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Monday, October 12, 2015

वादा है मैं भी पुरस्कार लौटा दूंगा......।

📝अंदाज़ अपना ...........

सुरेन्द्र बंसल का पन्ना

वादा है मैं भी पुरस्कार लौटा दूंगा

जल्दी ही कोई पुरस्कार मुझे भी मिल जाए, ठीकठाक लिख लेता हूँ . प्रकटीकरण में माहिर हूँ सबको मौका मिल रहा है मुझे भी मिलना चाहिए..... पुरस्कार को लौटाकर स्वयं को प्रकट करने का । समय की आंधी ऐसी चलती हैं कि पहचाना भी नहीं जाता हूँ....भूल से गए हैं लोग मुझे.....कुछ न करो तो ये मीडिया भी घास नहीं डालती। पुरस्कार लौटाने वालों की कतार बन रही है.... मैं कहीं नहीं हूँ ......।

एक बार मिल जाए कोई पुरस्कार , लौटाने का बहाना तो मैं ढूंढ ही लूंगा ....मुझे रास्ता उदय प्रकाश फिर नयनतारा जी ने दिखा दिया है और उनके अनुसरण  में कतार बढ़ रही है....इसमें शामिल होने का मुझे भी मौका मिलना चाहिए....यह जिद है मेरी ...... पर इसे कैसे पूरी करूँ जब कोई पुरस्कार ही नहीं है.......यह रिवाज़ बहुतअच्छा है एक बार पुरस्कार मिल जाए तो वह सम्मानित होने का आनंद भरपूर देता है ..... सम्मान से लिपटी शाल जिंदगी भर की ठण्ड दूर कर कितने प्रसार की गर्माहट देती है यह पुरस्कार लेने वाला ही जानता  है ....,.इसलिए मुझे भी पुरस्कार चाहिए ताकि मैं भी जान लूँ कबाड़ख़ाने में पड़े पुरस्कारों को लौटाकर कितनी गर्माहट रिचार्ज की जा सकती है ....।

यह आइडिया बहुत माकूल है इंतज़ामों की तरह ....किसी ने दिया पुरस्कार किसी और को लौटा दिया.... चलता है यह सब क्योंकि इसमें ईमान का तौल नहीं है ..,किसी से हंस बोलकर लो और किसी को रूठ - तानकर लौटा दो.....यह सुविधा सरकारों के बदलने से मिल ही जाती है...देखो न किस किसने पुरस्कार किस-किस से लिए और किसे लौटा रहे है ....अब तक संभाले क्यों रखे थे भाई ,ये किसी ने नहीं पूछा इनसे....... मुझसे भी कोई क्यूँ पूछेगा.....जब तक मन पड़ेगा शांति से रख लूंगा और अनुकूल बहाना देखकर धमाके से लौटा भी दूंगा.....

भैय्या, इसलिए जान लो मुझे.... सारे कंटेंट मुझमें हैं......नाम सुरेन्द्र बंसल है ....इंदौर में रहता हूँ.....उम्र जानों तो समझ लो ,जवानी लिखने पढ़ने में गुजार चुका हूँ...... भाई हर तरह का रंग है मुझमें..... कवि भी हूँ और लेखक भी...... अच्छे तबके के और हुनरमंद लोगों के बीच का ईमानदार पत्रकार रहा हूँ ....और इस कृत्य में बहुतों को सताया और दुखाया है ....कोई दो दशक तक.... राजनीति की समझ भयंकर है ठीक पुरस्कार लौटानेवालों की तरह ....इसलिए राजनैतिक विश्लेषण का पूरा माद्दा रखता हूँ....इज़्ज़तदार हूँ और इज़्ज़त से पेशी मेरी पूंजी है.....।
खानापूरी पूरी करूँगा ,कोई कमी नहीं रहने दूंगा......मैं अपने लिए नहीं लौटाने के वास्ते पुरस्कार चाहता हूँ ....उपयुक्त हूँ बस नकारो ना मुझे ..... वादा है मेरा, मैं भी पुरस्कार लौटा दूंगा......।
सुरेन्द्र बंसल (C)
3PM12102015

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