने यहाँ मत खाई है यह कहना गलत होगा , इसलिए भी कि नरेन्द्र मोदी 2007 के चुनाव से दो कदम पीछे हैं .वहीँ कांग्रेस दो सीटें ज्यादा लेकर कुछ आगे बड़ी है . फिर भी भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियां नफे-नुकसान में नहीं है . लेकिन राजनैतिक विश्लेषण करने पर यह जाहिर  होता है कि दोनों ही राजनैतिक दल अपना वजूद और मान नहीं बढ़ा सके हैं . 
2007 में बीजेपी जब यहाँ जीती थी तब उसे 117 सीटें मिली थी , पांच साल गुजरात में नरेन्द्र मोदी का राज रहा जिसे सुराज,सुशासन कहा जाता है ,और बढ़ता हुआ गुजरात मोदी की बढ़ती ताकत भी कही जाती है लेकिन बावजूद इतने विशेषणों के नरेन्द्र मोदी बीजेपी की कुल सीट और अपनी लोकप्रियता में  आंकलित इजाफा नहीं कर सके हैं . उन्हें हल्का घाटा हुआ और बड़ा फायदा यह हुआ कि वे पुन; मुख्यमंत्री बन गए लेकिन उस नकारे वोट को सकारे वोट में नहीं परिवर्तित कर सके जिसे वे 2007 में भी हासिल नहीं कर सके थे . यदि ऐसा होता तो नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता सर चढ़ती तथा समर्थन व्यापक होता तो बीजेपी की जीत 2007 से बढ़कर होती . जो व्यक्ति पीएम की दौड़ में दिल्ली की तरफ जाता दीख रहा हो उसे 2012 के परिणाम यह आशा नहीं बंधाते कि वे अपनी सतत जीत से लोकप्रिय राजनैतिक व्यक्तित्व बनकर प्रधानमंत्री पद के भरी भरकम दावेदार हैं।
दरअसल मोदी की जीत उस मांग को प्रमाणित  नहीं करती जो उन्हें प्रधानमंत्री पद की सम्पूर्ण यिग्य्ता के अंक प्रदान करे। उन्होंने अपनी और बीजेपी की जीत बरकरार रखी है, इसलिए कहा जा सकता है वे गुजरात के कुशल राजनेता हैं , जिनके विरोध के लिए प्रतिपक्ष ( कांग्रेस) इतनी मज़बूत नहीं हो सकी कि वे नरेन्द्र मोदी को हार के लिए मजबूर कर सके .
जाहिर है गुजरात में कांग्रेस बीते पांच सालों से अपना जनधार तैयार नहीं कर सकी है।नरेन्द्र मोदी को सांप्रदायिक जताने वाले बयान देकर कांग्रेस ने उन्हें मज़बूत ही किया है .कांग्रेस के किसी नेता ने अपना राजनैतिक अंदाज़ ऐसा नहीं दिखाया जिससे नरेन्द्र मोदी पर मुश्किलें आयें . यह कमजोरी कांग्रेस के भीतर रही उनकी तैयारियां चुनाव जीतने की ललक वाली कभी नहीं रही लिहाज़ा कांग्रेस गुजरात में 2007 से सिर्फ दोसीटें ही आगे बढ़ सकी .यह जरुर उसने अपनी सीटें नहीं खोई , इससे साफ़ लगता है कांग्रेस कुछ तैयारी कर अपना जनधार बढ़ाती तो उसकी सीटों में और इजाफा हो सकता था .
इस चुनाव के परिणाम किसी के लिए आशाजनक हों यह कहना बेमानी होगा , दोनों हो राजनैतिक दलों ने अपनी अपनी लुटिया को डूबने से बचा रखा है। 
सुरेन्द्र बंसल 

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